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जॉर्ज फर्नांडीस : प्रोफाइल

हमें फॉलो करें जॉर्ज फर्नांडीस : प्रोफाइल
समता पार्टी के संस्‍थापक, एनडीए के संयोजक, पत्रकार और अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में कई मंत्रालयों में मंत्री रह चुके जॉर्ज फर्नांडीस भारतीय राजनीति के एक जानेमाने नेता रहे हैं। 29 जनवरी 2019 को दिल्‍ली में उनका निधन हो गया। वे 88 साल के थे।


प्रारंभिक जीवन : जॉर्ज फर्नांडीस का जन्‍म 3 जून 1930 को मैंगलोर के मैंग्‍लोरिन-कैथोलिक परिवार में जॉन जोसेफ फर्नांडीस के घर हुआ। इन्‍होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा मैंगलौर के स्‍कूल से पूरी की। इसके बाद मैंगलौर के सेंट अल्‍योसिस कॉलेज से अपनी 12वीं कक्षा पूरी की।

पारिवारिक पृष्‍ठभूमि : जॉर्ज फर्नांडीस अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। परिवार के नजदीकी सदस्‍य इन्‍हें गैरी कहकर बुलाते थे।

करियर : घर के पारंपरिक रिवाज के कारण जॉर्ज को 16 वर्ष की आयु में बैंगलोर के सेंट पीटर सेमिनरी में धार्मिक शिक्षा के लिए भेजा गया। 1949 में जॉर्ज मैंगलोर छोड़ मुंबई काम की तलाश में आ गए।

मुंबई में इनका जीवन काफी मुश्किलों में बीता। एक समाचार पत्र में प्रूफरीडर की नौकरी मिलने से पहले वे फुटपाथ पर रहा करते थे और चौपाटी स्‍टैंड की बेंच पर सोया करते थे लेकिन रात में ही एक पुलिसवाला आकर उन्‍हें उठा देता था जिसके कारण उन्‍हें जमीन पर सोना पड़ता था।

1950 में जॉर्ज सामाजिक कार्यकर्ता राममनोहर लोहिया के करीब आए और उनके जीवन से काफी प्रभावित हुए। उसके बाद वे सोशलिस्‍ट ट्रेड यूनियन के आंदोलन में शामिल हो गए। इस आंदोलन में उन्‍होंने मजदूरों, कम पैसे में कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों तथा होटलों और रेस्तरांओं में काम करने वाले मजदूरों के लिए आवाज उठाई। इसके बाद वे 1950 में मजदूरों की आवाज बन गए।

राजनीतिक जीवन : जॉर्ज 1961 तथा 1968 में मुंबई सिविक का चुनाव जीतकर बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्‍य बन गए। इसके साथ ही वे लगातार निचले स्‍तर के मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए आवाज उठाते रहे और राज्‍य में सही तरीकों से कार्य करते रहे। इस तरह के लगातार आंदोलनों के कारण जॉर्ज नेताओं की नजर में आ गए।

1967 के लोकसभा चुनाव में उन्‍हें संयुक्‍त सोशियल पार्टी की ओर से मुंबई साउथ की सीट से कांग्रेस के सदाशिव कानोजी पाटिल के खिलाफ टिकट दिया गया। जॉर्ज ने उस चुनाव में पाटिल को 48.5 फीसदी वोटों से हरा दिया जिसके कारण उनका नाम 'जॉर्ज द जेंटकिलर' रख दिया गया। पाटिल को यह हार बर्दाश्त नहीं हुई और उन्‍होंने राजनीति छोड़ दी।

1960 के बाद जॉर्ज बॉम्बे में हड़ताल करने वाले लोकप्रिय नेता बने। इसके बाद राजनीति में बहुत बदलाव आया और 1969 में वे संयुक्‍त सोशियल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी चुन लिए गए और 1973 में पार्टी के चेयरमैन बने।

1974 में जॉर्ज ने ऑल इंडिया रेलवे फेडरेशन का अध्‍यक्ष बनने के बाद भारतीय रेलवे के खिलाफ हड़ताल शुरू की। वे 1947 से तीसरे वेतन आयोग को लागू करने की मांग कर रहे थे और आवासीय भत्‍ता बढ़ाने की भी मांग कर रहे थे।

इस हड़ताल में देश के विभिन्‍न हिस्‍सों से आए रेलवे कर्मचारियों ने हिस्‍सा लिया वहीं राज्‍य के टैक्‍सी चालकों ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया। लगभग 30 हजार लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया।

इस हड़ताल में रेलवे कर्मचारियों का समर्थन रेलवे के लिए काफी मुसीबत बन गया। 27 मई 1974 को हड़ताल को खत्‍म कर दिया गया। इसके बाद जॉर्ज ने बताया की हड़ताल को खत्‍म करने का कारण यह रहा कि इसमें अलग-अलग आवाजें उठने लगी थीं।

1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और उसका विरोध करने वालों को जेल में भर दिया। जॉर्ज फर्नांडीस ने भी दूसरों की तरह इसका विरोध किया तो इनके खिलाफ भी गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया जिससे बचने के लिए वे अंडरग्राउंड हो गए, मगर पुलिस ने उनके भाई को गिरफ्तार कर उन्‍हें आत्‍मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया।

10 जून 1976 को जॉर्ज कलकत्ता से गिरफ्तार कर लिए गए। इनके गिरफ्तार होने के बाद एमनेस्‍टी इंटरनेशनल मेंबर ने सरकार से अनुरोध किया कि इन्‍हें तुरंत एक वकील दिया जाए और इनकी जान की गारंटी ली जाए।

विश्‍व के तीन देशों जर्मनी, नॉर्वे तथा ऑस्‍ट्रेलिया के नेता मानते थे कि इंदिरा गांधी जॉर्ज को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसके बाद जॉर्ज को वडोदरा जेल से तिहाड़ जेल लाया गया और इनके ऊपर कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की गई।

21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्‍म हुआ और इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस पार्टी चुनाव में हार गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्‍व में जनता पार्टी ने चुनाव जीता। जॉर्ज फर्नांडीस भी जेल में रहते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव जीत गए। इसके बाद वे जनता पार्टी की सरकार में इंडस्‍ट्री मंत्री बने। इसी दौरान दो अंतरराष्‍ट्रीय कंपनियों आईबीएम और कोका कोला द्वारा फेरा लागू करने को लेकर विवाद हो गया।

फेरा के अंदर विदेशी कंपनियां 40 फीसदी से ज्‍यादा शेयर भारत को देने को तैयार नहीं थीं और दो कंपनियां तो अपनी सेवाएं भारत में बंद करने का निर्णय ले चुकी थीं, वहीं फर्नांडीस उनसे फेरा के शेयर बढ़ाने की मांग कर रहे थे।

जॉर्ज 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर से फिर से जीत गए और 1984 में बेंगलौर नॉर्थ से कांग्रेस प्रत्‍याशी से हारने के बाद पुन: अपनी पुरानी लोकसभा सीट पर चले गए। 1989 में वे पुरानी सीट से जीत गए, जिसके बाद वे जनता पार्टी में शामिल हो गए।

इसी दौरान वे वीपी सिंह की सरकार में कुछ सालों के लिए रेलमंत्री बने। इसी दौरान उन्‍होंने मैंगलोर और मुंबई को जोड़ने के लिए कोंकण रेलवे प्रोजेक्‍ट शुरू किया। यह प्रोजेक्‍ट भारतीय स्‍वतंत्रता के बाद से रेलवे के विकास के लिए पहला प्रोजेक्‍ट था।

1998 के चुनाव में वाजपेयी सरकार पूरी तरह सत्‍ता में आई और उसी दौरान एनडीए का गठन हुआ और जॉर्ज फर्नांडीस एनडीए के संयोजक बने। 1999 में जनता पार्टी दो भागों में बंट गई जिसमें से जनता दल यूनाटेड तथा जनता दल सेक्युलर बनी। जॉर्ज जदयू के साथ हो गए और अपनी समता पार्टी को जदयू में मिला दिया।

जॉर्ज एनडीए की सरकार में दोनों बार रक्षामंत्री बने। इनके रक्षामंत्री रहते हुए पाकिस्‍तान ने भारत पर हमला कर दिया। इस युद्ध में दोनों तरफ से भारी हथियारों का प्रयोग किया गया। भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' के दौरान पाकिस्‍तानी सेना को भागने पर मजबूर कर दिया। विपक्ष के साथ मीडिया ने सरकार पर इस युद्ध के पीछे खुफिया विभाग की नाकामी बताकर सरकार की खिंचाई की, मगर जॉर्ज ने उनके आरोपों को खारिज कर दिया।

2001 में तहलका रक्षा घोटाले के बाद जॉर्ज ने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया था, लेकिन बाद में वे पुन: रक्षामंत्री बने। जॉर्ज फर्नांडीस पहले ऐसे रक्षामंत्री हैं जिनके कार्यालय में हिरोशिमा बमबारी का चित्र था। वे 18 बार कश्‍मीर के सियाचिन गए हैं, जो पूरे विश्‍व में एक रिकॉर्ड है। 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार हुई।

कुछ समय बाद राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना रहा था कि पार्टी में जॉर्ज का समता पार्टी के सह संस्‍थापक नीतीश कुमार के साथ मतभेद हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में वे जदयू के टिकट को छोड़ निर्दलीय उम्‍मीदवार के रूप में मुजफ्फरपुर से लड़े, मगर हार गए। 30 जुलाई 2009 को शरद यादव द्वारा सीट छोड़ने के बाद जॉर्ज ने निर्दलीय उम्‍मीदवार के रूप में राज्‍यसभा के लिए पर्चा भरा। जदयू ने उनके खिलाफ कोई उम्‍मीदवार खड़ा नहीं किया।

फर्नांडीस ने बहुत सारे आंदोलनों का नेतृत्‍व किया। इनके ऊपर कई तरह के आरोप लगे जिसमें आपातकाल के दौरान विदेशी संस्‍थाओं से पैसे लेकर इंदिरा गांधी का विरोध करना और अंडरग्रांउड होना, रक्षामंत्री रहने के दौरान तहलका कांड, 2000 में इसराइल से बैरक-1 की खरीद में 7 मिलियन डॉलर का घोटाला और पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद चीन को युद्ध के लिए भड़काने का आरोप लगाया गया। 29 जनवरी 2019 को दिल्‍ली में उनका निधन हो गया। वे 88 साल के थे।

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