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काल भैरव अष्टमी पर करें इस तरह भैरवनाथ की पूजा तो होंगे वे प्रसन्न

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अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन 7 दिसंबर सोमवार को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी। इस दिन भैरवबाबा की विधिवत पूजा और अर्चना करने से सभी तरह के कष्‍ट दूर हो जाते हैं। सभी तरह के जादू, टोने से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति शांति पाता है। कालभैरव अष्टमी पर किस तरह करें भैरवनाथ की पूजा आओ संक्षिप्त में जानते हैं।
 
 
तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा रात में की जाती है इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। शास्‍त्रों के मुताबिक काल भैरव अष्टमी के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। भैरव बाबा की पूजा एक तो साधारण होती है और दूसरी तांत्रिक। यहां साधारण पूजा के बारे में जानिए। इस दिन भगवान शिव के स्‍वरूप काल भैरव की पूजा करनी चाहिए।
 
 
काल भैरव की पूजा विधि : (Kaal Bhairav Puja Vidhi ) 
1. इस दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया आदि कर स्वच्छ हो जाएं।
2. एक लकड़ी के पाट पर सबसे पहले शिव और पार्वतीजी के चित्र को स्थापित करें। फिर काल भैरव के चित्र को स्थापित करें।
3. जल का छिड़काव करने के बाद सभी को गुलाब के फूलों का हार पहनाएं या फूल चढ़ाएं।
4. अब चौमुखी दीपक जलाएं और साथ ही गुग्गल की धूप जलाएं।
5. कंकू, हल्दी से सभी को तिलक लगाकर हाथ में गंगा जल लेकर अब व्रत करने का संकल्प लें।
6. अब शिव और पार्वतीजी का पूजन करें और उनकी आरती उतारें।
7. फिर भगवान भैरव का पूजन करें और उनकी आरती उतारें।
8. इस दौरान शिव चालीसा और भैरव चालीसा पढ़ें।
9. ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः का जाप करें। इसके उपरान्त काल भैरव की आराधना करें।
10. अब पितरों को याद करें और उनका श्राद्ध करें। 
11. व्रत के सम्पूर्ण होने के बाद काले कुत्‍ते को मीठी रोटियां खिलाएं या कच्चा दूध पिलाएं।
12 अंत में श्वान का पूजन भी किया जाता है।
13. अर्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें।
14. इस दिन लोग व्रत रखकर रात्रि में भजनों के जरिए उनकी महिमा भी गाते हैं।
 
 
भैरव भोग : कई लोग इस दिन उन्हें शराब का भोग लगाते हैं। हलुआ, पूरी और मदिरा उनके प्रिय भोग हैं। भैरव मंदिर में जाकर उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करें। इसके अलावा इमरती, जलेबी और 5 तरह की मिठाइयां भी अर्पित की जाती हैं।
 
 
काल भैरव मंत्र:
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
 
अन्य मंत्र:
ॐ कालभैरवाय नम:।
ॐ भयहरणं च भैरव:।
ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्।
 
नारद पुराण के अनुसार कालभैरव की पूजा करने से मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्‍य किसी रोग से लम्बे समय से पीड़ित है तो वह रोग, तकलीफ और दुख भी दूर होती हैं।
 
 
काल भैरव आरती:
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।। 
 

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