वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी चतुर्दशी को भगवान नृसिंह देव का प्रकटोत्सव मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखकर उनकी पूजा करने से सभी तरह के संकट समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति सभी तरह के सुख पाता है। आओ जानते हैं श्री हरि विष्णु के इस अवतार की 10 रोचक बातें।
1. भगवान श्रीविष्णु के 24 अवतारों में संभवत: 14वें नंबर के अवतार हैं और 10 अवतारों के क्रम में चौथा अवतार हैं।
2. उन्हें श्रीहरि विष्णु का आवेश अवतार माना जाता है।
3. भगवान के अनेक अवतारों में 10 से लेकर 16 कलाएं प्रकट होती हैं। वराह और नृसिंह अवतार 10 से 11 कला पूर्ण थे।
4. इस अवतार में भगवान विष्णु का शरीर आधे मनुष्य और आधे सिंह के समान था।
5. भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध कर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी।
6. सभी तरह के उपक्रम के बाद भी भक्त प्रहलाद को हिरण्यकशिपु नहीं मार सकता तो खुद ही उसने प्रहलाद को मारने की सोची। प्रहलाद को पकड़ कर राजभवन में लाया और उसने कहा तू कहता है कि तेरे विष्णु सभी जगह है तो क्या इस खंबे में भी है? प्रहलाद कहता है कि हां। तब हिरण्यकशिपु खंबे में एक लात मारता है। तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए। चारों ओर भय छा गया।
7. ब्रह्मा के वरदान के अनुसार हिरण्यकश्यप को कोई भी न रात में, न दिन में, न देवता और न असुर, न मनुष्य न पशु, न आकाश में और न पाताल में, न भीतर और न बाहर नहीं मार सकता था। तब श्रीहरि विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु को उठाया और वे उसे महल की देहली पर ले गए। उस वक्त न दिन था न रात। श्रीहरि उन्हें न धरती पर मारा न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से बल्की देहली पर बैठकर अपनी जंघा पर रखकर उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती चीर दी।
8. भगवान शिव को नृसिंह भगवान के क्रोध को शांत करने के लिए शरभावतार लेना पड़ा था। भगवान शिव का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है। भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे गए तथा उनकी स्तुति करने लगे, लेकिन नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि फिर भी शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। तब नृसिंह भगवान ने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
उल्लेखनीय यह कि शिवमहापुराण की कथा के अनुसार इनके शरीर का आधा भाग सिंह का, तथा आधा भाग पक्षी का था। संस्कृत साहित्य के अनुसार वे दो पंख, चोंच, सहस्र भुजा, शीश पर जटा, मस्तक पर चंद्र से युक्त थे। वे शेर और हाथी से भी अधिक शक्तिशाली हैं। बाद के साहित्य में शरभ एक 8 पैर वाले हिरण के रूप में वर्णित है।
9. फाल्गुन शुक्ल पक्ष में नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है इसके बाद वैशाख माह की चतुर्दशी को नृसिंह चतुर्दशी मनाई जाती है। आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम से 16 किलोमीटर की दूरी पर सिंहाचल पर्वत पर भगवान नृसिंह का मंदिर स्थापित है। मान्यता है कि इसकी स्थापना भक्त प्रहृलाद ने की थी।
10. भगवान नृसिंह की कथा : भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस अवतार की कथा इस प्रकार है- धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया।
हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।