प्रत्येक माह में 2 चतुर्दशी और वर्ष में 24 चतुर्दशी होती है। चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं। चतुर्दशी तिथि रिक्ता संज्ञक है एवं इसे क्रूरा भी कहते हैं। यह उग्रता देने वाली तिथि हैं। इसीलिए इसमें समस्त शुभ कार्य वर्जित है। इस बार ज्येष्ठ माह की कृष्ण चतुर्दशी को व्रत रखा जाएगा जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 8 जून 2021 मंगलवार को 11 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ होगी और 9 जून बुधवार को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी। इसे मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं, जो 8 जून को ही मनाई जाएगी। आओ जानते हैं कि पुराणों में शिव चतुर्दशी का क्या है महत्व।
गर्ग संहिता के मत से-
उग्रा चतुर्दशी विन्द्याद्दारून्यत्र कारयेत्।
बन्धनं रोधनं चैव पातनं च विशेषतः।।
1. पुराणों के अनुसार चतुर्दशी (चौदस) के देवता हैं भगवान शंकर। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है।
2. पुराणों के अनुसार पांच चतुर्थियों का खास महत्व है- भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी, कार्तिक कृष्ण की कृष्ण, रूप या नरक चतुर्दशी, कार्तिक शुक्ल की बैकुण्ठ चतुर्दशी, वैशाख शुक्ल माह की विनायक चतुर्दशी और शिव चतुर्दशी का खासा महत्व है।
3. इस तिथि की दिशा पश्चिम है। पश्चिम के देवता शनि हैं। चतुर्दशी तिथि चन्द्रमा ग्रह की जन्म तिथि है। चतुर्दशी की अमृतकला को स्वयं भगवान शिव ही पीते हैं।
4. पुराणों के अनुसार अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है।
5. शिव चतुर्दशी व्रत में भगवान शिव के साथ माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय जी और शिवगणों की पूजा की पूजा का महत्व है। शिव पंचाक्षरी मंत्र - 'ॐ नम: शिवाय'। का इस दिन जप करना चाहिए।
6. ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए चतुर्दशी तिथि का महत्व है। फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है और श्रावणमास की चतुर्दशी को शिवरात्रि। बाकी सभी चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि कहते हैं।
7. इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।