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प्रभु श्रीराम जैसा जीवन हर संकट से बचाता है, जानिए 10 खास बातें

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अनिरुद्ध जोशी

भारत में यह प्रचलित है कि प्रभु श्रीराम ने जैसा जीवन जिया, वैसा जिएं और भगवान श्रीकृष्ण ने जो कहा, उसे मानें अर्थात कोई भी व्यक्ति श्रीकृष्ण के जैसा जीवन नहीं जी सकता, लेकिन प्रभु श्रीराम के जैसा जीवन जी सकता है। प्रभु श्रीराम ने गीता नहीं कही, बल्कि उन्होंने खुद के जीवन को ही गीता के उपदेशों की तरह बनाकर लोगों को दिखाया। प्रभु श्रीराम ने वन में बहुत ही सादगीभरा तपस्वी का जीवन जिया। वे जहां भी जाते थे तो 3 लोगों के रहने के लिए एक झोपड़ी बनाते थे। वहीं भूमि पर सोते, रोज कंद-मूल लाकर खाते और प्रतिदिन साधना करते थे। उनके तन पर खुद के ही बनाए हुए वस्त्र होते थे। धनुष और बाण से वे जंगलों में राक्षसों और हिंसक पशुओं से सभी की रक्षा करते थे। कोई सोच सकता है कि उस काल में कितने भयानक जंगल हुआ करते थे और साथ ही उन जंगलों में भयानक हिंसक पशुओं के साथ ही हिंसक जंगली मानव भी हुआ करते थे। तो आओ जानते हैं प्रभु श्रीराम के आदर्श जीवन की 10 खास बातें।

 
 
1. एक वचनी : प्रभु श्रीराम एक वचनी हैं, अर्थात वह जिसे भी कोई वचन दे देते हैं या कोई संकल्प कर लेते हैं तो उसे पूरा करने के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देते हैं। रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई।
 
2. एक पत्नी : प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन में सिर्फ एक ही महिला से प्रेम और विवाह किया। उन्होंने कभी भी दूसरी महिला के बारे में सोचा तक नहीं। माता सीता से वे अपार प्रेम करते थे और उनके बगैर एक पल भी रह नहीं सकते थे। जब सीता हरण हुआ तो वे वन-वन उनकी खोज में रोते हुए भटकते रहे और जब माता सीता वाल्मिकी आश्रम में रहने चली गई तब श्रीराम ने भी महलों का सुख छोड़कर भूमि पर शयन करना प्रारंभ कर दिया था।
 
 
3. शाकाहार : 
राम ने अपने पिता को वचन दिया था-
चतुर्दश हि वर्षाणि वत्स्यामि विजने वने।
मधु मूल फलैः जीवन् हित्वा मुनिवद् आमिषम् ||2.20.28।। वाल्मीकि रामायण
अर्थात मैं सौम्य वनों में एक ऋषि की भांती मांस का त्याग कर चौदह वर्ष कंदमूल, फल और शहद पर जीवन व्यतीत करूंगा।... इसका मतलब यह नहीं कि वे मांसाहारी थे बल्कि ऐसा उन्होंने इसलिए कहा कि वन में अन्न की कमी होने के कारण परिस्थिति अनुसार व्यक्ति को मांसाहार को भी अपनाना पड़ता है।
 
 
श्री राम कंद-मूल के लिए जंगलों में जाते थे तो ऐसे भी कई मौके आते थे जबकि कंद-मूल नहीं मिलते थे। ऐसे में उन्हें जो बचा है उसी में गुजारा करना होता था। परदेश में, जंगल में, मरुस्थल या कठिन प्रदेशों में जाने पर अक्सर लोगों को उनके मन का भोजन नहीं मिलता है, लेकिन मांस सभी जगह उपलब्ध हो जाता है। कहते हैं कि जंगल में रहकर लक्ष्मण तो अधिकतर दिन उपवास में ही रहते थे। जंगल में रहकर प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने कभी भी तामसिक या राजसीक भोजन को ग्रहण नहीं किया। सभी जानते हैं कि एक दिन और रात उन्होंने शबरी के बैर खाकर ही गुजारी थी।
 
 
सुंदर कांड के अनुसार, जब हनुमान अशोक वाटिका में देवी सीता को मिलते हैं तब राम की खुशहाली बताते हैं। वे कैसे हैं, किस तरह जीवन जी रहे हैं, उनका दिनक्रम क्या है सबका वर्णन करते हैं।
 
न मांसं राघवो भुङ्क्ते न चापि मधुसेवते।
वन्यं सुविहितं नित्यं भक्तमश्नाति पञ्चमम् ||
अर्थात राम ने कभी मांस सेवन नहीं किया न ही उन्होंने मदिरा का पान किया है। हे देवी, वे हर दिन केवल संध्यासमय में उनके लिए एकत्रित किए गए कंद ग्रहण करते हैं। 
 
इसके अलावा अयोध्याकांड में निम्नलिखित श्लोक निहित है जिसका कथन भोजन का प्रबंध करने के पश्चात लक्ष्मण ने किया था।
 
अयम् कृष्णः समाप्अन्गः शृतः कृष्ण मृगो यथा।
देवता देव सम्काश यजस्व कुशलो हि असि||
 
अर्थात देवोपम तेजस्वी रघुनाथजी, यह काले छिलकेवाला गजकन्द जो बिगडे हुए सभी अंगों को ठीक करने वाला है उसे पका दिया गया है। आप पहले प्रवीणता से देवताओं का यजन कीजिए क्योंकि उसमें आप अत्यंत कुशल है।
 
 
4. तपस्वी सा जीवन : प्रभु श्रीराम ने जब वनवास धारण किया तब उन्होंने अपने सभी राजसी वस्त्र त्याग दिए और तपस्वियों के वस्त्र धारण करके नग्न पैर ही वे वन को निकल गए। रास्ते में उन्हें जब जो मिला वह खा लिया और सो गए। ऐसे कई अवसर आए जबकि वे राजाओं का भोजन कर सकते थे क्योंकि वे जहां से भी गुजरे वहां के राजा ने उन्हें निमंत्रण दिया और उनके लिए सभी तरह के बंदोबस्त करने का निवेदन भी किया, लेकिन प्रभु श्रीराम ऋषि और मुनियों के आश्रम में ही तब तक रहे जब तक की उन्होंने अपनी खुद की कोई पर्ण कुटिया अपने हाथों से न बना ली हो।
 
 
5. संयम और धैर्य : कठिन समय में प्रभु श्रीराम ने हर जगह पर संयम, संकल्प, धैर्य, साहस और कम साधनों में जीने का उदाहरण प्रस्तुत किया। दूसरा शत्रु से संधि करने पर, विपत्ति पड़ने पर या विपत्ति काल में उन्होंने की भी धैर्य और संयम नहीं खोया। कोई सा भी निर्णय उन्होंने क्रोध में नहीं लिया, जबकि लक्ष्मणजी हमेशा क्रोधित हो जाते थे। विपरित परिस्थिति में उन्होंने अपनी बुद्धि का उपयोग करके समाधान के बारे में सोचा। अपनी टीम से संवाद करके समाधान खोजा।

श्रीराम को शस्त्रधारियों में सर्वश्रेष्ठ और शक्तिशाली माना जाता है, परंतु उन्होंने कभी भी अनावश्यक रूप से या क्रोध में आकर अपने शस्त्र नहीं उठाए थे। हमेशा वे शास्त्र वचन की ही बातें करते हैं।
 
 
प्रभु श्रीराम के समक्ष कई बार ऐसे मुश्किल हालत पैदा हुए जबकि संपूर्ण टीम में निराशा के भाव फैल गए थे लेकिन उन्होंने धैर्य से काम लेकर समस्याओं के समाधान को ढूंढा और फिर उस पर कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने सीता हरण से लेकर, अहिराणण द्वारा खुद का हरण और लक्ष्मण के मुर्च्छित हो जाने तक कई तरह के संकटों का सामना किया लेकिन उनकी उत्साही टीम ने सभी संकटों पर विजयी पाई। संकट उसी व्यक्ति के समक्ष खड़े होते हैं जो उनका हल जानता है। सफलता का रास्ता आपके खिलाफ खड़ा किया गया विरोध और संकट ही बनाता है।
 
 
6. खुद के वैद्य : प्रभु श्रीराम महल में रहे थे लेकिन वन में उन्होंने साधुओं की तरह तप और ध्यान किया था। कंद मूल खाकर जीवन गुजारा। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता अपने 14 वर्ष के वनवान में पूरी तरह से सेहतमंद बने रहे थे। वन में वे खुद के वैद्य खुद ही थे। उन्हें सभी तरह की जड़ी बूटियों का ज्ञान था और किस तरह सेहतमंद रहा जा सकता है इसके लिए वे उपवास और योग भी करते थे।
 
7. योजनाओं भरा जीवन : प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन का हर कार्य एक बेहतर योजना के साथ संपन्न किया। उन्होंने पहले ऋषि मुनियों को भयमुक्त कर उनका समर्थन हासिल किया, सुग्रीव को राजा बनाया। तमिलनाडु के तट से श्रीलंका तक पुल बनाना आसान कार्य नहीं था। वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुलर्निर्माण करने का फैसला लिया।
 
 
दूसरी ओर रावण जैसे संपन्न, शक्तिशाली और घातक हथियारों से लैसे व्यक्ति और उसकी सेना से लड़ना आसान नहीं था लेकिन श्रीराम के पास योजना थी साथ ही उन्होंने अपने साथियों से भी कई तरह की योजनाओं पर वार्तालाप किया। यदि आपके पास कोई योजना नहीं है तो आप जीवन में अपने लक्ष्य को नहीं भेद सकते हो। लक्ष्य तभी भेदा जा सकता है जबकि एक बेहतर योजना हो जिस पर टीम कार्य कर सके।
 
8. सेवा और सहयोग : श्रीराम ने अपने जीवन में कई सेवा कार्य किए। उन्होंने जहां ऋषियों को भयमुक्त किया वहीं उन्होंने आदिवासी और वनवासी लोगों के जीवन को सुधारने का कार्य भी किया। उन्होंने गरीब और पीड़ित लोगों की सहायता भी की। उन्होंने सुग्रीव और विभीषण जैसे लोगों को भी अभयदान दिया। शबरी प्रसंभ, केवट प्रसंग और अहिल्या प्रसंग से हमें यह जानकारी मिलती है कि उन्होंने कितने लोगों का उद्धार किया था। 
 
9. रिश्तों का सम्मान : प्रभु श्रीराम अपने माता-पिता, भाई बहन के साथ ही सभी बंधु और बांधवों से प्यार और उनका सम्मान करते थे। उन्होंने उन्होंने अपने हर रिश्ते को पूरी शिद्दत के साथ निभाया। यही कारण था कि परिवार का हर सदस्या उनसे प्यार करता था और उनकी पीड़ा पर रो उठता था। 
 
10. भगवान श्रीराम को प्रिय अपने भक्त : प्रभु श्रीराम ने अपने मित्र, भक्त और सहयोगियों को हमेशा सहयोग किया और उनके मन की इच्छा को जानकर उन्हें वरदान भी दिया। प्रभु श्रीराम ने हनुमान और जामवंत को चिरकाल तक जीवित रहने के वरदान देककर कहा था कि मैं तुमसे द्वापर में मिलूंगा और प्रभु ने अपना ये वचन भी निभाया था। आज भी श्रीराम अपने भक्त को विशेष ध्यान करते हैं।

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