Kashi's Dev Diwali : शिव के त्रिशूल पर पतित पावनी गंगा के किनारे बसी काशी। इसका शुमार दुनियां के प्राचीनतम नगरों में होता है। कहा गया है, काशी तीनों लोकों से न्यारी है। काशी ही नहीं यहां की हर चीज बाकी जगहों से न्यारी है। लोग अड़ी, होली और दीपावली भी। इसी क्रम में दीपावली के बाद काशी में 'देव दीपावली' का आयोजन होता है। इस खास अवसर पर इस बार कुछ रोशनी और ढेर सारी खुशबू मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के 'हवन दीप' की भी होगी।
ये 'हवन दीप' देशी गाय के गोबर से बन रहे हैं। सरकार ने इसके लिए सिद्धि विनायक की संगीता पांडेय को ऑर्डर दिया है। देशी गाय के गोबर से ही क्यों? इस सवाल पर संगीता का कहना है कि विदेशी नस्ल की गायों की गोबर की तुलना में देशी का गोबर टाइट होने की वजह से इसे शेप देना आसान होता है। इस समय गोरखपुर से सटे गुलरिहा गांव की करीब 50 महिलाएं इस 'हवन दीप' को अपने हुनरमंद हाथों से आकार देने में जुटी हैं।
प्रदूषण मुक्त होता है हवन दीप : हवन दीप पूरी तरह प्रदूषण मुक्त होता है। जलने के बाद राख को छोड़ इससे कोई अपशिष्ट बचता ही नहीं। इसे बनाने के लिए पहले देशी गाय का गोबर एकत्र कर उसमें अगरबत्ती को सुगंधित करने वाला इसेंस डाला जाता है। फिर गोबर को खूब सानकर उसे कफ सिरप के आकार की ऊपर से कटी शीशी के चारों ओर लपेटा जाता है।
सूखने पर शीशी को गोबर से अलग कर देते हैं। फिर इसमें हवन में प्रयोग की जाने वाली सारी सामग्री (सुपारी, जौ, तिल, देशी घी, गुग्गुल आदि) डालकर लोहबान से लॉक कर दिया जाता है। ऊपर से आसानी से जलने के लिए कुछ कपूर रख दिया जाता है। ये सारी चीजें रोशनी और खुशबू देने के बाद राख में तब्दील हो जाती हैं।