गोवत्स द्वादशी 2022 : आज विवाहित महिलाएं करेंगी गाय और बछड़े की पूजा Govats dwadashi
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भारत के अधिकांश हिस्सों में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी (Govatsa Dwadashi) पर्व मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं गाय और बछड़े का पूजन करके अपने संतान की लंबी उम्र का आशीष मांगती है।
भारत के प्राचीन ग्रंथों में गौ माता की महत्ता और उसमें दिव्य शाक्तियां होने का वर्णन मिलता है। शास्त्रों में कामधेनु गाय को सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला बताया गया है। मान्यतानुसार जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इस दिन को बछ बारस (Bachh Baras) भी कहते हैं। इस दिन पुत्रवती महिलाएं गाय व बछड़ों का पूजन करती हैं।
गोवत्स द्वादशी पर कैसे करें पूजन, पढ़ें विधि-Govatsa dwadashi puja vidhi
* पुत्रवती या व्रतधारी महिलाएं सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर धुले हुए साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
* तत्पश्चात गाय (दूध देने वाली) को उसके बछडे़सहित स्नान कराएं।
* अब दोनों को नया वस्त्र ओढा़एं।
* दोनों को फूलों की माला पहनाएं।
* गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और उनके सींगों को सजाएं।
* अब तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिला लें।
* अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन करें।
मंत्र- क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
* गौमाता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।
* गौमाता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें।
* दिनभर व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्ट तथा गौ माता की आरती करके भोजन ग्रहण करें।
* मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें।
* इस दिन बाजरे की ठंडी रोटी खाएं।
* इस दिन गाय के दूध, दही व चावल का सेवन न करें।
* यदि किसी के घर गाय-बछड़े न हो, तो वह दूसरे की गाय-बछड़े का पूजन करें।
* यदि घर के आसपास गाय-बछडा़ न मिले, तो गीली मिट्टी से गाय-बछडे़ की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करें।
* उन पर दही, भीगा बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाकर कुमकुम से तिलक करें, तत्पश्चात दूध और चावल चढ़ाएं।
* आज के दिन गाय के दूध से बने खाद्य पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार पुत्र की दीर्घायु के लिए विवाहित महिलाएं गोवत्स द्वादशी या बछ बारस का व्रत करती हैं। सारे यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है तथा सारे तीर्थ नहाने का जो फल प्राप्त होता है, वही फल गोवत्स द्वादशी के दिन गौ माता को हरा चारा खिलाने मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाता है।
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