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अब गुरु गोरखनाथ को पाठ्यक्रम में स्थान देने की मांग उठी

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अरविन्द शुक्ला

लखनऊ , शनिवार, 1 दिसंबर 2018 (18:39 IST)
लखनऊ। गोरखपुर में शुक्रवार को गोरक्षनाथ शोध पीठ की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा स्थापित किए जाने के बाद गुरु गोरखनाथ द्वारा हिन्दी साहित्य के इतिहास में किए गए उनके योगदान को देखते हुए राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में गोरखनाथ के साहित्य को पढ़ाए जाने की मांग उठी है।
  
राम सागर शुक्ल जाने-माने पत्रकार, कवि और लेखक हैं जो भारतीय सूचना सेवा के अंतर्गत विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर गोरखनाथ को माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की है। 
 
शुक्ल का कहना है कि भक्ति काल के कवियों पर गोरख नाथ की रचनाओं का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। मीराबाई और अन्य लोगों ने भी गोरखनाथ की साहित्यिक रचना को आधार बनाकर अपने पदों की रचना की। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने गोरखनाथ को साहित्य के इतिहास में पर्याप्त स्थान नहीं दिया। इतना ही नहीं कबीरदास, रैदास, मीरा और तुलसीदास के पदों की पढ़ाई तो शिक्षण संस्थाओं में होती है, परंतु गोरखनाथ का कोई पद नहीं पढ़ाया जाता है। यह बात समझ में नहीं आती है। अब समय आ गया है कि गोरखनाथ के व्यक्तित्व और कृतित्व का सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
 
उल्लेखनीय है कि महायोगी के रूप में स्थापित गोरक्षनाथ और नाथ पंथ के बारे में ज्ञान फैलाने, शोध करने के मकसद से शुक्रवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में श्री गोरक्षनाथ शोध पीठ शुरू हो गई है। शोध पीठ ऑनलाइन भी नाथ पंथ के बारे में जानकारियां देगी। पंथ की पांडुलिपियों को सहेजने की भी जिम्मेदारी पीठ पर होगी। एक समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीठ की आधारशिला रखते हुए एक वेबसाइट भी लांच की। इस मौके पर नाथ पंथ के बारे में प्रकाशित डॉ. प्रदीप राव की पुस्तक का विमोचन भी किया।
 
वेबसाइट के जरिए शोध पीठ लोगों को पंथ के बारे में ज्ञान देगी। 13.73 करोड़ रुपए की लागत से भवन बनेगा, जबकि पांच साल की गतिविधियों के लिए वेतन आदि मद में 12 करोड़ रुपए की मांग की गई है। पीठ की तीन भूमिकाएं होंगी। पहला शोध, दूसरा वेबसाइट के जरिए नाथ पंथ का ज्ञान फैलाना और तीसरा काम पांडुलिपियों को सहेजना और उन्हें प्रकाशित करना।
 
शोध पीठ की गतिविधियां शुरू कर दी गई हैं। जब तक भवन निर्माण नहीं हो जाता यह अस्थायी भवन में काम करेगी। शोधपीठ की आधारशिला रखे जाने के मौके पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन प्रो. धीरेन्द्रपाल सिंह मौजूद थे।
 
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राम सागर शुक्ल की नई पुस्तक एशिया के ज्योतिपुंज गुरू गोरखनाथ हाल ही में प्रकाशित हुई है जिसमें गुरु गोरखनाथ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से तथ्यात्मक सामग्री जुटाई गई है। इस पुस्तक को आधार बनाते हुए शुक्ल ने मुख्यमंत्री को अपनी पुस्तक भेजकर पत्र लिखा कि गोरखनाथ का व्यक्तित्व एक प्रखर समाजसेवी, तेजस्वी धार्मिक नेता और ओजस्वी साहित्यकार का है।
 
इसके बावजूद हिन्दी साहित्य के इतिहास और भारतीय इतिहास में उनकी उपेक्षा की गई। अब समय आ गया है कि उनके व्यक्तित्व का आकलन उनके कार्यों और उनके उपलब्ध साहित्य के आधार पर किया जाना चाहिए। अगर कबीर, रैदास, मीरा, तुलसीदास और अन्य संत कवियों की रचनाओं को शिक्षा के पाठ्यक्रम में रखा जा सकता है, तो इन सब संत कवियों पर अमिट छाप छोड़ने वाले गोरखनाथ की रचनाओं को भी युवाओं को पढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
 
राम सागर शुक्ल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि भारतीय धर्म साधना के इतिहास में गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्रख्यात विद्वान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने ग्रंथ ‘नाथ सम्प्रदाय’ की भूमिका में लिखा है- ‘भक्ति आंदोलन के पूर्व यह (नाथ संप्रदाय) सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन रहा है और बाद में भी शक्तिशाली रहा है। आधुनिक भारतीय भाषाओं में से प्रायः सबके साहित्यिक प्रयत्नों की पृष्ठभूमि में इसका प्रभाव सक्रिय रहा है।
 
भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का ‘योग मार्ग’ ही था। भारत वर्ष की ऐसी कोई भाषा नहीं, जिसमें गोरखनाथ की कहानी नहीं पाई जाती है। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े धार्मिक और सामाजिक नेता थे, उन्होंने जिस धातु को छुआ, वही सोना हो गया। सच बात तो यह है कि गोरखनाथ स्वयं एक आन्दोलन थे।
 
गोरखनाथ की हिन्दी में सबसे प्रसिद्ध रचना ‘सबदी’ है, इसका काफी महत्व है। गोरखनाथ का प्रार्दुभाव हिन्दी साहित्य के इतिहास के अनुसार आदिकाल या वीरगाथा काल में हुआ। उस समय हिन्दी भाषा गर्भावस्था में भी। फिर भी गोरखनाथ का व्यक्तित्व इतना विशाल और प्रभावशाली था कि उनके सैकड़ों साल बाद भक्ति काल के कवियों पर उनका प्रभाव देखा जाता है।
 
ऐसे महान गुरु गोरखनाथ को माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम में पढ़ाए जाने से हिन्दी साहित्य के इतिहास और भारतीय इतिहास में उनकी उपेक्षा की भरपाई संभव हो सकेगी। अब समय आ गया है कि गोरखनाथ के व्यक्तित्व का आकलन उनके कार्यों और उनके उपलब्ध साहित्य के आधार पर किया जाना चाहिए।
 

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