Khandoba Jayanti 2024: महाराष्ट्र के कई घरों में दिवाली के दूसरे दिन से बैंगन का सेवन प्रारंभ करते हैं जबकि कई अन्य घरों में मार्गशीर्ष की शुक्ल षष्ठी यानी चंपा षष्ठी के दिन से बैंगन का सेवन करना प्रारंभ करते हैं। चंपा षष्ठी के दिन खंडोबा यानी मल्हारी मार्तंड भगवान की जयंती भी रहती है। बैंगन का सेवन करने से पहले बैंगन की सब्जी आदि व्यंजन बनाकर भोग लगाया जाता है। इसके बाद बैंगन का प्रसाद वितरण किया जाता है।
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बैंगन छठ की कथा क्या है?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इस दिन भगवान शिव ने मणि-मल्ह नामक दो असुरों से अपने भक्तों की रक्षा के लिए भैरव स्वरूप धारण करके उनका वध किया था।
क्यों कहते हैं बैंगन छठ?
बैंगन छठ, या चंपा षष्ठी, हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक, मार्गशीर्ष यानी अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला त्योहार है। इस दिन भगवान शिव के खंडोबा स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन शिवलिंग पर बैंगन और बाजरा चढ़ाया जाता है, इसलिए इसे बैंगन छठ कहा जाता है। महाराष्ट्र में जैजूरी खंडोबा का मुख्य स्थान है, जो होळ गाँव के पास है। इंदौर के शासक इसी होळ गाँव के होने से होलकर कहलाए और खंडोबा उनके कुल देवता। चम्पा षष्ठी उत्सव के अवसर पर 15 दिसंबर को इसका समापन होगा। इस अवसर पर बाजरे की रोटी एवं बैंगन के भुरते का प्रसाद वितरित किया जाएगा।
होलकर राजवंश के कुल देवता मल्हारी मार्तण्ड की चंपा षष्ठी की रात्रि बैंगन छठ का आयोजन होता है। खंडोबा को ही मल्हारी मार्तण्ड भी कहा गया। चौंसठ भैरवों में मार्तण्ड भैरव भी एक हैं। वैसे सूर्य को भी मार्तण्ड कहा गया है। जैसे बिहार में छठ पूजा, सूर्य पूजा का महत्व है, उसी तरह महाराष्ट्र में बैंगन छठ का। महाराष्ट्र और सुदूर मालवा में बसे मराठी भाषियों में मल्हारी मार्तण्ड की नवरात्रि का आयोजन मार्गशीर्ष प्रतिपदा से मार्गशीर्ष शुद्ध षष्ठी तक पांच दिन के उपवास के उपरांत मल्हारी मार्तण्ड की 'षडरात्रि' 'बोल सदानंदाचा येळकोट येळकोट' के साथ संपन्न होती है।