डोल ग्यारस का महत्व श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था। एकादशी व्रत सबसे महान व्रत में आता है। इसके प्रभाव से सभी दुखों का नाश होता है, समस्त पापों का नाश करने वाली इस ग्यारस को परिवर्तनी ग्यारस कहा जाता है।
1.डोल ग्यारस की पूजा एवम व्रत का पुण्य वाजपेय यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ के तुल्य माना जाता है।
2.इस दिन भगवान विष्णु एवं बाल कृष्ण की पूजा की जाती है, जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता है।
3.इस दिन विष्णु के अवतार की पूजा की जाती है उनकी पूजा से त्रिदेव पूजा का फल मिलता है।
4.यह प्रश्न युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से किया था, जिसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा, इस दिन भगवान विष्णु अपनी शैया पर सोते हुए अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तनी ग्यारस कहा जाता है।
5.इसी दिन दानव बलि जो कि एक धर्म परायण दैत्य राजा था, जिसने तीनों लोकों में अपना स्वामित्व स्थापित किया था। उससे भगवान विष्णु ने वामन रूप में उसका सर्वस्व दान में ले लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दिया था।
6.इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात सूरज पूजा। इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवाकर उन्हें नए कपड़े पहनाए एवं उन्हें शुद्ध कर धार्मिक कार्यों में सम्मिलित किया। इस प्रकार इसे डोल ग्यारस भी कहा जाता है।
7.इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था। इस दिन मेले एवम झांकियों का आयोजन किया जाता है। माता यशोदा की गोद भरी जाती है। कृष्ण भगवान को डोले में बैठाकर झांकियां सजाई जाती हैं। कई स्थानों पर मेले एवम नाट्य नाटिका का आयोजन भी किया जाता है।
8.डोल ग्यारस पूजा विधि-
डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
इस दिन चावल, दही एवम चांदी का दान उत्तम माना जाता है।
रतजगा कर जश्न के साथ यह व्रत पूरा किया जाता है।
इसकी कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती हैं।
धार्मिक मनुष्य को इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान कृष्ण का बाल श्रृंगार कर उनके लिए डोल तैयार किए जाते हैं।
जन्माष्टमी व्रत के फल की प्राप्ति हेतु इस ग्यारस के व्रत को करना विशेष माना जाता है।
इस व्रत में स्वच्छता का अधिक ध्यान रखा जाता है।
9.डोल ग्यारस सेलिब्रेशन- डोल ग्यारस मुख्य रूप से मध्यप्रदेश एवं उत्तरी भारत में मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों से भगवान् कृष्ण की मूर्ति को डोले में सजाकर नगर भ्रमण एवं नौका बिहार के लिए ले जाया जाता है।
10.बाल रूप में कृष्ण जी पहली बार इस दिन माता यशोदा और पिता नन्द के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे। डोला को बहुत सुंदर भव्य रूप में झांकी की तरह सजाया जाता है। फिर एक बड़े के साथ नगर में ढोल-नगाड़ों, नाच-गानों के साथ इनकी यात्रा निकलती है। पूरे नगर में प्रसाद बांटा जाता है।
11.जिस स्थान में पवित्र नदियां जैसे नर्मदा, गंगा, यमुना आदि रहती है, वहां कृष्ण जी को नाव में बैठाकर घुमाया जाता है। नाव को एक झांकी के रूप में सजाते हैं और फिर ये झांकी उस जगह के हर घाट में जा जाकर कृष्ण के दर्शन देती है और प्रसाद बांटती है। कृष्ण की इस मनोरम दृश्य को देखने के लिए घाट-घाट में लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। 3-4 घंटे की झांकी के बाद, कृष्ण जी को वापस मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया जाता है।