देहरादून। उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के सीएम फेस रहे कर्नल अजय कोठियाल के इस्तीफे से आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगा है। इस इस्तीफे के चलते पार्टी को पड़ोसी राज्य हिमाचल के आगामी चुनावों में भी नुकसान हो सकता है। कर्नल कोठियाल के इस्तीफे के बाद पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए भूपेश उपाध्याय भी पार्टी को अलविदा कह गए।
इसे कर्नल कोठियाल की असफलता ही कहेंगे कि वे केजरीवाल के आशीर्वाद के बाद सीएम का चेहरा घोषित होने के बावजूद सभी को साथ लेकर भी नहीं चल पाए और न ही जोड़ने में ही वे सफल हुए। उनके सीएम फेस घोषित होते ही पार्टी को उम्मीदभरी निगाह से देख रहे कुछ नौकरशाह व अन्य नेता उनके नेतृत्व को दरकिनार करते हुए आप छोड़ गए। उन्होंने किसी को भी रोकने की कोशिश नहीं की।
कर्नल कोठियाल की यह भी असफलता ही मानी जाएगी कि बीते विधानसभा चुनाव से पहले जिस अंदाज से केजरीवाल ने जनता को दी गई गारंटी के बूते आप पार्टी की हवा बनाने की कोशिश की, उसे वे आगे नहीं बढ़ा सके। फौजी होने की वजह से कर्नल कोठियाल से बहुत राजनीतिक व चुनावी चातुर्य की उम्मीद थी भी नहीं।
सीएम फेस बनने के बावजूद वे गंगोत्री से चुनाव लड़ अपनी जमानत तक नहीं बचा सके जबकि कर्नल ने उत्तरकाशी के इन इलाकों में कई युवाओं को ट्रेनिंग भी दी थी। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मात्र बमुश्किल 3.31 प्रतिशत वोट मिले। हालांकि चुनाव प्रचार में केजरीवाल की पार्टी ने भाजपा व कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी और कई भीड़भरे रोड शो आयोजित कर सभी को चौंकाया भी।
चुनाव परिणाम के बाद से ही केजरीवाल कर्नल कोठियाल की 'उपयोगिता' को लेकर संशय में दिख रहे थे। प्रदेश स्तर पर केजरीवाल ने संगठन में बदलाव किया तो भी कर्नल से कोई सलाह-मशविरा करते वे नहीं दिखे। कर्नल चुनावी हार के बाद किसी आप के कार्यक्रम में भी नहीं दिखे। कर्नल के इस्तीफे से आप को कोई ऐसा असर उत्तराखंड में तो फिलहाल पड़ता नहीं दिख रहा, क्योंकि सीएम का चेहरा घोषित होने के बाद भी कर्नल पार्टी के अंदर और बाहर एक राजनीतिक वजूद तो बना नहीं पाए।
सेना में रहकर कई वीरता मेडल अपने नाम करने वाले कर्नल अजय कोठियाल उत्तराखंड की सैनिक राजनीति तक में कोई करिश्मा न दिखा सके। हालंकि 2013 की आपदा के बाद केदार पुनर्निर्माण में भी कर्नल की भूमिका की बार-बार चर्चा होती रही लेकिन लेकिन प्रदेश की राजनीति में वे इसका भी लाभ ले नहीं सके। कर्नल कोठियाल ने अपने इस्तीफे का कारण पूर्व सैनिकों, बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं की इच्छा को ध्यान में रखकर उठाया हुआ कदम बताया लेकिन यह तर्क किसी के भी गले उतर नहीं रहा।