Baglamukhi Jayanti 2022 : 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति मां धूमावती का प्रकटोत्सव ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं जबकि हर साल वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी माह के अनुसार इस बार यह बगलामुखी जयंती 9 मई 2022 मंगलवार को मनाई जाएगी।
बगलामुखी की पूजा (Baglamukhi Ki Puja):
1. मां बगलामुखी कौ तांत्रिकों की देवी माना हैं, परंतु सामान्यजन भी इनकी पूजा अर्चना कर सकते हैं। इस महाविद्या की उपासना या साधना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है।
2. बगलामुखी जयंती के दिन जातक सुबह नित्य कर्म और स्नान करने के बाद पूर्वमुखी होकर पीले रंग के वस्त्र धारण करें और पूजा अर्चना करें।
3. माता का आसान भी पीले रंगा का होना चाहिए।
4. सामान्यजन इस दिन उपवास रखकर उन्हें पीले रंग के फूल, पीले रंग का चन्दन और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करते हैं।
5. पूजा के बाद मां बगलामुखी की आरती और चालीसा पढ़ें।
6. शाम के समय मां बगलामुखी की कथा का पाठ करें।
7. मां बगलामुखी जयंती पर व्रत करने वाले जातक शाम के समय फल खा सकते हैं।
8. हल्दी की माला से मां बगलामुखी की पूजा और जाप करने से जातक की सभी बाधाओं और संकटों का नाश होता है और इसके साथ ही शत्रु पराजित होते हैं।
9. हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला 'ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम:' दूसरा मंत्र- 'ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा।' मंत्र का जाप कर सकते हैं।
10. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
उपासना का लाभ : माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। शांति कर्म में, धन-धान्य के लिए, पौष्टिक कर्म में, वाद-विवाद में विजय प्राप्त करने हेतु देवी उपासना व देवी की शक्तियों का प्रयोग किया जाता हैं। देवी का साधक भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर लेते हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकाल कर सही करती हैं।
सावधानी : बगलामुखी की साधना में पवित्रता, नियम और शौचादि का ध्यान रखना जरूरी है। इस साधना को किसी जानकार से पूछकर या जानकर ही करना चाहिए। कुछ लोग आकर्षण, मारण तथा स्तंभन कर्म आदि तामसी प्रवृति से संबंधित कर्म भी किए जाते हैं, लेकिन इनमें सावधानी नहीं रखी गई तो हानि होती है।
युद्ध में दिलाती है विजय : कोर्ट-कचहरी और युद्ध में विजय दिलाने और वाक् शक्ति प्रदान करने वाली देवी- माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। कहते हैं कि नलखेड़ा में कृष्ण और अर्जुन ने महाभारत के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी। देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है, क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्ररूपिणी हैं। इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।
बगलामुखी की कथा (story of baglamukhi) : मां बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक आठवीं महाविद्या है। बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। एक अन्य मान्यता अनुसार देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से संबंधित हैं। परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती हैं। परन्तु, कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से संबंध भी रखती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा। इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेक लोग संकट में पड़ जाते हैं और संसार की रक्षा करना असंभव हो जाता है। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था जिसे देखकर भगवान विष्णुजी चिंतित हो गए।
इस समस्या का कोई हल न पाकर वे भगवान शिव का स्मरण करने लगे। तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में ही जाएं। तब भगवान विष्णु हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर कठोर तप करते हैं। भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुन्दरी को प्रसन्न किया तथा देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुईं और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करतीं महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं। त्र्यैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर विष्णुजी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका।
तीन ही शक्तिपीठ हैं: भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।