नई दिल्ली। दिल्ली में खतरनाक स्तर पर पहुंच गए वायु प्रदूषण के लिए आप सरकार की तथाकथित लेटलतीफी को जिम्मेदार ठहराते हुए दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख अजय माकन ने केजरीवाल पर मुख्यमंत्री के बजाय विपक्ष के नेता की तरह काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि प्रदूषण रोकने के लिए केजरीवाल ने सही मायने में कोई प्रयास ही नहीं किया।
उन्होंने कहा कि यदि पराली जलाने को लेकर पड़ोसी राज्यों से पहले ही बात कर ली जाती और डीटीसी के लिए बसें खरीद ली जातीं तो यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।
उन्होंने केजरीवाल पर मुख्यमंत्री के बजाय विपक्ष के नेता की तरह काम करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि प्रदूषण रोकने के लिए केजरीवाल ने सही मायने में कोई प्रयास ही नहीं किया।
माकन ने कहा कि वायु प्रदूषण के बारे में इतनी खराब स्थिति पहले कभी नहीं हुई। इसके लिए दिल्ली सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है। शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2001 से 2003 के बीच एक लाख वाहनों को सीएनजी में तब्दील किया गया जिसकी वजह से डीजल का प्रदूषण बहुत कम हुआ।
माकन ने कहा कि अरविन्द केजरीवाल सरकार ऑड-ईवन योजना अभी इसलिए शुरू नहीं कर पायी क्योंकि दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली ठीक नहीं है। जब दुपहिया वाहन बंद हो जाएंगे तो लोग कैसे जायेंगे। कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि जिस समय कांग्रेस की सरकार दिल्ली में थी तब डीटीसी की 5445 बसें थीं जो अब घटकर 3951 रह गई हैं। वर्तमान सरकार चाहती तो कम से कम उतनी बसें तो ला सकती थीं जितनी हमारे समय में थीं क्योंकि उनके लिए पार्किंग स्थल की दिक्कतें नहीं है।
माकन ने कहा कि अक्टूबर 2015 से लेकर अक्टूबर 2017 तक जो 787 करोड़ रुपए पर्यावरण उपकर के रूप में एकत्र किए गए हैं, उनमें से अधिकतर राशि सरकार खर्च ही नहीं कर पाई। सिर्फ 93 लाख रुपए खर्च हुए हैं। सरकार चाहती तो इस 787 करोड़ से डीटीसी के लिए 1600 बसें आराम से खरीद सकती थी। इससे हमारी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली ठीक हो सकती थी। इस 787 करोड़ से वैक्यूम क्लीनिंग मशीनें खरीद सकते थे जो सड़कों से धूल के कण साफ करने में मददगार साबित होतीं।
उन्होंने कहा कि सही मायने में इस सरकार (केजरीवाल सरकार) ने कोई कोशिश ही नहीं की कि प्रदूषण को रोका जा सके।
माकन ने कहा कि केजरीवाल सरकार का यह तीसरा साल है। कोई सजग मुख्यमंत्री होता तो वह पराली जलाने के मौसम से पहले ही मिलता (पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से)। अब जाकर सब जगह घूमने का क्या मतलब? इनको मिलना था तो अगस्त-सितंबर में ही जाकर मिलते। (भाषा)