26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि के साथ की बैद्यनाथ जयंती भी रहती है। 12 ज्योतिर्लिगों में से 9वां ज्योतिर्लिंग स्थित है झारखंड के देवघर नामक स्थान पर। इस ज्योतिर्लिंग की प्रसिद्ध बाबा बैजनाथ ने नाम से है। महाशिवरात्रि के समय यहां पर विशेष उत्सव रहता है और बाबा की जयंती बनाई जाती है। देवघर का अर्थ होता है देवताओं का घर और यहां के शिवलिंग को कामनालिंग भी कहते हैं। अर्थात जो सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का रहस्य:-
कहते हैं कि यहां स्थापित शिवलिंग रावण द्वार है। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वर के रूप में शिवलिंग दिया था और कहा था कि तुम शिवलिंग ले जा सकते हो किंतु यदि रास्ते में इसे कहीं रख दोगे तो यह वहीं अचल हो जाएगा, तुम फिर इसे उठा न सकोगे।.. परंतु रास्ते में रावण को लघुशंका लगी तो उसने शिवलिंग को एक चरवाहे को हाथ में थमाया और कहा कि इसे नीचे मत रखना मैं अभी आया लघुशंका करके। परंतु वह चरवाहा वह शिवलिंग संभाल नहीं पाया और नीचे रख दिया।
रावण जब लौटकर आया तब बहुत प्रयत्न करने के बाद भी उस शिवलिंग को किसी प्रकार भी उठा न सका। अंत में थककर उस पवित्र शिवलिंग पर अपने अंगूठे का निशान बनाकर उसे वहीं छोड़कर लंका को लौट गया। तत्पश्चात ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने वहां आकर उस शिवलिंग का पूजन किया। इस प्रकार वहां उसकी प्रतिष्ठा कर वे लोग अपने-अपने धाम को लौट गए। यही ज्योतिर्लिंग 'श्रीवैद्यनाथ' के नाम से जाना जाता है।
पुराणों में बताया गया है कि जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, उसे अपने समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है। उस पर भगवान् शिव की कृपा सदा बनी रहती है। दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट उसके पास भूलकर भी नहीं आते भगवान् शंकर की कृपा से वह सारी बाधाओं, समस्त रोगों-शोकों से छुटकारा पा जाता है। उसे परम शांतिदायक शिवधाम की प्राप्ति होती है।
जयदुर्गा वैद्यनाथ शक्तिपीठ:- झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ धाम जहां माता का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान हार्दपीठ से भी जाना जाता है। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और शिव को वैद्यनाथ कहते हैं। बैद्यनाथ धाम में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नौवां ज्योतिर्लिग है। यह भारत देश का एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी है। यही कारण है कि इस स्थल को हृदय पीठ या हार्द पीठ भी कहा जाता है।
देवघर की शक्ति साधना में भैरव की प्रधानता है और बैद्यनाथ स्वयं यहां भैरव हैं। इनकी प्रतिष्ठा के मूल में तांत्रिक अभिचारों की ही प्रधानता है। तांत्रिक ग्रंथों में इस स्थल की चर्चा है. देवघर में काली और महाकाल के महत्व की चर्चा तो पद्मपुराण के पातालखंड में भी की गयी है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का पंचशूल:-
1. विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के दो दिन पूर्व यह पंचशूल मंदिरों से उतारे जाते हैं।
2. पंचशूल उतारे जाने की इस परंपरा को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है।
3. सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है।
4. इस दौरान बाबा वैद्यनाथ और मता पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। हटाए गए गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।