प्रभु श्रीराम ने अपने काल में कई लोगों को वरदान और वचन दिया था। उन्होंने भगवान हनुमान और जामवंतजी को भी वचन और वरदान दिया था। आओ जानते हैं कि वो वचन और वरदान क्या थे।
प्रभु श्रराम ने हनुमान और जामवंतजी को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था और साथ ही कहा था कि जब में द्वापर में अवतार लूंगा तो तुमसे पुन: मिलूंगा। हनुमानजी और जामवंतजी तभी से अपने श्रीराम से मिलने का इंतजार कर रहे थे।
राम-रावण के युद्ध में जामवन्तजी रामसेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद जब भगवान राम विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवन्तजी ने उनसे कहा कि प्रभु इतना बड़ा युद्ध हुआ मगर मुझे पसीने की एक बूंद तक नहीं गिरी, तो उस समय प्रभु श्रीराम मुस्कुरा दिए और चुप रह गए। श्रीराम समझ गए कि जामवन्तजी के भीतर अहंकार प्रवेश कर गया है।
जामवन्त ने कहा, प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई। उस समय भगवान ने जामवन्तजी से कहा, तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं अगला अवतार धारण करूंगा और तब तुमसे मिलूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो।
अंत में द्वापर युग में श्रीराम ने श्रीकृष्ण के रूप में उनसे युद्ध किया और उनका भयंकर तरीके से पसीने बहने लगा। अंत में जब वे हारने लगे तब उन्होंने मदद के लिए अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा। श्रीराम को पुकारने के कारण श्रीकृष्ण को अपने राम रूप में आना पड़ा। यह देखकर जामवंतजी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी और वे उनके चरणों में गिर पड़े।
इसी तरह प्रभु श्रीराम ने कृष्ण रूप में आकर हनुमानजी को अपनी माया से द्वारिका बुलाकर दर्शन दिए थे। श्रीकृष्ण ने हनुमानजी की सहायता से ही सत्यभामा, बलरामजी, गरुड़ और अर्जुन का घमंड चूर करवा दिया था। संपूर्ण कथा पढ़ने के लिए वेबदुनिया के रामायण नामक चैनल पर सर्च करें...
रामायण...जय श्रीराम।