Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मकर संक्रांति के दौरान दक्षिण भारत में पोंगल उत्सव, कैसे मनाते हैं त्योहार, जानिए

Advertiesment
हमें फॉलो करें मकर संक्रांति के दौरान दक्षिण भारत में पोंगल उत्सव, कैसे मनाते हैं त्योहार, जानिए

अनिरुद्ध जोशी

उत्तर भारत में मकर संक्रांति तो दक्षिण भारत में पोंगल उत्सव या त्योहार मनाया जाता है। दूसरी ओर पूर्वोत्तर भातर में बीहू पर्व की धमू रहती है। दक्षिण भारतीय किसानों का पार्व पोंगल पर्व गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का मिला-जुला रूप है। जिस प्रकार उत्तर भारत में नववर्ष की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है उसी प्रकार दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है। यह त्योहार प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के आसपास मनाया जाता है। लेकिन मुख्य पर्व पौष मास की प्रतिपदा को मनाया जाता है। पोंगल अर्थात खिचड़ी का त्योहार सूर्य के उत्तरायण होने के पुण्यकाल में मनाया जाता है।
 
 
पोंगल का महत्व : ( Pongal Festival ) पोंगल के पहले अमावस्या को लोग बुरी रीतियों का त्यागकर अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह कार्य 'पोही' कहलाता है तथा जिसका अर्थ है- 'जाने वाली।' पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है। पोही के अगले दिन अर्थात प्रतिपदा को दिवाली की तरह पोंगल की धूम मच जाती है। दक्षिण भारत में धान की फसल समेटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाते हैं और भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप, सूर्य, इन्द्रदेव तथा खेतिहर मवेशियों की पूजा और आराधना की जाती है।

 
कैसे मनाते हैं त्योहार?
यह उत्सव लगभग 4 दिन तक चलता है। पहले दिन भोगी, दूसरे दिन सूर्य, तीसरे दिन मट्टू और चौथे दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है। पहले दिन भोगी पोंगल में इन्द्रदेव की पूजा, दूसरे दिन सूर्यदेव की पूजा, तीसरे दिन को मट्टू अर्थात नंदी या बैल की पूजा और चौथे दिन कन्या की पूजा होती है, जो काली मंदिर में बड़े धूमधाम से की जाती है।
 
पहले दिन कूड़ा-करकट एकत्र कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की और तीसरे दिन पशुधन की पूजा होती है। चौथे दिन काली पूजा होती है। अर्थात दिवाली की तरह रंगाई-पुताई, लक्ष्मी की पूजा और फिर गोवर्धन पूजा की तरह मवेशियों की पूजा। घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है, नए वस्त्र और बर्तन खरीदते हैं। बैलों और गायों के सींग रंगे जाते हैं। सांडों-बैलों के साथ भाग-दौड़कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी होता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नक्षत्रों के शुभ और अशुभ को जानकर करें कोई कार्य