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महाकुंभ में अघोरियों का डेरा, जानिए इनकी 10 खास रोचक बातें

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हमें फॉलो करें महाकुंभ में अघोरियों का डेरा, जानिए इनकी 10 खास रोचक बातें

WD Feature Desk

, गुरुवार, 23 जनवरी 2025 (13:21 IST)
what is aghori: कुंभ या सिंहस्थ में साधु-संतों ने डेरा जमा लिया है। इस विशाल महा-आयोजन महाकुंभ 2025 में सबसे ज्यादा अगर कोई आकर्षण का विषय है तो वह है अघोरी और नागा साधु। नागा, नाथ, अघोरी, शैव, वैष्णव, उदासीन आदि कई तरह के साधुओं के कुंभ में आम जनता अघोरी साधुओं को सबसे भयानक मानती हैं जबकि वे आम धारणा से विपरित होते हैं।ALSO READ: महाकुंभ में नागा, अघोरी और कल्पवासियों की दुनिया करीब से देखने के लिए ऑनलाइन बुकिंग शुरू, जानिए पूरी प्रक्रिया
 
1. क्या है अघोरी शब्द का अर्थ?
अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी को कुछ लोग औघड़ भी कहते हैं। औघड़ का अर्थ है जिसका सबकुछ खुला हुआ है। भीतर और बाहर से जो एक जैसे हैं। दूसरा अर्थ है अंड बंड, अनोखा और फक्कड़। 
 
2. कैसे होते हैं अघोरी साधु?
कफन के काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी बाबा के गले में धातु की बनी नरमुंड की माला लटकी होती है। नरमुंड न हो तो वे प्रतीक रूप में उसी तरह की माला पहनते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध और पूरे शरीर पर राख मलकर रहते हैं ये साधु। ये साधु अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। 
 
3. अघोरियों का स्वभाव कैसा होता है?
अघोरी ऐसे साधु जो उन सभी चीजों को भी अपनाते हैं जिसे समाज में घृणास्पद, डरावनी या भयावन मानी जाती है। जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।अघोरी कापालिक क्रिया करते हैं और शमशान में ही रहते हैं। अघोर बनने की पहली शर्त है अपने मन से घृणा को निकालना। अघोर क्रिया व्यक्त को सहज बनाती है।ALSO READ: इन तीन कठिन परीक्षाओं के बाद बनते हैं अघोरी, जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता है तैयार
 
4. क्या है अघोरपंथ:
अघोरपंथ साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथ में खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं होता। अघोरी लोग वर्जित मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। हालांकि कई अघोरी मांस नहीं भी खाते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है।
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5. अघोर पंथ की उत्पत्ति और इतिहास:
अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। अघोरियों के देवी और देवता हैं- 10 महाविद्या, 8 भैरव और एकादश रुद्र। ALSO READ: कौन होते हैं अघोरी? कैसे करते हैं साधना, पढ़ें चौंकाने वाले रहस्य
 
6. प्रमुख अघोर स्थान:
वाराणसी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। इसके बाद गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत जो अवधूत भगवान दत्तात्रेय की तपस्या स्थली है। इसके अलावा शक्तिपीठों, बगलामुखी, पुरी की देवी का स्थान, काली और भैरव के मुख्‍य स्थानों के पास के श्मशान में भी उनके स्थान हैं। तारापीठ का श्‍मशान, कामाख्या पीठ के श्‍मशान, रजरप्पा का श्मशान और चक्रतीर्थ उज्जैन का श्‍मशान इनकी साधना का प्रमुख केंद्र है। 
 
7. अघोरी साधना कहां होती है?
अघोरी श्‍मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्‍मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। ऐसी साधनाएं अक्सर तारापीठ के श्‍मशान, कामाख्या पीठ के श्‍मशान, त्र्यम्‍बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्‍मशान में होती है। 
 
8. अघोरपंथ की तीन शाखाएं:
अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं- औघड़, सरभंगी, घुरे। इनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए, जो किनाराम बाबा के गुरु थे। कुछ लोग इस पंथ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका सम्बन्ध शैव मत के पाशुपत अथवा कालामुख सम्प्रदाय के साथ जोड़ते हैं।ALSO READ: 10 बातें अघोरी साधुओं के बारे में...
 
9. अघोराचार्य बाबा किनाराम:
अघोराचार्य बाबा किनाराम का जन्म भाद्रपद में अघोर चतुर्दशी को 1601 ई. में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी के पास चंदौली जिले के रामगढ़ गाँव में हुआ था। बाबा किनाराम ने बलूचिस्तान (जिसे पाकिस्तान के रूप में जाना जाता है) के ल्यारी जिले में हिंगलाज माता (अघोर की देवी) के आशीर्वाद से समाज कल्याण और मानवता के लिए अपनी धार्मिक यात्रा शुरू की थी वे अपने आध्यात्मिक गुरु बाबा कालूराम के शिष्य थे, जिन्होंने उनमें अघोर के बारे में जागरूकता पैदा की थी। उन्होंने रामगीता, विवेकसार, रामरसाल और उन्मुनिराम नामक अपनी रचनाओं में अघोर के सिद्धांतों का उल्लेख किया है।
 
10. कैसे बनते हैं अघोरी साधु?
अघोरी साधु बनने के लिए अत्यधिक समर्पण, अनुशासन, और आत्मा को शुद्ध करने की आवश्यकता होती है। यह मार्ग केवल उन लोगों के लिए है, जो सांसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग कर, आत्मज्ञान और मोक्ष की खोज में जुटना चाहते हैं। इसे सबसे पहले सच्चे गुरु की खोज, फिर संसार का त्याग, फिर व्रत, तप और साधना, फिर श्मशान साधना आदि कार्य करना होते हैं। साधना के दौरान, अघोरी साधु अपने भीतर के क्रोध, भय, और नकारात्मकता का सामना करते हैं। वे स्वयं को भगवान शिव के अघोर स्वरूप से जोड़ने का प्रयास करते हैं।

संकलन: अनिरुद्ध जोशी

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