नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि दिवाली के बाद के दिनों में आतिशबाजी के बजाय जैव ईंधन जलाने से राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता खराब होती है।
आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में दिवाली पर आतिशबाजी के पहले, दौरान और बाद में नई दिल्ली में परिवेशी पीएम 2.5 की रासायनिक विशिष्टता और स्रोत विभाजन शीर्षक वाला अध्ययन किया गया। इसमें त्योहार के पहले, दौरान और बाद में राजधानी में परिवेशी वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्रदूषण स्रोतों पर प्रकाश डाला गया है।
अध्ययन के मुख्य लेखक चिराग मनचंदा ने कहा, टीम ने पाया कि दीवाली के बाद के दिनों में जैव ईंधन जलने संबंधी उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसमें दीवाली पूर्व संकेंद्रण की तुलना में औसत स्तर लगभग दोगुना बढ़ गया है।
साथ ही, कार्बनिक पीएम 2.5 से संबंधित स्रोत विभाजन परिणाम दिवाली के बाद के दिनों में प्राथमिक और द्वितीयक दोनों कार्बनिक प्रदूषकों में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देते हैं, जो प्राथमिक जैविक उत्सर्जन वृद्धि में जैव ईंधन जलाने की भूमिका का सुझाव देते हैं।
उन्होंने कहा, हमने यह भी पाया कि दिवाली के दौरान पीएम 2.5 के स्तर में धातु की मात्रा 1100 प्रतिशत बढ़ी और अकेले आतिशबाजी में पीएम 2.5 धातु का 95 प्रतिशत हिस्सा था। हालांकि आतिशबाजी का प्रभाव त्योहार के लगभग 12 घंटों के भीतर कम हो गया।
पत्रिका एटमॉस्फीयरिक पलूशन रिसर्च में प्रकाशित शोध अध्ययन ने चुनौती का समाधान करने के लिए पीएम 2.5 के अत्यधिक समय-समाधानित तत्वों और कार्बनिक अंशों के लिए स्रोत-विभाजन परिणाम प्रस्तुत किए हैं।
आईआईटी-दिल्ली के रसायन अभियांत्रिकी विभाग के विक्रम सिंह ने कहा, सर्दियों में क्षेत्र में पराली जलाने और ठंड से बचने के लिए किए जाने वाले उपायों के चलते जैव ईंधन जलाने की गतिविधियां बढ़ती हैं। इस प्रकार अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि आतिशबाजी के बजाय जैव ईंधन जलाने से दिवाली के बाद के दिनों में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब होती है।(भाषा)