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Vinayak Chaturthi 2025: आश्विन मास की विनायक चतुर्थी आज, जानें पूजा विधि, मंत्र, महत्व और कथा

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हमें फॉलो करें Vinayak Chaturthi 2025 Date

WD Feature Desk

, गुरुवार, 25 सितम्बर 2025 (11:20 IST)
Ashwin Vinayak Chaturthi: आश्विन मास की विनायक चतुर्थी हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इसे विनायक चतुर्थी तथा वरद विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश जी की विधिवत पूजा की जाती है। आश्विन मास की विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह पितृपक्ष के बाद आने वाले समय का संकेत देती है और कार्तिक माह की शुरुआत से पहले की तैयारी भी मानी जाती है।ALSO READ: Sharadiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन, सभी अपनों को भेजें ये खास शुभकामना संदेश
 
विनायक चतुर्थी का महत्व: यह दिन विघ्नहर्ता गणेश की उपासना का खास दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन गणेश जी की पूजा करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इस दिन व्रत रखने से विवाह, करियर, व्यापार आदि में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। यह चतुर्थी विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ मानी जाती है जो नवीन कार्य प्रारंभ करना चाहते हैं।
 
25 सितंबर, 2025, गुरुवार: विनायक चतुर्थी  के शुभ मुहूर्त
 
आश्विन शुक्ल चतुर्थी का प्रारम्भ- 25 सितंबर को 07:06 ए एम से, 
समापन- 26 सितंबर को 09:33 ए एम पर।
 
पूजन समय : 11:00 ए एम से 01:25 पी एम तक। 
चतुर्थी पूजन कुल अवधि: 02 घण्टे 25 मिनट्स
 
अभिजित मुहूर्त11:48 ए एम से 12:37 पी एम।
 
पूजा विधि:
 
1. प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
 
2. गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
 
3. चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गणेश जी को विराजमान करें।
 
4. रोली, अक्षत, दुर्वा, शुद्ध जल, फूल, धूप, दीप से पूजन करें।
 
5. मोदक या लड्डू का भोग लगाएं (मोदक गणेश जी का प्रिय होता है)।
 
6. गणेश मंत्रों का जाप करें।
 
7. आरती करें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
 
8. गणेश जी से विघ्नों की शांति और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
 
आज के मंत्र: 
- 'ॐ गं गणपतये नमः।'
 
- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। 
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥`
 
गणेश गायत्री मंत्र: ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥`
 
कथा: 
एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम 'गणेश' रखा। पार्वतीजी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं, किसी को भी अंदर नहीं आने देना।
 
भोगवती में स्नान कर जब भोलेनाथ अंदर आने लगे तो बालस्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर वे घर के अंदर चले गए। शिवजी जब घर के अंदर गए तो वे बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वे नाराज हैं इसलिए उन्होंने 2 थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया। 
 
शिव ने लगाया था हाथी के बच्चे का सिर- 2 थालियां लगीं देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब पार्वतीजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया है। इतना सुनकर पार्वतीजी दु:खी हो गईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ से काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं।
 
संतान संबंधी समस्याओं के समाधान और वंश वृद्धि के लिए भी यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है। 
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: Shadashtak Yoga 2025: शनि मंगल का षडाष्टक योग, 3 राशियों को मिलेगा लाभ ही लाभ

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