Ramayan: भगवान श्रीराम ने सुग्रीव के साथ मिलकर वानर सेना का गठन किया था। इस सेना में एक से बढ़कर एक शक्तिशाली वानर थे। इन वानरों में अपार शक्ति होती थी। इनमें से तो कई उत्पाति वानर भी थे। इन वानरों को कंट्रोल में रखना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए वानरों के प्रत्यके गुट का एक यूथपति होता था। उस काल में कपि नामक जाति के वानर होते थे जोकि अब लुप्त हो गए हैं। उन्हें में से एक द्वीत या द्विविद नाम का वानर था जो महा उत्पाति था।
ALSO READ: हनुमानजी को जब वानर द्वीत बना लेता है बंधक
वानर द्वीत: द्वीत या द्विविद नाम का एक वानर भयंकर ही शक्तिशाली था। वानरों के राजा सुग्रीव के मन्त्री का नाम मैन्द था। मैन्दा का भाई द्विविद था। यह महाशक्तिशाली और भयंकर था। दोनों भाइयों में दस हजार हाथियों का बल था। यह किष्किन्धा की एक गुफा में अपने भाई के साथ रहता था। जब श्रीराम की वानर सेना का गठन हुआ तो इसे भी सेना में शामिल किया गया।
ALSO READ: Ramayan: बजरंगबली को छोड़कर रामायण काल के 5 सबसे शक्तिशाली वानर
रावण को करने लगा परेशान : राम और रावण के युद्ध में दिन के युद्ध के बाद युद्ध नहीं होता था परंतु वह द्वीत रात्रि में चुपचाप से लंका में प्रवेश कर जाता था। रात्रि में रावण शिवजी की आराधना करता था तो वह उस आराधना में खलल डालता था। रावण उस वानर द्वीत से बहुत परेशान हो गया तो उसने श्रीराम को एक पत्र लिखकर कहा कि तुम्हारे यहां का वानर रात्रि में आकर मेरी शिव पूजा में विघ्न डालता है। जब शाम के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है तो फिर यह उपद्रव क्यों? यह तो युद्ध के नियम के विरूद्ध है। कृपाय इस वानर के उत्पात को बंद कराएं।
राम ने समझाया उस वानर को : यह पत्र पढ़कर रामजी ने सुग्रीव से कहा कि पता करो कि वह वानर कौन है। फिर राम जी आंख बंद करते हैं तो उन्हें सब पता चल जाता है। श्री राम ने उस वानर को बुलाकर समझाया कि अब रात्रि में लंका नहीं जाना है और उपद्रव नहीं करना है लेकिन वह वानर द्वीत माना ही नहीं। तब प्रभु श्री राम ने कहा कि इससे अब युद्ध नहीं लड़वाना है इसे किष्किंधा वापस भेज दो।
ALSO READ: रामायण और महाभारत के योद्धा अब कलयुग में क्या करेंगे?
वानर द्वीत के मन में शत्रुता आ गई : उस वानर को युद्ध शिविर से निकाल दिया परंतु वह वानर किष्किंधा गया ही नहीं। उसने सुग्रीव और हनुमान से ही बेर पाल लिया। उसने समझा कि इन्होंने ही मेरी शिकायत की है।
बलराम ने किया था उस वानर का वध : यह उत्पाति वानर लंबी उम्र के कारण महाभारत काल के भौमासुर यानी नरकासुर और पौंड्रक कृष्ण यानी नकली कृष्ण का मित्र बना। महाभारत काल में उसने बलराम और हनुमानजी से युद्ध किया था। बाद में बलरामजी ने इसका वध कर दिया था।