भगवान बुद्ध के एक भारतीय भिक्षु का नाम है बोधिधर्म। बोधिधर्म के माध्यम से ही चीन, जापान और कोरिया में बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ था। 520-526 ईस्वीं में चीन जाकर उन्होंने चीन में ध्यान संप्रदाय की नींव रखी थी। यही ध्यान पहले च्यान फिर झेन हो गया।
जेन (zen) को झेन भी कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ 'ध्यान' माना जाता है। यह सम्प्रदाय जापान के सेमुराई वर्ग का धर्म है। सेमुराई समाज यौद्धाओं का समाज है। इसे दुनिया की सर्वाधिक बहादुर कौम माना जाता था।
जेन का विकास चीन में लगभग 500 ईस्वी में हुआ। चीन से यह 1200 ईस्वी में जापान में फैला। प्रारंभ में जापान में बौद्ध धर्म का कोई संप्रदाय नहीं था किंतु धीरे-धीरे वह बारह सम्प्रदायों में बंट गया जिसमें जेन भी एक था।
ऐसा माना जाता है कि सेमुराई वर्ग को अधिक आज्ञापालक तथा शूरवीर बनाने के लिए ही जेन संप्रदाय का सूत्रपात हुआ था। दरअसल जेन संप्रदाय शिंतो और बौद्ध धर्म का समन्वय था। माना यह भी जाता है कि बौद्ध धर्म को जापान ने सैनिक रूप देने की चेष्ठा की थी, इसीलिए उन्होंने शिंतो धर्म के आज्ञापालक और देशभक्ति के सिद्धांत को भी इसमें शामिल कर सेमुराइयों को मजबूत किया। सेमुराई जापान का सैनिक वर्ग था। 1868 में उक्त सैनिकों के वर्ग का अंत हो गया।
धर्म ग्रंथ और दर्शन : 'बुशिडो' नामक इनकी एक संहिता है, जिस पर यह विश्वास करते थे। 'बुशिडो' में व्यक्तिगत जीवन तथा सम्मान की अपेक्षा स्वामीभक्ति पर जोर दिया गया है। जेन संप्रदाय पर बौद्ध धर्म का बहुत असर था फिर भी उनकी कुछ मान्यताएँ बिलकुल अलग थीं।
उनके अनुसार धर्मग्रंथों के अध्ययन या कर्मकांडों से ज्ञान की उपलब्धि नहीं होती, बल्कि इसके लिए चिंतन और आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता है। मनुष्य का जीवन क्षणिक और भ्रमपूर्ण है, इसीलिए प्रत्येक क्षेत्र में शूरवीरता दिखाने की आवश्यकता है।
साभार : ओशो रजनीश के प्रवचनों संकलित जानकारी पर आधारित