काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
बाग्ला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।।
मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या सिद्धिदा प्रकीर्तिता।।
वर्ष 2022 में 9 मई, दिन सोमवार को मां बगलामुखी जयंती मनाई जा रही है। यहां पढ़ें पौराणिक और प्रामाणिक कथा एवं माहात्म्य-
मां देवी बगलामुखी जी (Maa baglamukhi Katha) के संदर्भ में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा। इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेक लोग संकट में पड़ जाते हैं और संसार की रक्षा करना असंभव हो जाता है। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था जिसे देखकर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।
इस समस्या का कोई हल न पाकर वे भगवान शिव का स्मरण करने लगे। तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में ही जाएं। तब भगवान विष्णु हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर कठोर तप करते हैं। भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुन्दरी को प्रसन्न किया तथा देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुईं और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करतीं महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ।
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं। त्र्यैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर विष्णुजी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका।
देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है, क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्ररूपिणी हैं। इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।
माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ।
हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: मां बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।