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हरीश रावत : प्रोफाइल

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हरीश रावत उत्तराखंड के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले ऐसे राजनीतिज्ञ माने जाते हैं, जो अपने प्रतिद्वंदियों से मात खाने के बाद हर बार और मजबूत होकर उभरे और केंद्र में कैबिनेट मंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद अंतत: प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए।
 
प्रारंभिक जीवन : हरीश रावत का जन्‍म 27 अप्रैल 1947 को उत्‍तराखंड के अलमोड़ा जिले के मोहनारी में एक राजपूत परिवार में हुआ। उत्‍तराखंड से अपनी स्‍कूली शिक्षा प्राप्‍त कर उन्होंने उत्‍तरप्रदेश के लखनऊ विश्‍वविद्यालय से बीए और एलएलबी की उपाधि प्राप्‍त की।
 
पारिवारिक पृष्‍ठभूमि : हरीश रावत के पिता का नाम राजेंद्र सिंह और माता का नाम देवकी देवी है। उनका विवाह रेणुका रावत से हुआ। इनके दो बच्चे हैं। बेटा आनंद सिंह रावत भी राजनीति से जुड़ा है, जबकि बेटी अनुपमा रावत सॉफ्टवेयर के क्षेत्र से हैं तथा राजनीति में भी दखल रखती हैं।
 
राजनीतिक जीवन : व्यावसायिक तौर पर वे कृषि से जुड़े होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और श्रमिक संघ से भी संबद्ध रहे। विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने भारतीय युवक कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। 1973 में कांग्रेस की जिला युवा इकाई के प्रमुख चुने जाने वाले वे सबसे कम उम्र के युवा थे।
 
आज उत्तराखंड के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले हरीश रावत ऐसे राजनीतिज्ञ माने जाते है जो अपने प्रतिद्वंदियों से मात खाने के बाद हर बार और मजबूत होकर उभरे और केंद्र में कैबिनेट मंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद अंतत: प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए।
 
करीब 13 साल पहले जब केंद्र में राजग सरकार और मूल प्रदेश उत्तरप्रदेश में भाजपा के कार्यकाल में उत्तराखंड का जन्म हुआ, उस दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सामने आए हरीश रावत ने पूरे प्रदेश में ऐसा बदलाव ला दिया कि 2002 की शुरुआत में हुए पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बेदखल करते हुए सरकार बना ली। 
 
हरीश रावत का रुझान बचपन से ही राजनीति की ओर रहा। अल्मोड़ा में भिकियासैंण और सल्ट तहसील का इलाका स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में काफी चर्चित रहा है और ऐसे वातावरण में पले-बढ़े रावत का राजनीति से लगाव होना स्वभाविक ही रहा। 
 
हरीश रावत ने अपनी राजनीति की शुरुआत ब्‍लॉक स्‍तर से की, जब वे ब्‍लॉक प्रमुख बने। इसके बाद वे जिला अध्‍यक्ष बने। इसके तुरंत बाद ही वे युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए। लंबे समय तक युवा कांग्रेस में कई पदों पर रहते हुए जिला कांग्रेस अध्‍यक्ष बने।
 
हरीश रावत पहली बार 1980 में केंद्र की राजनीति में शामिल हुए, जब वे लेबर एंड इम्प्‍लॉयमेंट के कैबिनेट राज्‍यमंत्री बने। उन्होंने 7वें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उत्‍तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट से जीत हासिल की जिसके बाद से वे लगातार उस सीट से जीतते चले आ रहे हैं।
 
1990 में वे संचार मंत्री बने और मार्च 1990 में राजभाषा कमेटी के सदस्‍य बने। 1999 में हरीश रावत हाउस कमेटी के सदस्‍य बने। 2001 में उन्‍हें उत्‍तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्‍यक्ष बनाया गया।
 
2002 में वे राज्‍यसभा के लिए चुन लिए गए, 2009 में वे एक बार फिर लेबर एंड इम्प्‍लॉयमेंट के राज्‍यमंत्री बने। वर्ष 2011 में उन्‍हें राज्‍यमंत्री, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण इंडस्ट्री के साथ संसदीय कार्यमंत्री का कार्यभार सौंपा गया।
 
1980 में वे पहली बार अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए।उसके बाद 1984 व 1989 में भी उन्होंने संसद में इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1992 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद संभाला, जिसकी जिम्मेदारी वे 1997 तक संभालते रहे।
 
राज्य निर्माण के पश्चात रावत प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए और उनकी अगुवाई में 2002 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ और उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार बनी। नारायण दत्त तिवारी के मुकाबले मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से बाहर होने के बाद, उसी साल नवम्बर में रावत को उत्तराखण्ड से राज्यसभा के सदस्य के रूप में भेजा गया।
 
पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने हरिद्वार संसदीय सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन्होंने भारी मतों से जीत दर्ज की। उनके निकटस्थ प्रतिद्वंद्वी से जीत का अंतर एक लाख वोटों से भी ज्यादा रहा। पिछले काफी समय से भाजपा, सपा या बसपा की झोली में रही हरिद्वार सीट जीतने वाले रावत को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रिमंडल में पहले राज्यमंत्री और बाद में कैबिनेट मंत्री का दायित्व सौंपा।
 
हालांकि 2012 में कांग्रेस के प्रदेश में एक बार फिर सत्ता में आने के बाद उनका नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे चलता रहा, लेकिन इस बार भी पार्टी आलाकमान ने उनकी दावेदारी को नकार दिया और उनकी जगह विजय बहुगुणा को तरजीह दी।
 
बहुगुणा के सत्ता संभालने के बाद से लगातार प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें चलती रहीं, जो जून-2012 में आई प्राकृतिक आपदा से निपटने में राज्य सरकार की कथित नाकामी के आरोपों के चलते और तेज हो गईं।
 
छात्र जीवन में हरीश रावत ने अपने कॉलेज की ओर से विश्वविद्यालय का कई खेलों में प्रतिनिधित्व किया है, विशेषत: फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी और एथलेटिक्स में। वे चीन, नेपाल, थाईलैंड, जापान, इंडोनेशिया, इराक सहित अनेक देशों की यात्राएं कर चुके हैं। किताबें पढ़ना उनके पसंदीदा टाइम पास में से एक है।

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