कुंभ में महिला नागा साधुओं को लेकर हमेशा से उत्सुकता बनी रही है। लोग यह जानने को बेचैन रहते हैं कि कोई महिला कैसे एक नागा साधु बनती है और कैसा होता है महिला नागा साधुओं का जीवन। आमतौर पर कुंभ या महाकुंभ में महिला नागा साधु नजर नहीं आती थी। यदि होती हैं तो वे अपने शिविर में ही रहती हैं और वस्त्र पहनकर ही कुंभ स्नान करती हैं। इस बार प्रयागराज महाकुंभ में नागा साधुओं के अखाड़े के बाद महिलाओं के अखाड़े भी धूम-धाम से निकलेंगे। उनका एक अलग ही शिविर स्थापित किया गया है। जानिए दिलचस्प जानकारी।
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नागाओं की उपाधियां : किसी भी अखाड़े में दीक्षा लेने के बाद 12 साल की तपस्या के बाद किसी दशनामी साधुओं को पद दिया जाता है। दशनामी में मंडलेश्वर और नागा पद होते हैं। चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं। प्रयागराज के कुंभ में उपाधि पाने वाले को 1.नागा, उज्जैन में 2.खूनी नागा, हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा तथा नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है। नागा एक पदवी होती है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों ही संप्रदायों के अखाड़े नागा बनाते हैं। नागा में बहुत से वस्त्रधारी और बहुत से दिगंबर (निर्वस्त्र) होते हैं। इसी तरह महिलाएं भी जब संन्यास में दीक्षा लेते हैं तो उन्हें भी नागा बनाया जाता है, लेकिन वे सभी वस्त्रधारी होती हैं।
कैसे बनती हैं महिलाएं नागा :
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जब किसी महिला को नागा संन्यासी बनना होता है तो वह जूना अखाड़े के किसी महिला या पुरुष संत से दीक्षा लेती हैं।
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नागा संन्यासिन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं।
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संन्यासिन बनने से पहले महिला को यह साबित करना होता है कि उसका अपने परिवार और समाज से अब कोई मोह नहीं है।
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उसे 6 माह तक ब्रह्मचचर्य सहित यम और नियम का पालन करना है।
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इस बात की संतुष्टी करने के बाद ही आचार्य महिला को दीक्षा देते हैं।
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फिर वह महिला अपने सांसारिक वस्त्र उतारकर शरीर पर पीला वस्त्र धारण कर लेती हैं।
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फिर उस महिला को अन्य नागा साधुओं की तरह ही जीवित रहते हुए ही मुंडन करवाकर अपना ही पिंडदान करना पड़ता है।
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फिर उस महिला को नदी में स्नान के लिए भेजा जाता है।
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इसके बाद 6 से 12 वर्ष तक उन्हें ध्यान और तप करना होता है।
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जब कोई महिला सभी तरह के तप और परीक्षा को पास कर लेती है तो उन्हें माता की उपाधि दे दी जाती है।
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जब महिला नागा संन्यासिन पूरी तरह से बन जाती है तो अखाड़े के सभी छोटे-बड़े साधु-संत उस महिला को माता कहकर बुलाते हैं।ALSO READ: Maha Kumbh 2025 : भस्म लपेटे नागा साधुओं का महाकुंभ में प्रवेश, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई देख दंग रह गए लोग
कैसा जीवन होता है महिला नागा साधुओं का?
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पुरुष साधुओं को सार्वजनिक तौर पर नग्न होने की इजाजत है लेकिन महिला साधु ऐसा नहीं कर सकती। हालांकि जूना अखाड़े की महिलाओं को यह इजाजत भी मिली हुई है।
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वैसे महिला नागा साधु को नग्न रहने की इजाजत नहीं है। खासकर कुंभ में डुबकी लगाने वाले दिन में तो एकदम नहीं।
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महिला साधुओं को बस एक ही कपड़ा पहनने की अनुमति होती है। यह कपड़ा भी सिला हुआ नहीं होता है। इसे 'गंती' कहा जाता है।
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इन महिलाओं को कुंभ के स्नान के दौरान नग्न स्नान भी नहीं करना होता है। वे स्नान के वक्त भी इस गेरुए वस्त्र को पहने रहती हैं।
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महिला नागा संन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती है। शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं।
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इसके बाद दोपहर में भोजन करने के बाद फिर से शिवजी का जाप करती हैं और शाम को शयन। अखाड़े में महिला संन्यासन को पूरा सम्मान दिया जाता है।
महिलाओं का माई अखाड़ा : नागा दो तरह के होते हैं- पहले वस्त्रधारी और दूसरे दिगंबर। जूना अखाड़ा में माई बाड़ा अखाड़े में महिलाएं नागा और मंडलेश्वर बनती है। 2013 के कुंभ में जूना अखाड़ा ने माई बाड़ा को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का स्वरूप प्रदान कर किया था। कुंभ क्षेत्र में माई बाड़ा का पूरा चोला बदल गया है और अखाड़े ने सहमति देकर मुहर लगा दी थी। उस वक्त लखनऊ के श्री मनकामनेश्वर मंदिर की प्रमुख महंत दिव्या गिरी को संन्यासिनी अखाड़े का अध्यक्ष बनाया गया था।
इस अखाड़े की महिला साधुओं को 'माई', 'अवधूतानी' या 'नागिन' कहा जाता है। हालांकि इन 'माई' या 'नागिनों' को अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता है। लेकिन उन्हें किसी खास इलाके के प्रमुख के तौर पर 'श्रीमहंत' का पद दिया जाता है। श्रीमहंत के पद पर चुनी जाने वाली महिलाएं शाही स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं। साथ ही उन्हें अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना अपने धार्मिक ध्वज के नीचे लगाने की छूट होती है। अखाड़ा कुंभ पर्व में महिला संन्यासियों के लिए माई बाड़ा नाम से अलग शिविर स्थापित किया जाता है। यह शिविर जूना अखाड़े के ठीक बगल में बनवाया जाता है।
जूना अखाड़े में दस हजार से अधिक महिला साधु-संन्यासी हैं। इसमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी बहुतायत में है। खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ा है। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है। जूना संन्यासिन अखाड़ा में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से आई हुई है। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के दोबारा शादी करने को समाज स्वीकार नहीं करता। ऐसे मे ये विधवाएं अपने घर लौटने की बजाए साधु बन जाती है।
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