प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि आर्य समाज विवाह की रस्म पूरी किए बगैर विवाह प्रमाण पत्र जारी करता रहा है। केवल आर्य समाज मंदिर के मैरिज सर्टिफिकेट से साबित नहीं होती शादी।
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा, 'इस अदालत में विभिन्न आर्य समाज सोसाइटी द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्रों का अंबार लगा है, जिन पर इस अदालत द्वारा और अन्य उच्च न्यायालयों द्वारा गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं।'
अदालत ने भोला सिंह नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया गया है कि उसकी पत्नी को उसके मायके वालों ने अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा है। यह बात साबित करने के लिए उसने गाजियाबाद के आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया।
अदालत ने गत 31 अगस्त को पारित आदेश में कहा, 'चूंकि इस विवाह का पंजीकरण नहीं कराया गया है, इसलिए उक्त प्रमाण पत्र के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि दोनों पक्षों ने विवाह किया है।'
अदालत ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में महिला बालिग है और उसके पिता ने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है और इस मामले में जांच चल रही है, इसलिए अवैध रूप से बंदी बनाकर रखने का कोई मामला नहीं है। (भाषा)