बीकानेर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीकानेर जिले के लूणकरणसर विधानसभा क्षेत्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के सुमित गोदारा और प्रमुख विपक्ष कांग्रेस के वीरेंद्र बेनीवाल में इस बार सीधा मुकाबला है।
बेनीवाल इस क्षेत्र के दिवंगत भीमसेन चौधरी के पुत्र हैं, और उनकी विरासत को संभालने का प्रयास कर रहे हैं। चौधरी यहां के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता रहे हैं जो कभी चुनाव नहीं हारे और छह बार विधायक रहे। उनके निधन के बाद वर्ष 2000 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने दिवंगत चौधरी के पुत्र वीरेन्द्र बेनीवाल को ही मैदान में उतारा, लेकिन बेनीवाल अपने पिता की लोकप्रियता को भुना नहीं पाए और भाजपा के मानिकचंद सुराना से हार गए।
हालांकि वर्ष 2003 और 2008 में वे लगातार विधायक चुने गए और गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल में गृह एवं यातायात मंत्री बने। बेनीवाल लगातार दस वर्ष विधायक रहने के बावजूद अपने पिता की तरह जनता का विश्वास नहीं जीत सके और पिछले चुनाव मे त्रिकोणीय मुकाबले में उन्हें जनता की नाराजगी भुगतनी पड़ी। नतीजतन वे तीसरे स्थान पर रहे। पिछले चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता मानिकचंद सुराना ने निर्दलीय रूप में जीत दर्ज की जबकि भाजपा के सुमित गोदारा दूसरे स्थान पर रहे।
दरअसल पिछली बार भाजपा ने मानिकचंद सुराना को टिकट देकर सुमित गोदारा पर विश्वास जताया था, जिससे सुराना ने पार्टी से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस बार अत्यधिक वृद्धावस्था के चलते वे चुनाव मैदान से हट गए। इस विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास की शुरुआत ही निर्दलीय की विजय से हुई है। वर्ष 1952 में प्रथम चुनाव में निर्दलीय जसवंत सिंह कांग्रेस के कुम्भाराम को हराकर विधायक चुने गए थे। वर्ष 1956 में मानिकचंद सुराना पहली बार चुनाव लड़े लेकिन वे कांग्रेस के रामरतन से हार गए।
अगले ही वर्ष हुए चुनाव में 1957 में कांग्रेस ने भीमसेन चौधरी को टिकट दिया। चौधरी इसके बाद लगातार 1972 तक हुए चार चुनावों में चुने जाते रहे। वर्ष 1977 के चुनाव में चौधरी किसी कारणवश चुनाव नहीं लडे, तब मानिकचंद सुराना जनता पार्टी के टिकट पर कांग्रेस की कांता खतूरिया पर जीत दर्ज करके पहली बार विधायक बने। बाद में 1980 में कांग्रेस के मालूराम लेघा, 1985 में फिर से मानिकचंद सुराना, 1990 में मनीराम सिंघल जीते।
बाद में कांग्रेस ने फिर से भीमसेन चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा तो 1993 और 1998 में फिर से भीमसेन चौधरी चुने गए। चौधरी के निधन के बाद सन् 2000 में हुए उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर मानिकचंद सुराना उनके पुत्र वीरेंद्र बेनीवाल को हराकर फिर से विधायक बने। इस बार भी कांग्रेस ने बेनीवाल पर ही विश्वास जताया है। निवर्तमान विधायक सुराना के मैदान से हटने से अब वे भाजपा के सुमित गोदारा से सीधी टक्कर में आ गए हैं। गोदारा को 2013 के चुनाव में भाजपा ने जातीय समीकरण के चलते नए खिलाड़ी के रूप में उतारा था, वे सुराना से हार गए लेकिन वीरेन्द्र बेनीवाल से अधिक मत पाने में कामयाब रहे।
इस बार के चुनाव में दोनों ही दलों को बागियों की समस्या से नहीं जूझना पड़ रहा है। बेनीवाल के समक्ष इस बार दौहरी चुनौती है। पहले तो उन्हें चुनाव जीतकर अपनी प्रतिष्ठा बचाना है, वहीं उन्हें पार्टी में खुद को पुनर्स्थापित करना है। यह चुनाव उनके लिए निर्णायक साबित हो सकता है। इस विधानसभा क्षेत्र से इस बार निर्दलियों सहित कुल 11 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें बहुजन समाज पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, तीसरे मोर्चे के रूप में नवगठित राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, आम आदमी पार्टी और अन्य दलों के उम्मीदवार भी हैं। (वार्ता)