अयोध्या। दिगंबर अखाड़ा के महंत, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष और राम मंदिर आंदोलन के अगुवा संत रामचंद्र दास परमहंस की पुण्यतिथि पर उनके समाधि स्थल पर रामनगरी के संत-महंतों के अतिरिक्त प्रबुद्धजन व प्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ भी 31 जुलाई को आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आ रहे हैं।
ब्रह्मलीन महंत रामचंद्र दास परमहंस का जन्म वर्ष 1912 में हुआ था। उनकी मृत्यु 31 जुलाई 2003 में हुई थी। महंत रामचंद्र दास परमहंस फक्कड़ व तेजतर्रार संतों में गिने जाते थे। उनकी अयोध्या से की गई गर्जना दिल्ली तक पहुंचती थी।
वर्ष 1949 से वे राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे और 1975 में उन्हें अयोध्या के दिगंबर अखाड़े का श्री महंत बनाया गया। महंत रामचंद्र दास परमहंस को बैरागी संत कहा जाता था। परमहंस रामचंद्र दास महाराज ने श्रीराम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना के लिए 1950 में जिला न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया।
अदालत ने उस प्रार्थना पत्र पर अनुकूल आदेश दिए और निषेधाज्ञा जारी की। मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय में अपील की, उच्च न्यायालय ने अपील रद्द करके पूजा-अर्चना बेरोकटोक जारी रखने के लिए जिला न्यायालय के आदेश की पुष्टि कर दी। इसी आदेश के कारण राम मंदिर निर्माण के आदेश के पूर्व तक पूजा-अर्चना होती रही, जो कि आज भी उसी प्रकार से श्रीराम जन्मभूमि निर्माण के दौरान भी चल रही है।
श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के 77वें संघर्ष की शुरुआत अप्रैल, 1984 की प्रथम धर्म संसद (नई दिल्ली) में हुई, जिसमें अयोध्या, मथुरा, काशी के धर्मस्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव स्वर्गीय दाऊदयाल खन्ना के द्वारा रखा गया, जो सर्वसम्मति से पारित हुआ।
दिगंबर अखाड़ा, अयोध्या में परमहंस रामचंद्र दास की अध्यक्षता में 77वें संघर्ष की कार्ययोजना के संचालन हेतु प्रथम बैठक हुई थी, जिसमें श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। परमहंस सर्वसम्मति से यज्ञ समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुने गए।
जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु जनजागरण के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या तक राम-जानकी रथयात्रा का कार्यक्रम भी इसी बैठक में तय हुआ था। उत्तर प्रदेश में भ्रमण के लिए अयोध्या से भेजे गए 6 राम-जानकी रथों का पूजन परमहंस महाराज के द्वारा अक्टूबर 1985 में संपन्न हुआ था। पूज्य परमहंस महाराज की दूरदर्शिता के परिणामस्वरूप जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी शिवरामाचार्य महाराज के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि न्यास की स्थापना हुई।
दिसंबर 1985 की द्वितीय धर्म संसद उडुपी (कर्नाटक) में पूज्य परमहंस की अध्यक्षता में हुई, जिसमें निर्णय हुआ कि यदि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक रामजन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खुला तो महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आंदोलन, ताला तोड़ो में बदल जाएगा और 8 मार्च के बाद प्रतिदिन देश के प्रमुख धर्माचार्य इसका नेतृत्व करेंगे।
पूज्य परमहंस रामचंद्र दास महाराज ने अयोध्या में अपनी इस घोषणा से सारे देश में सनसनी फैला दी कि 8 मार्च 1986 तक श्रीराम जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा। जिसका परिणाम यह हुआ कि 1 फरवरी 1986 को ही ताला खुल गया। जनवरी, 1989 में प्रयाग महाकुम्भ के अवसर पर आयोजित तृतीय धर्मसंसद में शिलापूजन एवं शिलान्यास का निर्णय परमहंस की उपस्थिति में ही लिया गया था।
इस अभिनव शिलापूजन कार्यक्रम ने संपूर्ण विश्व के रामभक्तों को जन्मभूमि के साथ प्रत्यक्ष जोड़ दिया। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष जगद्गुरु रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी शिवरामाचार्य महाराज का साकेतवास हो जाने के पश्चात् अप्रैल, 1989 में परमहंस महाराज को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित किया गया।
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में महंत रामचंद्र दास परमहंस के सहयोगी रहे वशिष्ठ पीठाधीश्वर पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती ने इस अवसर पर कहा कि महंत रामचंद्र दास परमहंस ने राम जन्मभूमि की लड़ाई लड़ी थी। उन्हीं के नेतृत्व में ही विवादित ढांचा गिराया गया था।
जिसके बाद आज भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। आज यहां पर आने के बाद याद आया कि जब 19 वर्ष पहले परमहंस दास की चिता जल रही थी, तो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी यहां पर आए थे और कहा था कि एक न एक दिन हम सभी को जाना है।
लेकिन हमारे पार्टी में एक ऐसा नेता आएगा जो भगवान के इस भव्य मंदिर निर्माण कार्य को पूरा करेगा। अयोध्या के विकास को लेकर भी कार्य किए जा रहे हैं। वहीं केंद्र और प्रदेश सरकार से मांग करते हुए उन्होंने कहा कि भव्य मंदिर निर्माण के साथ सरयू तट स्थित महंत परमहंस दास की समाधि स्थल को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।