Mahakumbh 2025: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में कई अखाड़े हैं। हर अखाड़े का अपना पंडाल है लेकिन निरंजनी अखाड़े के पंडाल अपनी भव्यता से सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है। कुम्भ क्षेत्र में सेक्टर-20, काली मार्ग पर महामंडलेश्वर कैलाश नंद गिरी के निरंजनी अखाड़े के पंडाल में मंत्रियों और सेलिब्रिटियों का रात दिन तांता लगा रहता है। इस अखाड़े का इतिहास काफी पुराना है और इसकी अपनी अनूठी परंपराएं हैं। आइए जानते हैं निरंजनी अखाड़े के बारे में कुछ रोचक तथ्य।
निरंजनी अखाड़े का इतिहास
निरंजनी अखाड़े की स्थापना 1121 साल पहले 904 ईस्वी में हुई थी। यह अखाड़ा शैव परंपरा से जुड़ा हुआ है और इसके इष्टदेव कार्तिकेय हैं। इस अखाड़े के संतों को 'निरंजन' कहा जाता है, इसलिए इस अखाड़े का नाम निरंजनी अखाड़ा पड़ा।
महाकुंभ में अखाड़े के पांडाल की भव्यता
निरंजनी अखाड़ा अपनी भव्यता से प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बना है। महाकुंभ के दौरान इस अखाड़े का शिविर देखने लायक है। प्रयागराज में निरंजनी अखाड़े का शिविर काफी भव्य बनाया गया है। अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का पंडाल देखते ही बनता है। एक करोड़ रुपये की लागत से बना यह पंडाल बद्रीनाथ मंदिर जैसा लगता है।
अखाड़े की दैनिक गतिविधियां
अखाड़े में हर दिन सुबह 4 बजे भगवान कार्तिकेय की पूजा होती है। अखाड़े में रहने वाले संतों की संख्या हजारों में है। सभी संत मिलकर अखाड़े के कामकाज को संचालित करते हैं। कुंभ के समय यहां रोज लगभग 10000 से ज्यादा लोगों का भंडारा हो रहा है।
अखाड़े में है दान देने की परंपरा
यह अखाड़ा बहुत ही संपन्न अखाड़ा है। ऐसा खाने के संत धन लेते नहीं बल्कि देते हैं। देश भर में इस अखाड़े की 2000 करोड़ से अधिक की संपत्ति है। इस बात का अंदाजा महाकुंभ में लगे निरंजनी अखाड़े के पंडाल की भव्यता और संपन्नता को देखकर लगाया जा सकता है।
स्टीव जॉब्स की पत्नी का आगमन
कुछ समय पहले स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल भी 40 लोगों के स्टाफ के साथ निरंजनी अखाड़े आई थीं। उन्होंने यहां आकर कैलाशानंद गिरी से दीक्षा ली थी। कहा जाता है कि स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेंस पावेल अपने पति की अधूरी इच्छा पूरी करने के लिए कुंभ आईं थीं। हाल ही में स्टीव जॉब्स की इस चिट्ठी की नीलामी लगभग 4.32 करोड रुपए में हुई।
स्वामी कैलाशानंद गिरी कौन हैं?
स्वामी कैलाशानंद गिरी का जन्म 1976 में बिहार के जमुई में हुआ था। बचपन से ही धर्म के प्रति उनकी गहरी आस्था थी। उन्होंने घर-परिवार छोड़कर सन्यास का मार्ग अपना लिया और कठोर तपस्या की। साल 2021 में वे निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर बने। इससे पहले वे अग्नि अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर रह चुके हैं।