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मिर्जापुर में बढ़ेगी अनुप्रिया पटेल की मुश्किल, विरोध में उतरे राजा भैया

दस्यु सुंदरी फूलन देवी को भी 2 बार मिर्जापुर से मिली थी जीत

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वृजेन्द्रसिंह झाला

, गुरुवार, 23 मई 2024 (07:20 IST)
Mirzapur Lok Sabha Seat: उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर लोकसभा सीट पर एनडीए उम्मीदवार और केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) की पकड़ तगड़ी है। जातिगत समीकरण भी उनके पक्ष में हैं, लेकिन रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से पंगा उनकी मुश्किलों को बढ़ा सकता है। दरअसल, राज्यसभा चुनाव में भाजपा का खुलकर समर्थन करने वाले राजा भैया ने अपना दल (सोने लाल) की अनुप्रिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अनुप्रिया की पार्टी राजग का हिस्सा है और वे 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव बड़े अंतर से जीती हैं। मिर्जापुर के मतदाता 2 बार दस्यु सुंदरी फूलदेवी को भी लोकसभा पहुंचा चुके हैं। 
 
क्यों नाराज हैं राजा भैया : राज्यसभा चुनाव में राजा भैया ने भाजपा का समर्थन किया था, जिसके चलते कड़े मुकाबले वाली सीट भी भाजपा की झोली में आ गई थी। अब राजा ने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। समाजवादी पार्टी ने यहां से रमेश चंद्र बिंद को टिकट दिया है, जबकि बसपा ने यहां से ब्राह्मण मनीष तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। राजा भैया द्वारा सपा को समर्थन देने से आसपास की सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को भी नुकसान हो सकता है। 
 
अनुप्रिया पटेल ने हाल ही में एक सभा में राजा भैया पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा था कि लोकतंत्र में राजा अब रानी के पेट से पैदा नहीं होता। अब राजा ईवीएम के बटन दबाने से पैदा होता है। उन्होंने कहा- स्वघोषित राजाओं को लगता है कि कुंडा उनकी जागीर है तो उनके भ्रम को तोड़ने के लिए आपके पास चुनाव बहुत बड़ा और सुनहरा अवसर है। अनुप्रिया पटेल इस बयान ने सोशल मीडिया पर काफी सुर्खियां बटोरी थीं। केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले ने भी अनुप्रिया का समर्थन करते हुए कहा था कि कुछ गुंडे लोगों को भी वोट मिलता है। वोट लेने से कोई राजा नहीं बनता, नाम का राजा हो सकता है। अनुप्रिया पटेल जी ने जो बोला है, वह सही है। 
 
राजतंत्र तो कब का खत्म हो गया : जनसत्ता दल के मुखिया राजा भैया ने केंद्रीय मंत्री पटेल के बयान पर पलटवार करते हुए कहा था कि राजा या रानी अब पैदा होना बंद हो गए हैं। ईवीएम से राजा नहीं जनसेवक पैदा होता है। ईवीएम से पैदा होने वाले अगर खुद को राजा मान लेंगे तो लोकतंत्र की मूल भावना ही हार जाएगी। जनता जनार्दन आपको यह अवसर देती है कि आप मेरी और क्षेत्र की सेवा करें। राजतंत्र तो कब का खत्म हो गया है। इस जुबानी जंग के बाद राजा भैया खुलकर समाजवादी पार्टी के समर्थन में उतर आए हैं। यह कहा जा रहा है कि अनुप्रिया को हराने के मकसद से राजा भैया के समर्थक प्रतापगढ़ से मिर्जापुर लोकसभा सीट पर पहुंच गए हैं। हालांकि इसका कितना असर होगा इसको लेकर फिलहाल अटकलें ही लगाई जा सकती हैं। 
 
इस बार हो सकता है कड़ा मुकाबला : हालांकि अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर लोकसभा सीट से 2014 और 2019 में बड़े अंतर से चुनाव जीत चुकी हैं। उन्होंने 2014 में बसपा के समुद्र पटेल को करीब 2 लाख 19 हजार वोटों से हराया था, वहीं 2019 में सपा रामचरित्र निषाद को 2 लाख 32 हजार मतों से हराया था। इस बार समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को कांग्रेस का भी समर्थन है। ऐसे में मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है। 
 
यदि विधानसभा चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो यहां अनुप्रिया पटेल मजबूत स्थिति में हैं। इस क्षेत्र की सभी 5 सीटों पर एनडीए का ही कब्जा है। यहां 3 सीटों पर भाजपा का कब्जा है, जबकि 1-1 सीट अपना दल (सोने लाल) और निषाद पार्टी के पास है। यह संसदीय सीट 5 विधानसभा सीटों में बंटी हुई है। ये सीटें- छानबे, मिर्जापुर, मझवान, चुनार और मरिहान है। 
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मिर्जापुर के जातीय समीकरण : इस सीट पर सबसे ज्यादा पटेल वोटरों की संख्या है, जो कि 3.50 लाख है। अन्य ओबीसी की संख्या करीब 3 लाख है, इतने ही दलित मतदाता हैं। डेढ़ लाख ब्राह्मण, इतने ही वैश्य, 90 हजार क्षत्रिय, 1.25 लाख कोल, 1.50 लाख मुस्लिम, 1.50 लाख मौर्य-कुशवाहा, 1 लाख यादव और 1 लाख 50 हजार बिंद (केवट) हैं। चूंकि बसपा ने ब्राह्मण मनीष तिवारी को उम्मीदवार बनाया है, इसके चलते ब्राह्मणों के साथ दलित वोट भी उन्हें मिल सकते हैं। वहीं पटेल वोटरों की संख्‍या अनुप्रिया का प्लस पॉइंट है।   
 
2 बार से ज्यादा कोई लोकसभा नहीं पहुंचा : मिर्जापुर लोकसभा सीट की बात करें तो यहां के मतदाता ने किसी भी पार्टी को लंबे समय तक प्रतिनिधित्व का मौका नहीं दिया। शुरुआती दौर में 1952 से 1967 तक यह सीट कांग्रेस के पास रही। पहला चुनाव यहां से जॉन एन विल्सन ने जीता था। 1967 में जनसंघ के बंश नारायण सिंह लोकसभा पहुंचने में सफल रहे। 1971 में यह सीट फिर कांग्रेस की झोली में आ गई, लेकिन आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी के फकीर अली अंसारी को जीत नसीब हुई। दस्यु सुंदरी फूलन देवी भी 1991 और 1999 में लोकसभा पहुंच चुकी हैं।
 
कांग्रेस ने यहां से सर्वाधिक 6 बार चुनाव जीता है, वहीं सपा भी 4 बार चुनाव जीत चुकी है। 2-2 बार भाजपा, बसपा और अपना दल चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि इस सीट से कोई भी उम्मीदवार 2 बार से ज्यादा लोकसभा नहीं पहुंच पाया। विल्सन, अजीम इमाम, उमाकांत मिश्रा, वीरेन्द्र सिंह, फूलन देवी इस सीट पर 2-2 बार चुनाव जीत चुके हैं। अनुप्रिया भी 2 बार चुनाव जीत चुकी हैं। अब लोगों की इस बात पर भी नजर रहेगी कि क्या अनुप्रिया तीसरी बार चुनाव जीतकर इस सीट पर रिकॉर्ड बनाएंगी। 
   

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