ब्रज में होली पर्व कई रंग में रंगा दिखाई देते हैं यानी 'होली एक रूप अनेक'। मथुरा के राधारानी मंदिर में लड्डू होली, बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर फूलों की होली, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में कीचड़ की होली, गोकुल में छड़ीमार होली, द्वारिकाधीश मंदिर में बगीचा होली, आगरा में मनकामेश्वर नाथ का डोला।
प्रियाकांत जू मंदिर, वृंदावन में हजारों लोगों ने होली पर रंग और गुलाल से होली खेली। लेकिन आज शनिवार को हुरंगा यानी कुर्ताफाड़ होली दाऊजी में खेली जा रही है। कपड़े के कोड़ों से हुरियारों की पिटाई होती है। इस रोमांचकारी नजारे को देखने के लिए देश-विदेश से भक्त बलदेव के दाऊजी मंदिर में पहुंचते हैं। कान्हा की नगरी में 45 दिन चलने वाली होली का समापन दाऊजी के विश्वप्रसिद्ध मंदिर में कान्हा की नगरी में शनिवार को हुरंगा के साथ हो गया।
भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई दाऊजी महाराज के गांव बलदेव में गोप समाज द्वारा विश्वप्रसिद्ध कपड़ाफाड़ हुरंगा का आयोजन दिव्यता और भव्यता के साथ किया जा रहा है। 5,000 साल वाली इस हुरंगा परंपरा को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु बलदेव पहुंचे हुए हैं। दाऊजी में इन भक्तगणों पर क्विंटलों टेसू के फूल-पत्तियां और गुलाल, रंगभरी बाल्टी गोपिकाओं और ग्वाल पर रंगों की बौछार करते हैं। इसी अवसर पर देवर का कुर्ताफाड़ कोड़ा बनाया जाता है। कपड़े के इस कोड़े से भाभी, देवर की पिटाई लगाती है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु दाऊजी पहुंचे।
मान्यता है कि हुरंगा की कहानी भगवान श्रीकृष्ण की चीरहरण लीला से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में वस्त्रविहीन गोपियों के कपड़े चुरा लिए और उन्हें संदेश दिया कि वे जल में निर्वस्त्र होकर कभी स्नान न करें।
लेकिन गोपियों को कृष्ण के वस्त्र चुराने वाली बात अच्छी नहीं लगी और वे कुपित हो गईं जिसके चलते नाराज गोपियों ने श्रीकृष्ण के बड़े भाई दाऊ के कपड़े फाड़कर उसका कोड़ा बनाया। कपड़े का कोड़ा बनाकर मारने के लिए गोपियां उनके पीछे दौड़ीं, तभी से इस हुरंगा परंपरा की शुरुआत हुई है। हुरंगा परंपरा के चलते भाभी, अपने देवर का कुर्ता फाड़ती हैं और उसका कोड़ा बनाकर देवर पर बरसाती हैं।
ब्रज की होली भगवान श्रीकृष्ण पर केंद्रित है, तो दाऊजी का हुरंगा उनके बड़े भ्राता बलदेव पर आधारित है। हुरंगा में गोप (देवर) समूहों को गोपियों (भाभी) द्वारा प्रेम से भीगे कोड़ों की मार लगाई जाती है। अबीर-गुलाल, टेसू के फूलों के साथ खेला जाने वाला सप्तरंगी हुरंगा श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है जिसे देखकर कहा जा सकता है कि ब्रज की होली का हुरंगा मुकुटमणि है।