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आपदा, मिथकों और इसकी वास्तविकताओं पर आधारित प्रदर्शनी का आयोजन

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रविकांत द्विवेदी 
गूंज पिछले दो दशकों में अपने आपदा-राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए पूरे देश भर में जाना जाता है। इसी कड़ी में गूंज ने पिछले 2 दशकों से जमीनी हकीकत से मिली सीख व आपदा मिथकों और इसकी वास्तविकताओं पर आधारित एक प्रदर्शनी का आयोजन किया है।

दिल्ली के ललित कला अकादमी में 27 मार्च से लेकर 31 मार्च तक चलने वाली इस 5 दिवसीय प्रदर्शनी में आपदा की करीब 45 तस्वीरें हैं, जिन्हें गूंज के संस्थापक और रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित अंशु गुप्ता ने खुद खींची हैं। भारत भर में आपदाओं को करीब से देखने व अपनी व्यक्तिगत यात्रा के दौरान ये तस्वीरें लीं गईं हैं, जो आपको कश्मीर से लेकर केरल, असम से लेकर गुजरात तक और ज्ञात से लेकर अज्ञात समझी जाने वाली आपदाओं से रुबरु कराती हैं। इस प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य इन आपदाओं के इर्द गिर्द घूमने वाले मिथकों, साक्ष्य के साथ इसकी वास्तविकता और इन आपदाओं को लेकर पनपी गलतफहमी को दूर करना है। 
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ये प्रदर्शनी खास तौर से गूंज के 2 दशक के आपदा कार्यों से उभरे नए विचारों के संकलन के साथ ही आपदा से होने वाले अपव्यय, लोगों की आजीविका और पुनर्वास पर आधारित है। इन फोटो संग्रह के बारे बताते हुए अंशु गुप्ता कहते हैं कि उनकी इस यात्रा की शुरुआत कॅालेज के दिनों से हुई जब 1991 में उत्तरकाशी में आए भूकंप से देश दहल गया था। पिछले 20 वर्षों में आई अनेक आपदाओं में सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक होने के नाते उनकी कोशिश रही है कि चित्रों के माध्यम राहत कार्यों के दृश्य और अदृश्य पहलुओं को करीब से देखा जाए। खासकर आपदा के शिकार लोगों को हमें क्या देना चाहिए और उनके लिए हकीकत में किसकी आवश्यकता है। 
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गूंज की सह-संस्थापक मीनाक्षी गुप्ता ने कहा, कि “यह प्रदर्शनी सभी लोगों को देखना चाहिए खासकर उन लोगों को जिन्होंने कभी आपदा-राहत और पुनर्वास के काम में योगदान दिया है या ऐसे कामों से जुड़ा रहा है। यह प्रदर्शनी आपदाओं को लेकर लोगों के बीच एक बेहतर समझ और सहानुभूति बनाने में मददगार होगा।” वर्ष 2019 में गूंज के 2 दशक के समारोहों के एक हिस्से के रूप में आयोजित की गई ये प्रदर्शनी गूंज के काम से पूरी दुनिया, इसके प्रतिबिंब, अंतर्दृष्टि और सीखने के साथ साझा करता है। 
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अंशु गुप्ता के बारे में : 
देश ही नहीं बल्कि विदेशों में क्लोथिंग मैन के नाम से लोकप्रिय हैं, गूंज के संस्थापक अंशु गुप्ता। भारत के प्रमुख सामाजिक उद्यमियों में से एक अंशु ने 20 साल पहले उपेक्षित लेकिन लोगों की बुनियादी जरूरतों के रूप में कपड़ों के बारे में बात की थी और पुराने कपड़े और अन्य शहरी अधिशेष को विकास के लिए एक शक्तिशाली संसाधन के रुप में बदल दिया था। उनका मानना है कि 'गरीबी कई लोगों के लिए आज भी सबसे बड़ी आपदा है। आपदा के लिए इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं है। लोगों की मदद करने के लिए अंशु ने हर आपदा कार्य को ध्यान में रखा है, और इसे एक संसाधनों और सबसे अधिक उपेक्षित समुदायों तक पहुंचने के अवसर के रूप में देखा है। उनके नेतृत्व में गूंज ने आपदा-राहत और पुनर्वास पर न केवल बड़े पैमाने पर काम किया है, बल्कि आपदा प्रभावितों की आजीविका और गरिमा लाने के लिए उपेक्षित माने जाने वाले आपदा अपव्यय का भी उपयोग किया है। एक नेता के रूप में अंशु ने सरल विचारों को राष्ट्रव्यापी आंदोलनों में बदल दिया है और दुनिया को विकास के लिए एक नई मुद्रा देने के लिए सेवा की पारंपरिक धारणाओं को फिर से परिभाषित किया है।
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गूंज के बारे में 
GOONJ का मतलब एक प्रतिध्वनि या तरंग। एक ऐसा सामाजिक उद्यम जिसे बहुत सारे पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। गूंज पूरे ग्रामीण भारत के बड़े पैमाने पर विकास कार्यों को पूरा करने के लिए शहरों के कम उपयोगी सामान का इस्तेमाल करता है। प्रतिवर्ष 4000 टन से अधिक सामग्री के साथ काम करते हुए गूंज इस सामग्री को एक संसाधन के रूप में, ग्रामीण समुदायों को गरिमा के साथ एक समानांतर मुद्रा के रूप में पहुंचाता है। क्योंकि वे जल निकायों को रिचार्ज करने, स्थानीय संरचना के पुनर्निर्माण, शिक्षा के लिए बड़े पैमाने पर विकास कार्य करते हैं और ये उनके अपने खुद के मुद्दे होते हैं। गूंज के काम से आपदा-राहत और पुनर्वास कार्य में व्यवस्थित परिवर्तन हुए हैं। इतना ही नहीं गूंज ने मासिक धर्म स्वच्छता के सबसे वर्जित समझे जाने वाले मुद्दे को भी सबके सामने रखा है और एक व्यवहारिक समाधान के रूप में साफ सूती कपड़ा प्रदान किया है।

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