नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने देहरादून में वर्ष 2009 में एमबीए के एक छात्र की फर्जी मुठभेड़ में हत्या के मामले में उत्तराखंड पुलिस के सात कर्मियों की उम्र कैद की सजा आज बरकरार रखी और कहा कि विधि के शासन द्वारा शासित व्यवस्था में न्याएतर हत्या की कोई जगह नहीं है।
बहरहाल, अदालत ने 10 अन्य पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा निरस्त कर दी, जिन्हें छात्र के अपहरण और हत्या की साजिश रचने का दोषी ठहराया गया था। अदालत ने कहा कि परिस्थितियां उनका अपराध साबित नहीं करतीं।
3 जुलाई 2009 को पुलिस ने गाजियाबाद के निवासी 22 साल के रनबीर सिंह की देहरादून के लाडपुर वन्य क्षेत्र में हत्या कर दी थी। अदालत ने पुलिस की इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने छात्र की इसलिए हत्या की क्योंकि उसने तत्कालीन राष्ट्रपति के दौरे को ध्यान में रखते हुए तैनात एक पुलिसकर्मी की पिटाई की और उसका सर्विस हथियार छीनकर फरार हो गया था।
इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी और मामले को उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में स्थानान्तरित किया था। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आई एस मेहता की पीठ ने फैसले में कहा कि फर्जी मुठभेड़ एक तरह से न्याएतर हत्या है, जिसका विधि के शासन द्वारा शासित कानून व्यवस्था में कोई जगह नहीं है।
फर्जी मुठभेड़ में उत्तराखंड पुलिस द्वारा एक युवक की हत्या को ‘दर्दनाक मामला’ बताते हुए उच्च न्यायालय ने उपनिरीक्षकों संतोष कुमार जायसवाल, गोपाल दत्त भट्ट (थाना प्रभारी), राजेश बिष्ट, नीरज कुमार, नितिन चौहान, चंद्र मोहन सिंह रावत और कांस्टेबल अजीत सिंह को दोषी ठहराने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
ये सातों निलंबित हैं। इसके अलावा उच्च न्यायालय ने दस अन्य पुलिसकर्मियों को बरी किया, जिनमें कांस्टेबल सतबीर सिंह, सुनील सैनी, चंद्र पाल, सौरभ नौटियाल, नागेंद्र राठी, विकास चंद्र बलूनी, संजय रावत और मनोज कुमार तथा चालक मोहन सिंह राणा तथा इंद्रभान सिंह शामिल हैं।
इन दस पुलिसकर्मियों को निचली अदालत ने युवक के अपहरण और हत्या के लिए अन्य पुलिसकर्मियों के साथ साजिश रचने के आरोप में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। निचली अदालत ने 9 जून 2014 को अपना फैसला सुनाया था।
पुलिस कर्मियों ने अपनी अपील में आरोप लगाया था कि गाजियाबाद का रहने वाला रनबीर सिंह दो अन्य साथियों के साथ डकैती करने और उनमें से एक की सर्विस रिवॉल्वर छीनने के लिए देहरादून गया था। वे सभी तीन जुलाई 2009 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के दौरे के मद्देनजर सुरक्षा ड्यूटी पर थे। सीबीआई ने अदालत को बताया था कि रनबीर 3 जुलाई 2009 को देहरादून नौकरी के लिए गया था और दोषियों की कहानी मनगढंत है। (भाषा)