Varalakshmi vrat 2025: वरलक्ष्मी व्रत पर जानें महत्व, पूजा विधि और कथा
श्रावण मास का पावन वरलक्ष्मी व्रत
Varalakshmi Vrat katha, puja vidhi: धार्मिक शास्त्रों के अनुसार माता वरलक्ष्मी को देवी महालक्ष्मी का ही अवतार माना जाता हैं, इसलिए भी उनका नाम वर और लक्ष्मी मिलाकर वरलक्ष्मी पड़ा। यह व्रत श्रावण के महीने में सावन पूर्णिमा या रक्षा बंधन के त्योहार से पहले आने वाला शुक्रवार को मनाया जाता है। खासकर दक्षिण भारत में रखा जाने वाला यह व्रत सभी मनोकामना को पूर्ण करने और पैसे की तंगी को दूर करने वाला माना गया है। इस बार यह व्रत 8 अगस्त 2025, शुक्रवार को मनाया जा रहा है।
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वरलक्ष्मी व्रत की पूजा सामग्री : नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, कलश, लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धूपस माला, हल्दी, मौली, दर्पण, कंघा, आम के पत्ते, पान के पत्ते, दही, केले, पंचामृत, कपूर दूध और जल इकट्ठा कर लें।
वरलक्ष्मी कैसे करें पूजा, जानें विधि :
- वरलक्ष्मी व्रत यानी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के तथा सावन पूर्णिमा के पहले दिन आने वाली तिथि पर प्रातः काल नित्य कर्मों से निपटकर पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- पूजा स्थान पर लकड़ी का पटिया रखकर उस पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं।
- अब उस पर माता लक्ष्मी और गणेशजी की मूर्ति स्थापित करें।
- सभी मूर्ति या चित्र को जल छिड़कर स्नान कराएं और फिर व्रत का संकल्प लें।
- अब मूर्ति या तस्वीर के दाहिने ओर अक्षत/चावल की ढेरी के उपर जलभरा कलश रखें।
- कलश के चारों ओर चंदन लगाएं, मौली बांधें और कलश की पूजा करें।
- अब माता लक्ष्मी और गणेश के समक्ष धूप-दीप और घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- इसके बाद फूल, दूर्वा, नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, माला, नैवेद्य अर्पित करें यानी षोडोषपचार पूजा करें।
- मां वरलक्ष्मी को सोल श्रृंगार अर्पित करें और उन्हें भोग लगाएं।
- इसके बाद माता के मंत्रों का जाप करें।
* 'श्री महालक्ष्म्यै नमः'
* 'ॐ श्रीं श्रियै नम:'
* 'श्री ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः'
* 'श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।'
* 'ॐ कमलवासिन्यै श्रीं श्रियै नम:।'
इनमें से किसी भी एक मंत्र का जाप 108 बार करें।
- अंत में माता की आरती करें।
- आरती करके सभी के बीच प्रसाद का वितरण कर दें।
- पूजा और आरती के बाद वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें।
बता दें कि इस दिन माता वरलक्ष्मी को 9 प्रकार फलों और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है तथा माता के 108 नामों की पूजा करके, शाम को पुन: पूजन-आरती के पश्चात सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सुहाग सामग्री और फल उपहारस्वरूप प्रदान करती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत की कथा- कहा जाता है कि वरलक्ष्मी माता की कथा भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। कथा के अनुसार मगध देश में कुंडी नामक एक नगर था। उस नगर का निर्माण सोने से हुआ था। उस नगर में चारुमती नाम की एक महिला रहती थी। चारुमती अपने पति का बहुत ख्याल रखती थी और वह माता लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी। हर शुक्रवार को चारुमती माता लक्ष्मी का व्रत करती थी और लक्ष्मी जी भी उससे से बहुत प्रसन्न रहती थी।
एक बार मां लक्ष्मी ने चारुमती के सपने में आकर उसको इस व्रत के बारे में बताया। तब चारुमती से उस नगर की सभी महिलाओं के साथ मिलकर विधिपूर्वक इस व्रत को रखा और मां लक्ष्मी की पूजा की। जैसे ही चारुमती की पूजा संपन्न हुई, वैसे ही उसके शरीर पर सोने के कई आभूषण सज गए तथा उसका घर भी धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। उसके बाद नगर की सभी महिलाओं ने भी इस व्रत को रखना शुरू कर दिया।
तभी से इस व्रत को वरलक्ष्मी व्रत के रूप में मान्यता मिल गई। और इसी कारण प्रतिवर्ष महिलाएं श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के अंतिम शुक्रवार को तथा श्रावण पूर्णिमा का पहले यह व्रत रखकर माता वरलक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करती हैं।
इस प्रकार व्रत रखने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन और सुख-समृद्धि का वरदान देती है। अपार धन-संपत्ति देने वाला यह व्रत रखने से धन की तंगी, गरीबी, आर्थिक समस्याएं आदि दूर करता है तथा घर में धन-समृद्धि और धन-धान्य बढ़ता ही चला जाता है। इसीलिए श्रावण पूर्णिमा से पहले आने वाला वरलक्ष्मी व्रत बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसी इस व्रत की खास महिमा है।
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