Magh Purnima Kali Pooja: माघ पूर्णिमा के दिन यूं तो भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा होती है, परंतु पूर्णिमा होने के कारण इस दिन माता कालिका की पूजा होती है। आओ जानते हैं काली पूजा क्यों होती है, क्या है इसका महत्व और लाभ।
महत्व और लाभ : पूर्णिमा के दिन माता कालिका की पूजा करने से संतान सुख मिलता है। माता कालिका सभी तरह की मनोकामना पूर्ण करती है। माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं। जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं। परंतु उनकी पूजा या साधना को बहुत ही सावधानी और नियमपूर्वक करना होता है अन्यथा प्रकोप भी झेलना पड़ सकता है।
माता काली के चार रूप : 1.दक्षिणा काली, 2.शमशान काली, 3.मातृ काली और 4.महाकाली।
पूर्णिमा व्रत की कथा :
कांतिका नगर में धनेश्वर नाम के ब्राह्मण अपना जीवन भिक्षा मांगकर अपना जीवन निर्वाह था। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, परंतु सभी ने उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया। फिर किसी ने ब्राह्मण दंपत्ति को 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा। उन्होंने विधिवत पूजा करके आराधना की और तब उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां काली ने दोनों को संतान प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ। इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाते जाना है जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं।
इसके बाद ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया और उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई। एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा। काशी में धोखे से देवदास का विवाह हो गया। देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं।