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रामायण काल से जुड़े 10 रहस्य जिनसे दुनिया है अनजान

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अनिरुद्ध जोशी

प्राचीन भारत में रामायण काल को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस काल में मानव अपने वर्तमान स्वरूप में विकसित होने के साथ ही उस काल की कई प्रजातियां लुप्त भी हो रही थी। रामायण काल को भारत का सबसे महत्वपूर्ण काल माना जाता है। आओ जानते हैं इस काल के संबंध में 10 अनसुनी या अनजान बातें।
 
 
1. रामायण काल में थे सिंधु घाटी के नगर : पुरातत्व वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी की पॉटरी की नई सिरे से पड़ताल की और ऑप्टिकली स्टिम्यलैटड लूमनेसन्स तकनीक का इस्तेमाल करके इसकी उम्र का पता लगाया तो यह 6,000 वर्ष पुराने निकले हैं। इसके अलावा अन्य कई तरह की शोध से यह पता चला कि यह सभ्यता 8,000 वर्ष पुरानी है। इसका मतलब यह कि यह सभ्यता तब विद्यमान थी जबकि भगवान श्रीराम (5114 ईसा पूर्व) का काल था और श्रीकृष्ण के काल (3228 ईसा पूर्व) में इसका पतन होना शुरू हो गया था। वैज्ञानिकों की इस टीम के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था। आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर नए तथ्‍य सामने रखे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सभ्यता 5500 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी थी। इस लिहाज से यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। मिस्र की सभ्यता 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मोसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी। शोधकर्ता ने इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता से 1,0000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं। सिंधु घाटी में ऐसी कम से कम आठ प्रमुख जगहें हैं जहां संपूर्ण नगर खोज लिए गए हैं। जिनके नाम हड़प्पा, मोहनजोदेड़ों, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ है।
 
2. विचित्र किस्म की प्रजातियां : भगवान राम का काल ऐसा काल था जबकि धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई। जैसे, वानर, गरूड़, रीछ आदि। माना जाता है कि रामायण काल में सभी पशु, पक्षी और मानव की काया विशालकाय होती थी। मनुष्य की ऊंचाई 21 फिट के लगभग थी।
 
3. रामायण काल के अविष्कार : रामायण काल में कई वैज्ञानिक थे। नल, नील, मय दानव, विश्वकर्मा, अग्निवेश, सुबाहू, ऋषि अगत्स्य, वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि कई वैज्ञानिक थे। रामायण काल में भी आज के युग जैसे अविष्कार हुए थे। रामायण काल में नाव, समुद्र जलपोत, विमान, शतरंज, रथ, धनुष-बाण और कई तरह के अस्त्र शस्त्रों के नाम तो आपने सुने ही होंगे। लेकिन उस काल में मोबाइल और लड़ाकू विमानों को नष्ट करने का यंत्र भी होता था।
 
रामायण काल में विभीषण के पास 'दूर नियंत्रण यंत्र' था जिसे 'मधुमक्‍खी' कहा और जो मोबाइल की तरह उपयोग होता था। वि‍भीषण के पास दर्णन यंत्र भी था। लंका के 10,000 सैनिकों के पास 'त्रिशूल' नाम के यंत्र थे, जो दूर-दूर तक संदेश का आदान-प्रदान करते थे। इसके अलावा दर्पण यंत्र भी था, जो अंधकार में प्रकाश का आभास प्रकट करता था।
 
लड़ाकू विमानों को नष्‍ट करने के लिए रावण के पास भस्‍मलोचन जैसा वैज्ञानिक था जिसने एक विशाल 'दर्पण यंत्र' का निर्माण किया था। इससे प्रकाश पुंज वायुयान पर छोड़ने से यान आकाश में ही नष्‍ट हो जाते थे। लंका से निष्‍कासित किए जाते वक्‍त विभीषण भी अपने साथ कुछ दर्पण यंत्र ले आया था। इन्‍हीं 'दर्पण यंत्रों' में सुधार कर अग्‍निवेश ने इन यंत्रों को चौखटों पर कसा और इन यंत्रों से लंका के यानों की ओर प्रकाश पुंज फेंका जिससे लंका की यान शक्‍ति नष्‍ट होती चली गई। एक अन्य प्रकार का भी दर्पण यंत्र था जिसे ग्रंथों में 'त्रिकाल दृष्‍टा' कहा गया है, लेकिन यह यंत्र त्रिकालदृष्‍टा नहीं बल्‍कि दूरदर्शन जैसा कोई यंत्र था। लंका में यांत्रिक सेतु, यांत्रिक कपाट और ऐसे चबूतरे भी थे, जो बटन दबाने से ऊपर-नीचे होते थे। ये चबूतरे संभवत: लिफ्‍ट थे।
 
4. भवन निर्माण कार्य : रामायण काल में भवन, पूल और अन्य निर्माण कार्यों का भी जिक्र मिलता है। इससे पता चलता है कि उस काल में भव्य रूप से निर्माण कार्य किए जाते थे और उस काल की वास्तु एवं स्थापत्य कला आज के काल से कई गुना आगे थी। उस युग में विश्वामित्र और मयासुर नामक दो प्रमुख वास्तु और ज्योतिष शास्‍त्री थे। दोनों ने ही कई बड़े बड़े नगर, महल और भवनों का निर्माण किया था। गीता प्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक 'श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर' में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम 'नल सेतु' रखा। इसका यह कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।
 
5. रावण की लंका : हिन्दू पौराणिक इतिहास अनुसार श्रीलंका को शिव ने बसाया था। शिव की आज्ञा से विश्वकर्मा ने यहां सोने का एक महल पार्वती जी के लिए बनवाया था। ऋषि विश्रवा ने शिव के भोलेपन का लाभ उठाकर उनसे लंकापुरी दान में मांग ली। तब पार्वती ने श्राप दिया कि महादेव का ही अंश एक दिन उस महल को जलाकर कोयला कर देगा और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरंभ हो जाएगा। विश्रवा से वह लंकापुरी अपने पुत्र कुबेर को मिली लेकिन रावण ने कुबेर को निकाल कर लंका को हड़प लिया। शाप के कारण शिव के अवतार हनुमान जी ने लंका जलाई और विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण के कुल का विनाश हुआ। श्रीराम की शरण में होने से विभीषण बच गए।
 
वाल्मीकि रामायण में लंका को समुद्र के पार द्वीप के मध्य में स्थित बताया गया है अर्थात आज की श्रीलंका के मध्य में रावण की लंका स्थित थी। श्रीलंका के संस्कृत एवं पाली साहित्य का प्राचीनकाल से ही भारत से घनिष्ठ संबंध था। भारतीय महाकाव्यों की परंपरा पर आधारित 'जानकी हरण' के रचनाकार कुमार दास के संबंध में कहा जाता है कि वे महाकवि कालिदास के अनन्य मित्र थे। कुमार दास (512-21ई.) लंका के राजा थे। इसे पहले 700 ईसापूर्व श्रीलंका में 'मलेराज की कथा' की कथा सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही, जो राम के जीवन से जुड़ी है।
 
6.शिव पद : श्रीलंका में एक पर्वत है जिसे श्रीपद चोटी भी कहा जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान इसका नाम उन्होंने एडम पीक रख दिया था। हालांकि इस एडम पीक का पुराना नाम रतन द्वीप पहाड़ है। इस पहाड़ पर एक मंदिर बना है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यहां देवों के देव महादेव शंकर के पैरों के निशान हैं इसीलिए इस स्थान को सिवानोलीपदम (शिव का प्रकाश) भी कहा जाता है। यह पदचिन्ह 5 फिट 7 इंच लंबे और 2 फिट 6 इंच चौड़ें हैं। यहां 2,224 मीटर की ऊंचाई पर स्‍थित इस 'श्रीपद' के दर्शन के लिए लाखों भक्त और सैलानी आते हैं। ईसाइयों ने इसके महत्व को समझते हुए यह प्रचारित कर दिया कि ये संत थॉमस के पैरों के चिह्न हैं। बौद्ध संप्रदाय के लोगों के अनुसार ये पद चिह्न गौतम बुद्ध के हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोगों के अनुसार पद चिह्न हजरत आदम के हैं। कुछ लोग तो रामसेतु को भी आदम पुल कहने लगे हैं। इस पहाड़ के बारे में कहा जाता है कि यह पहाड़ ही वह पहाड़ है, जो द्रोणागिरि का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे। श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में एक बहुत रोमांचित करने वाले इस पहाड़ को श्रीलंकाई लोग रहुमाशाला कांडा कहते हैं।
 
7.रावण की गुफा : ऐसा माना जाता है कि रैगला के जंगलों के बीच एक विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने घोर तपस्या की थी। उसी गुफा में आज भी रावण का शव सुरक्षित रखा हुआ है। रैगला के इलाके में रावण की यह गुफा 8 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां 17 फुट लंबे ताबूत में रखा है रावण का शव। इस ताबूत के चारों तरफ लगा है एक खास लेप जिसके कारण यह ताबूत हजारों सालों से जस का तस रखा हुआ है। श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। रामसेतु के बारे में तो सभी लोग जानते ही हैं।
 
8.राम सेतु : राम सेतु को असल में नल सेतु कहा जाता है। भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग को जब पहली बार नासा ने अपने उपग्रह से देखा तो इसे नाम दिया एडम सेतु। इस घटना के बाद श्रीलंका के मुस्लिमों ने इसे आदम पुल कहना प्रारंभ कर दिया। भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं। राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है।
 
वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी। रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है। नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीक रामायण-6/22/76)। वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आए ते। कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62)
 
9. रामायण काल के जनपद : महाभारत के काल में 16 महाजनपद होते थे। जैन पुराणों अनुसार 18 महाजनपद होते थे। राम के काल 5114 ईसा पूर्व में 9 प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उपजनपद होते थे। ये 9 इस प्रकार हैं- 1.मगध, 2.अंग (बिहार), 3.अवन्ति (उज्जैन), 4.अनूप (नर्मदा तट पर महिष्मती), 5.सूरसेन (मथुरा), 6.धनीप (राजस्थान), 7.पांडय (तमिल), 8. विन्ध्य (मध्यप्रदेश) और 9.मलय (मलावार)। उक्त महाजनपदों के अंतर्गत ही कैकयी, कौशल, अवध, मिथिला आदि जनपद होते थे। इन्हीं महाजनपदों में खासकर अवध, कैकयी, कौशल, प्रयाग, चित्रकूट, जनकपुर (मिथिला), दण्डकारण्य, महाकान्तर, तालीमन्नार, किष्किन्धा, रामेश्वरम, लंका, कंपिल, नैमिषारण्य, गया, अवंतिका, शूरसेन (मथुरा), कम्बोज, कुशावती, दशार्ण (विदिशा), निषाद, काशी, पंचवटी, मलय आदि कई क्षेत्र प्रसिद्ध थे।
 
10. रामायण काल का भूगोल : सूर्यसिद्धांत और वाल्मिकी रामायण में रामायण काल के दौरा का भूगोल बताया गया है। इसमें आज की लंका से कई गुना बड़ी थी रामायण काल की लंका जिसमें लंका के पास के द्वीप भी शामिल थे। इसी तरह उस दौर में हिमालय के लगभग सभी देश और राज्य भी उक्त महाजनपदों के अंतर्गत ही आते थे। 
 
संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1.वाल्‍मीकि रामायण।
2.रामकथा उत्‍पत्ति और विकास: डॉ. फादर कामिल बुल्‍के।
3.लंकेश्‍वर (उपन्‍यास): मदनमोहन शर्मा ‘शाही'।
4.हिन्‍दी प्रबंध काव्‍य में रावण: डॉ. सुरेशचंद्र निर्मल।
5.रावण-इतिहास: अशोक कुमार आर्य।
6. प्रमाण तो मिलते हैं: डॉ. ओमकारनाथ श्रीवास्‍तव (लेख) 27 मई 1973।
7.महर्षि भारद्वाज तपस्‍वी के भेष में एयरोनॉटिकल साइंटिस्‍ट (लेख) विचार मीमांसा 31. अक्‍टूबर 2007।
8. विजार्ड आर्ट।
9.चैरियट्‌स गॉड्‌स: ऐरिक फॉन डानिकेन।
10.क्‍या सचमुच देवता धरती पर उतरे थे डॉ. खड्‌ग सिंह वल्‍दिया (लेख) धर्मयुग 27 मई 1973।
 

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