शास्त्रों के अनुसार विद्वान लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और यह 'हनुमद रामायण' के नाम से प्रसिद्ध है। हालांकि इस रामायण के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। यहां प्रस्तुत है जनश्रुति पर आधारिक 5 रोचक तथ्य।
1. नाखून से शिला पर लिखी रामायण : यह घटना तब की है जबकि भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने लगते हैं और श्री हनुमानजी हिमालय पर चले जाते हैं। वहां वे अपनी शिव तपस्या के दौरान की एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे। इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए 'हनुमद रामायण' की रचना की।
2. वाल्मीकि यह देखकर हो गए थे निराश : कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी 'वाल्मीकि रामायण' लिखी और लिखने के बाद उनके मन में इसे भगवान शंकर को दिखाकर उनको समर्पित करने की इच्छा हुई। वे अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए। वहां उन्होंने हनुमानजी को और उनके द्वारा लिखी गई 'हनुमद रामायण' को देखा। हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकिजी निराश हो गए। वाल्मीकिजी को निराश देखकर हनुमानजी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी, क्योंकि आपने जो लिखा है उसके समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है।
3. हनुमानजी ने अपनी रामायण फेंक दी समुद्र में : वाल्मीकिजी की चिंता का शमन करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए और स्वयं द्वारा की गई रचना को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में समा दिया।
3. वाल्मीकिजी ने दिया तब वचन : हनुमानजी द्वारा लिखी रामायण को हनुमानजी द्वारा समुद्र में फेंक दिए जाने के बाद महर्षि वाल्मीकि बोले कि हे रामभक्त श्री हनुमान, आप धन्य हैं! आप जैसा कोई दूसरा ज्ञानी और दयावान नहीं है। हे हनुमान, आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना होगा और मैं वचन देता हूं कि कलयुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखूंगा।
माना जाता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं बल्कि महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। तुलसीदासजी अपनी 'रामचरित मानस' लिखने के पूर्व हनुमान चालीसा लिखकर हनुमानजी का गुणगान करते हैं और हनुमानजी की प्रेरणा से ही वे फिर रामचरित मानस लिखते हैं।
4.मिल गई हनुमद रामायण : कहते हैं कि कालिदास के काल में एक पट्टलिका को समुद्र के किनारे पाया गया था जिसे एक सार्वजनिक स्थान पर टांग दिया गया था ताकि विद्यार्थी उस पर लिखी गूढ़ लिपि को समझ और पढ़कर उसका अर्थ निकाल सकें। ऐसा माना जाता है कि कालिदास ने उसका अर्थ निकाल लिया था और वो ये भी जान गए थे कि ये पट्टलिका कोई और नहीं, अपितु हनुमानजी द्वारा रचित हनुमद रामायण का ही एक अंश है, जो कि जल के साथ प्रवाहित होकर यहां तक आ गया है। महाकवि तुलसीदास के हाथ वहीं पट्टलिका लग गई थी। उसे पाकर तुलसीदास ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना कि उन्हें हनुमद रामायण के श्लोक का एक पद्य प्राप्त हुआ है।
5. हनुमन्नाटक रामायण के अंतिम खंड में लिखा है-
'रचितमनिलपुत्रेणाथ वाल्मीकिनाब्धौ
निहितममृतबुद्धया प्राड् महानाटकं यत्।।
सुमतिनृपतिभेजेनोद्धृतं तत्क्रमेण
ग्रथितमवतु विश्वं मिश्रदामोदरेण।।'
हनुमन्नाटक अंक 14-96
अर्थात : इसको पवनकुमार ने रचा और शिलाओं पर लिखा था, परंतु वाल्मीकि ने जब अपनी रामायण रची तो तब यह समझकर कि इस रामायण को कौन पढ़ेगा, श्री हनुमानजी से प्रार्थना करके उनकी आज्ञा से इस महानाटक को समुद्र में स्थापित करा दिया, परंतु विद्वानों से किंवदंती को सुनकर राजा भोज ने इसे समुद्र से निकलवाया और जो कुछ भी मिला उसको उनकी सभा के विद्वान दामोदर मिश्र ने संगतिपूर्वक संग्रहीत किया।