प्रदोष काल व्यापिनी अष्टमी को जीमूतवाहन का पूजन होता है। इस व्रत के लिए यह भी आवश्यक है कि पूर्वाह्न काल में पारण हेतु नवमी तिथि प्राप्त हो। इस वर्ष अष्टमी रविवार दिनांक 22 सितंबर को दिन में 2:10 तक है, इसीलिए पूर्व दिन सप्तमी को प्रदोष व्यापिनी अष्टमी में व्रत करने पर पारण करने के लिए दूसरे दिन पूर्वाह्न में नवमी प्राप्त नहीं हो रही है।
अत: उदया अष्टमी रविवार को उपवासपूर्वक प्रदोष काल में ही जीमूतवाहन की पूजा करके नवमी में सोमवार को प्रात: पारण करना चाहिए। इस वर्ष 22 सितंबर को जीवित्पुत्रिका का उपवास तथा प्रदोष काल में (शाम 4:28 से रात्रि 7:32 तक) पूजन होगा। दिनांक 23 सितंबर सोमवार को व्रत का पारण होगा।
स्नान से पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोष काल में (शाम 4:28 से रात्रि 7:32 तक) गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर स्वच्छ कर दें। साथ ही एक छोटा-सा तालाब भी वहां बना लें।
तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें। शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल (या मिट्टी) के पात्र में स्थापित कर दें।
फिर उन्हें पीली और लाल रुई से अलंकृत करें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें। मिट्टी तथा गाय के गोबर से मादा चील और मादा सियार की मूर्ति बनाएं। उन दोनों के मस्तकों पर लाल सिन्दूर लगा दें।
अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्रों से पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात जीवित्पुत्रिका व्रत एवं महात्म्य की कथा का श्रवण करना चाहिए।