Pradosh vrat june 2022 : हर माह में दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का प्रदोष। त्रयोदशी तिथि के दिन यह व्रत रखा जाता है। आओ जानते हैं अगला प्रदोष व्रत कब है, पूजा के मुहूर्त और विधि के साथ ही मंत्र और महत्व भी जानें।
महत्व : प्रदोष का व्रत मां पार्वती और भगवान शिव को समर्पित बेहद ही महत्वपूर्ण व्रत है। मान्यता है कि, इस व्रत को करने से व्यक्ति को अच्छी स्वास्थ्य और लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत जिसे दक्षिण भारत में लोग प्रदोषम के नाम से जानते हैं। प्रदोष व्रत रखने से कुंडल के चंद्रदोष और सर्पदोष समाप्त हो जाते हैं। रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। सर्वकार्य सिद्धि हेतु यदि कोई भी व्यक्ति 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं शीघ्रता से पूर्ण होती है।
डेट और तिथि : आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को यानी तेरस को यह व्रत रखा जाएगा। अंग्रेजी माह के अनुसार इसकी डेट है 26 जून 2022 रविवार। जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं। रवि प्रदोष का संबंध सीधा सूर्य से होता है। सूर्य से संबंधित होने के कारण नाम, यश और सम्मान के साथ ही सुख, शांति और लंबी आयु दिलाता है। इससे कुंडली में अपयश योग और सूर्य संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
शिव मंत्र : ॐ नम: शिवाय, ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।, ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ। या जपें ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्। उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात्, ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
पूजा का मुहूर्त :
तिथि : त्रयोदशी तिथि 26 जून को रात्रि 03:25 तक।
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:33 से 12:28 तक।
अमृत काल मुहूर्त : सुबह 10:26 से 12:13 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:18 से 03:13 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:38 से 07:02 तक।
सायाह्न संध्या मुहूर्त शाम 06:52 से 07:54 तक।
10 खास पूजन सामग्री-
1. ताजे पुष्प एवं माला
2. बिल्वपत्र
3. धतूरा
4. आंकड़े का फूल
5. गंगा जल तथा पानी
6. भांग
7. कपूर
8. धूप
9. गाय के शुद्ध घी का दीया
10. काले तिल।
पूजा की विधि : व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें। नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने। पूजाघर को साफ और शुद्ध करें। गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें। इस मंडप के नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं। फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें।