Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कजली/ सातुड़ी तीज आज : कैसे करें व्रत, जानिए संपूर्ण पूजा विधि

Advertiesment
हमें फॉलो करें satudi teej 2018
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी से पांच दिन पहले जो तीज आती है उसे सातुड़ी तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नीम की पूजा की जाती है। यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पालकी को सजाकर उसमें तीज माता की सवारी निकाली जाती है। इसमें हाथी, घोड़े, ऊंट, तथा कई लोक नर्तक और कलाकार हिस्सा लेते हैं। महिलाएं और लड़कियां इस दिन परिवार के सुख शांति की मंगल कामना में व्रत रखती है। इस दिन सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले उठकर धम्मोड़ी यानि हल्का नाश्ता करने का रिवाज है। 
 
जिस प्रकार पंजाब में करवा चौथ के दिन सुबह सरगी की जाती है इसके बाद कुछ नहीं खाया जाता और दिन भर व्रत चलता है उसी प्रकार इस व्रत में भी एक समय आहार करने के पश्चात दिन भर कुछ नहीं खाया जाता है। शाम को चंद्रमा की पूजा कर कथा सुनी जाती है। नीमड़ी माता की पूजा करके नीमड़ी माता की कहानी सुनी जाती है। 
 
चांद निकलने पर उसकी पूजा की जाती है। चांद को अर्घ्य दिया जाता है। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है। इसके बाद सत्तू के स्वादिष्ट व्यंजन खाकर व्रत तोड़ा जाता है।
 
सातुड़ी तीज पर सवाया, जैसे सवा किलो या सवा पाव के सत्तू बनाने चाहिए। सत्तू अच्छी तिथि या वार देख कर बनाने चाहिए। मंगलवार और शनिवार को नहीं बनाए जाते हैं। तीज के एक दिन पहले या तीज वाले दिन भी बना सकते हैं। सत्तू को पिंड के रूप जमा लेते है। उस पर सूखे मेवे इलायची और चांदी के वर्क से सजाएं। बीच में लच्छा, एक सुपारी भी लगा सकते हैं। पूजा के लिए एक छोटा लडडू (तीज माता के लिए ) बनाना चाहिए। कलपने के लिए सवा पाव या मोटा लडडू बनना चाहिए व एक लडडू पति के हाथ में झिलाने के लिए बनाना चाहिए। कुंवारी कन्या लडडू अपने भाई को झिलाती है। सत्तू आप अपने सुविधा हिसाब से ज्यादा मात्रा में या कई प्रकार के बना सकते हैं। सत्तू चने,चावल, गेंहू ,जौ आदि के बनते हैं। तीज के एक दिन पहले सिर धोकर हाथों व पैरों पर मेहंदी लगानी चाहिए।
 
सातुड़ी तीज पूजन की सामग्री- एक छोटा सातू का लडडू, नीमड़ी, दीपक, केला, अमरुद या सेब, ककड़ी, दूध मिश्रित जल, कच्चा दूध, नींबू, मोती की लड़/नथ के मोती, पूजा की थाली, जल कलश
 
सातुड़ी तीज पूजन की तैयारी- मिट्‍टी व गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा-सा तालाब बनाकर (घी, गुड़ से पाल बांध कर) नीम वृक्ष की टहनी को रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध मिश्रित जल भर देते हैं और किनारे पर एक दिया जला कर रख देते हैं। नीबू, ककड़ी, केला, सेब, सातु, रोली, मौली, अक्षत आदि थाली में रख लें। एक छोटे लोटे में कच्चा दूध लें।
 
सातुड़ी तीज पूजन की विधि : इस दिन पूरे दिन सिर्फ पानी पीकर उपवास किया जाता है और सुबह सूर्य उदय से पहले धमोली की जाती है इसमें सुबह मिठाई, फल आदि का नाश्ता किया जाता है। सुबह नहा धोकर महिलाएं सोलह बार झूला झूलती हैं, उसके बाद ही पानी पीती है।  
 
सायंकाल के बाद औरते सोलह श्रृंगार कर तीज माता अथवा नीमड़ी माता की पूजा करती हैं। सबसे पहले तीज माता को जल के छींटे दें। रोली के छींटे दें व चावल चढ़ाएं। नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली व काजल की तेरह-तेरह बिंदिया अपनी अंगुली से लगाएं। मेहंदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगानी चाहिए और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए। नीमड़ी माता को मौली चढाएं। मेहंदी, काजल और वस्त्र (ओढनी) चढ़ाएं। दीवार पर लगाई बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका दें। नीमड़ी को कोई फल, सातु और दक्षिणा चढ़ाएं।
 
पूजा के कलश पर रोली से तिलक करें और लच्छा बांधें। किनारे रखे दीपक के प्रकाश में नींबू, ककड़ी, मोती की लड़, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला, दीपक की लौ, सातु का लडडू आदि का प्रतिबिम्ब देखें और दिखाई देने पर इस प्रकार बोलना चाहिए 'तलाई में नींबू दीखे, दीखे जैसा ही टूटे' इसी तरह बाकि सभी वस्तुओं के लिए एक-एक करके बोलना चाहिए। इस तरह पूजन करने के बाद सातुड़ी तीज माता की कहानी सुननी चाहिए, नीमड़ी माता की कहानी सुननी चाहिए, गणेश जी की कहानी व लपसी तपसी की कहानी सुननी चाहिए। रात को चंद्र उदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। 
 
चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि : चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाएं। फिर चांद को भोग अर्पित करें व चांदी की अंगूठी और आंखें (गेंहू) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते समय थोड़ा-थोड़ा जल चंद्रमा की मुख की और करके गिराते रहें। चार बार एक ही जगह खड़े हुए घुमें। परिक्रमा लगाएं। अर्घ्य देते समय बोलें, 'सोने की सांकली, मोतियों का हार, चांद ने अरग देता, जीवो वीर भरतार' सत्तू के पिंडे पर तिलक करें व भाई / पति, पुत्र को तिलक करें। पिंडा पति / पुत्र से चांदी के सिक्के से बड़ा करवाएं। यानी जो आपने सत्तु का बड़ा सा केक बनाया है उसे चांदी के सिक्के से पुत्र या पति को तोड़ने के लिए कहें। इस क्रिया को पिंडा पासना कहते हैं। पति पिंडे में से सात छोटे टुकड़े करते हैं, व्रत खोलने के लिए यही आपको सबसे पहले खाना है। पति बाहर हो तो सास या ननद पिंडा तोड़ सकती है। सातु पर ब्लाउज़, रुपए रखकर बयाना निकाल कर सासुजी के चरण स्पर्श कर कर उन्हें देना चाहिए। सास न हो तो ननद को या ब्राह्मणी को दे सकते हैं। आंकड़े के पत्ते पर सातु खाएं और अंत में आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार कच्चा दूध लेकर पिएं इसी तरह सात बार पानी पिएं।
 
दूध पीकर इस प्रकार बोलें- 'दूध से धायी, सुहाग से कोनी धायी, इसी प्रकार पानी पीकर बोलते हैं- पानी से धायी, सुहाग से कोनी धायी' सुहाग से कोनी धायी का अर्थ है पति का साथ हमेशा चाहिए, उससे जी नहीं भरता। बाद में दोने के चार टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक देना चाहिए।
 
यह व्रत सिर्फ पानी पीकर किया जाता है। चांद उदय होते नहीं दिख पाए तो चांद निकलने का समय टालकर आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोल सकते हैं। इस तरह तीज माता की पूजा सम्पन्न होती है। इस व्रत में गर्भवती स्त्री फलाहार कर सकती हैं। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कुंडली में गुरु कमजोर है, तो बृहस्पतिवार को करें यह 5 उपाय -