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सृजन के देवता हैं श्री विश्वकर्मा : पढ़ें विशेष जानकारी

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आचार्य राजेश कुमार

हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को सृजन का देवता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा जी ने इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका आदि का निर्माण किया था। प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा जयंती पर औजार, मशीनों, औद्योगिक इकाइयों की पूजा की जाती है। 
 
भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा जाता है। उन्होंने अपने ज्ञान से यमपुरी, वरुणपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी, पुष्पक विमान, विष्णु का चक्र, शंकर का त्रिशूल, यमराज का कालदण्ड आदि का निर्माण किया।
 
विश्वकर्मा जी ने ही सभी देवताओं के भवनों को भी तैयार किया। विश्वमर्का जयंती वाले दिन अधिकतर प्रतिष्ठान बंद रहते हैं। भगवान विश्वकर्मा को आधुनिक युग का इंजीनियर भी कहा जाता है।
 
एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नाम स्त्री से हुआ।
 
धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था। वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्कर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ। 
 
एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु जी के नाभि-कमल से ब्रहा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रहा जी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नाम स्त्री से हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुए। उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया।
 
पूजन के लिए मंत्र
 
भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला लें।
 
जप शुरू करने से पहले ग्यारह सौ, इक्कीस सौ, इक्यावन सौ या ग्यारह हजार जप का संकल्प लें। 
 
विश्वकर्मा पूजन विधि
 
विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिमा को विराजित करके पूजा की जाती है। जिस व्यक्ति के प्रतिष्ठान में पूजा होनी है, वह प्रात:काल स्नान आदि करने के बाद अपनी पत्नी के साथ पूजन करें। हाथ में फूल, चावल लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए घर और प्रतिष्ठान में फूल व चावल छिड़कने चाहिए।
 
इसके बाद पूजन कराने वाले व्यक्ति को पत्नी के साथ यज्ञ में आहुति देनी चाहिए। पूजा करते समय दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करना चाहिए। पूजन से अगले दिन प्रतिमा के विसर्जन करने का विधान है। 
 
औजारों की पूजा
 
विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिष्ठान के सभी औजारों या मशीनों या अन्य उपकरणों को साफ करके उनका तिलक करना चाहिए। साथ ही उन पर फूल भी चढ़ाए।
 
हवन के बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा के प्रसन्न होने से व्यक्ति के व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है।
 
ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने वाले व्यक्ति के यहां घर धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि की कमी नहीं रहती। इस पूजा की महिमा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है तथा सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।
 
जिस फैक्टरी के मालिक भगवान विश्वकर्मा की जयंती को धूम-धाम से नहीं मनाते उन्हें पूरे साल समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
 
सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि
 
भगवान विश्वकर्मा के सबसे बड़े पुत्र मनु ऋषि थे। इनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना के साथ हुआ था। इन्होंने ही मानव सृष्टि का निर्माण किया। विष्णुपुराण में विश्वकर्मा को देवताओं का देव बढ़ई कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है।
 
स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। विश्वकर्मा इतने बड़े शिल्पकार थे कि उन्होंने जल पर चलने योग्य खड़ाऊ तैयार की थी।

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