पौराणिक काल से कार्तिक के महीने में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। दीपावली के पूर्व आने वाली इस द्वादशी को गाय तथा बछड़ों की पूजा-सेवा की जाती है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार द्वादशी के दिन सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर गाय तथा बछडे़ की पूजा करनी चाहिए। द्वादशी के व्रत में गाय के दूध से बने खाद्य पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 24 अक्टूबर तथा कई स्थानों पर 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
कार्तिक कृष्ण द्वादशी के दिन कैसे करें पूजन -
सबसे पहले द्वादशी का व्रत करने वालों को सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
तत्पश्चात दूध देने वाली गाय को उसके बछडे़ सहित स्नान करवा कर दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है।
दोनों को फूलों की माला पहना कर माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। तत्पश्चात उनके सींगों को सजाएं।
अब एक तांबे के पात्र में जल अक्षत, तिल, सुगंधित पदार्थ तथा फूलों को मिला लें। फिर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करें।
मंत्र- क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
अर्थात- समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा नमस्कार की गई देवस्वरूपिणी माता (गौ माता), आपको बार-बार नमस्कार करता हूं तथा आप मेरे द्वारा दिए गए इस अर्घ्य को स्वीकार करें।
तत्पश्चात गाय को उड़द दाल से बने हुए भोज्य पदार्थ खिला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करें।
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी॥
अर्थात- हे जगदंबे! हे स्वर्गवासिनी देवी! हे सर्वदेवमयी! मेरे द्वारा दिए गए इस अन्न को आप ग्रहण करें तथा समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत माता नंदिनी आप मेरा मनोरथ पूर्ण करें। इस प्रकार गाय-बछड़े का पूजन करने के पश्चात गोवत्स द्वादशी की कथा पढ़ें अथवा सुनें। इस दिन दिनभर का व्रत रखकर रात्रि को अपने इष्ट देव का पूजन करके गौमाता की आरती करें, तत्पश्चात भोजन ग्रहण करके इस व्रत को संपन्न करें।
नोट : यदि किसी के यहां गाय नहीं मिलती तो वह किसी दूसरे के घर की गाय का पूजन कर सकता है।
* यदि अपने घर के आस-पास गाय-बछडा़ न मिले, तो उस परिस्थिति में गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की आकृति बनाकर उनकी पूजा भी की जा सकती है।