परिचय : समाज-सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म मोरबी के पास काठियावाड़ क्षेत्र जिला राजकोट, गुजरात में 12 फरवरी सन् 1824 में हुआ। तिथि के अनुसार फल्गुन मास की कृष्ण दशमी के दिन उनका जन्म हुआ था। मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण उनका नाम मूलशंकर रखा गया था। उनकी माता का नाम अमृतबाई और पिता का नाम अंबाशकर तिवारी था। उन्होंने 1846, 21 वर्ष की आयु में सन्यासी जीवन का चुनाव किया और अपने घर से विदा ली। उनके गुरु विरजानंद थे। उन्होंने अंग्रेजों से जमकर लौहा लिया और ऐसे कहते हैं कि जिसके चलते उनके खिलाफ एक षड्यंत्र के तहत उन्हें जहर दे दिया गया। जहर देने के बाद 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन संध्या के समय उनकी मृत्यु हो गई।
आर्य समाज : स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ने सन् 1875 में 10 अप्रैल गुड़ी पड़वा के दिन मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्यसमाज का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में देखने को मिलता है। आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है। इस समाज का उद्देश्य वैदिक धर्म को पुन: स्थापित कर संपूर्ण हिन्दू समाज को एकसूत्र में बांधना है। जातिप्रथा, छुआछूत, अंधभक्ति, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र, झूठे कर्मकाण्ड आदि के सख्त खिलाफ है आर्य समाज। आर्य समाज के लोग पुराणों की धारणा को नहीं मानते हैं और एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं।
आर्य समाज के अनुसार ईश्वर एक ही है जिसे ब्रह्म कहा गया है। सभी हिन्दुओं को उस एक ब्रह्म को ही मानना चाहिए। देवी और देवताओं की पूजा नहीं करना चाहिए। स्वामीजी ने अपने उपदेशों का प्रचार आगरा से प्रारम्भ किया तथा झूठे धर्मों का खण्डन करने के लिए ‘पाखण्ड खण्डनी पताका’ लहराई। स्वामी जी के विचारों का संकलन इनकी कृति ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में मिलता है, जिसकी रचना स्वामी जी ने हिन्दी में की थी। दयानंद जी ने वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हुए ‘पुनः वेदों की ओर चलो का नारा दिया।’
1892-1893 ई. में आर्य समाज में दो फाड़ हो गई। फूट के बाद बने दो दलों में से एक ने पाश्चात्य शिक्षा का समर्थन किया। इस दल में लाला हंसराज और लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। इन्होंने 'दयानन्द एंग्लो-वैदिक कॉलेज' की स्थापना की। इसी प्रकार दूसरे दल ने पाश्चात्य शिक्षा का विरोध किया जिसके परिणामस्वरूप विरोधी दल के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी ने 1902 ई. में हरिद्वार में एक ‘गुरुकुल कांगड़ी’ की स्थापना की। इस संस्था में वैदिक शिक्षा प्राचीन पद्धति से दी जाती थी। इससे स्वामी श्रद्धानंद, लेखाराम और मुंशी राम आदि जुड़े थे।
शुद्धि आंदोलन : स्वामी जी ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिन्दू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया। दयानंद सरस्वती द्वारा चलाए गए ‘शुद्धि आन्दोलन’ के अंतर्गत उन लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में आने का मौका मिला जिन्होंने किसी कारणवश इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। आज भी यदि कोई ईसाई या मुस्लिम पुन: अपने पूर्वजों के धर्म में आना चाहता है तो उसके लिए आर्य समाज के दरवाजे खुले हैं जहां किसी भी प्रकार का जातिवाद, बहुदेववाद, मूर्तिपूजा आदि नहीं है। शायद इसीलिए एनी बेसेंट ने कहा था कि स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि 'भारत भारतीयों के लिए हैं।'
आर्य समाज का अर्थ : 'आर्य' का अर्थ है भद्र एवं 'समाज' का अर्थ है सभा। अत: आर्य समाज का अर्थ है 'भद्रजनों का समाज' या 'भद्रसभा'। आर्य समाज का केन्द्र एवं धार्मिक राजधानी लाहौर में थी, यद्यपि अजमेर में स्वामी दयानन्द की निर्वाणस्थली एवं वैदिक-यन्त्रालय (प्रेस) होने से वह लाहौर का प्रतिद्वन्द्वी था। लाहौर के पाकिस्तान में चले जाने के पश्चात् आर्य समाज का मुख्य केन्द्र आजकल दिल्ली है।