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16 साल में 800 करोड़ खर्च हुए झील पर, लगातार घट रही है डल की उम्र

हमें फॉलो करें 16 साल में 800 करोड़ खर्च हुए झील पर, लगातार घट रही है डल की उम्र

सुरेश डुग्गर

, सोमवार, 15 अक्टूबर 2018 (17:55 IST)
श्रीनगर। यह एक कड़वा सच है कि विश्व प्रसिद्ध डल झील की सफाई व उसके संरक्षण पर केंद्र सरकार 16 सालों में 759 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि खर्च कर चुकी है। विकास के नाम डल झील पर पानी की तरह राशि खर्च करने के बाद भी स्थिति जस की तस है।

झील की खूबसूरती पर ग्रहण अब भी लगा हुआ है। यही नहीं डल झील की उम्र अब और कम हो गई है। ऐसे में सच में अगर आपको कश्मीर की खूबसूरती चाहिए तो उस डल झील को बचाना पड़ेगा जिसके कारण ही कश्मीर की पहचान है। या फिर यह कह लीजिए कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बढ़ते प्रदूषण और सरकारी उदासीनता के चलते भी विश्व प्रसिद्ध डल झील की उम्र सिर्फ साढ़े तीन सौ साल ही रह गई है। डल कश्मीर की पहचान है और इसे संरक्षित रखने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है।
 
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना और प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत डल झील के विकास और संरक्षण के लिए एकमुश्त राशि उपलब्ध कराई है। यही नहीं शहरी विकास योजना में भी डल झील को शामिल किया गया। लेकिन डल झील की सफाई का काम पूरा नहीं हो सका। डिप्टी कमिश्नर श्रीनगर डॉ. सईद आबीद रशीद शाह का कहना है कि अब झील की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए हाउस बोटों में बायो डाइजेस्टर लगाए जाएंगे जो उसको स्वच्छ रखने में काफी कारगर साबित होगा।
 
खबर यह है कि हाउस बोर्ड से हर रोज निकलने वाले मल-मूत्र को झील में जाने से रोकने के लिए जम्मू कश्मीर सरकार बायो डाइजेस्टर (जैविक-शौचालय) बनाने जा रही है। पहले चरण में यह शौचालय कुछ हाउसबोट में ही बनाए जाएंगे परंतु प्रयोग सफल होने पर इसे सभी हाउसबोट में बनाया जाएगा। इस शौचालय को विशेष रखरखाव और किसी भी सीवेज सिस्टम की आवश्यकता नहीं है।
 
सरकार ने यह कदम उच्च न्यायालय की फटकार के बाद उठाया है। न्यायालय ने आदेश पर लेक्स एंड वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी (लावडा) ने हाउस बोटों में बायो डाइजेस्टर लगाने की प्रक्रिया शुरू की है। डिप्टी कमिश्नर श्रीनगर डॉ. सईद आबीद रशीद शाह, जो लावडा के उपाध्यक्ष भी हैं, ने भारत के विभिन्न राज्यों से आए निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं के साथ बैठक बुलाई थी जिसमें हाउस बोटों में बायो-डाइजेस्टर लगाने पर चर्चा की।
 
उन्होंने प्रशिक्षण के तौर पर कुछ हाउस बोटों में बायो डाइजेस्टर स्थापित करने के लिए कहा ताकि उसकी सफलता के बारे में हाउस बोटों के मालिकों को पता चले और वह इस प्रणाली को अपनाएं। शाह ने कहा कि कश्मीर में ऐसी जलवायु स्थितियां मौजूद हैं जिसके तहत यह बायो डाइजेस्टर यहां सफल हो सकते हैं।
 
ये खास किस्म के गंधरहित शौचालय होते हैं जो पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। यह शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं को सक्रिय करते हैं जो मल इत्यादि को सड़ने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को री-साइकिल कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है। पर्यटन की संख्या बढ़ जाने पर यहां इस्तेमाल किए जाने वाले सार्वजनिक शौचालयों के चलते डल झील में मल इकट्ठा होने से पर्यावरण दूषित हो रहा है। इस प्रयास के बाद डील झील में मौजूद सभी हाउस बोटों में बने शौचालयों को बायो-डाइजेस्टर में बदल दिया जाएगा। इसके अलावा पर्यटकों के लिए झील के आसपास सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए भी इस तरह के शौचालय बनाए जाएंगे।
 
प्रदूषण और सरकारी उदासीनता के चलते भी विश्व प्रसिद्ध डल झील की उम्र सिर्फ साढ़े तीन सौ साल ही रह गई है। उसके बाद यह सिर्फ किस्से कहानियों में ही सिमट कर रह जाएगी। यह भयावह खुलासा उत्तराखंड स्थित रूड़की विश्वविद्यालय के अल्टरनेट हाइड्रो एनर्जी केंद्र द्वारा कुछ अरसा पहले डल व नगीन झील के संरक्षण और प्रबंधन के लिए तैयार की गई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में हुआ है।
 
इस रिपोर्ट के अनुसार झील में हर साल 61 हजार टन गाद गिर रही है, जो इसके तल पर हर साल 2.7 मिलीमीटर मोटी परत के तौर पर जम रही है। अगर इसी रफ्तार के साथ गाद जमा होती रही तो अगले 355 वर्षों में झील में पानी कहीं नजर नहीं आएगा और यह एक मैदान होगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि झील में यह गाद साथ सटे छह जलग्रहण क्षेत्रों से आ रही है। झील के संरक्षण की कवायद में जुटे लोगों के मुताबिक यह डीपीआर बनाने का काम करीब नौ साल पहले केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद शुरू हुआ था, लेकिन आज तक राज्य सरकार ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।
 
उत्तराखंड स्थित रूड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने झील के संरक्षण के लिए अपनी डीपीआर तैयार करते हुए रेडियोमिटरिक डेटिंग तकनीक का सहारा लिया था। उन्होंने बताया कि झील के संरक्षण के लिए व्यावहारिक तौर पर ठोस पग उठाने होंगे अन्यथा इसकी उम्र सिर्फ 355 साल ही रह जाएगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक डल झील के संरक्षण के लिए किए जा रहे विभिन्न दावों के बीच कश्मीर की शान यह झील लगातार प्रदूषण की मार से सिकुड़ती जा रही है।
 
विश्वविद्यालय द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में झील के संरक्षण पर जोर देते हुए कहा गया है कि झील के जलग्रहण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण के अलावा जलनिकासी की उचित व्यवस्था करना बहुत जरूरी है। इसके अलावा झील में गिर रही गंदगी को रोकते हुए भीतर बसे लोगों को भी वहां से हटाया जाना चाहिए। डीपीआर में डल झील के जलग्रहण क्षेत्र को 33 हजार हेक्टेयर बताया गया है, जो पहाड़ के साथ सटा झील का हिस्सा, दूसरा झील का मुख्य क्षेत्र, शहरी क्षेत्र, छत्रहामा, दारा और डाचीगाम तक है।
 

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