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सेना के लिए चुनौती बनी नियंत्रण रेखा पर तारबंदी

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सुरेश डुग्गर

, शुक्रवार, 20 जनवरी 2017 (19:59 IST)
पाकिस्तान से सटी 814 किमी लंबी एलओसी पर भारतीय सेना एक समय पर दो मुश्किलों से जूझ रही है। इसमें से एक अगर उसके द्वारा आप पैदा की गई है तो दूसरी के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वह क्षतिग्रस्त तारबंदी के हिस्सों की जल्द से जल्द मुरम्मत तो कर लेना चाहती है, परंतु इन्हीं इलाकों में आतंकवादियों की घुसपैठ उसके कदमों को रोक रही है। हालांकि अब तीसरा मोर्चा पाकिस्तानी सेना की ओर से गोलीबारी के रूप में खोले जाने की शंका सता रही है।
13 साल पहले जब सीमाओं पर जारी सीजफायर की आड़ में भारतीय सेना ने 814 किमी लम्बी उबड़-खाबड़ और कठिन परिस्थितियों से परिपूर्ण एलओसी पर तारबंदी कर ली थी तो वह इसके प्रति निश्चिंत हो गई थी कि अब आतकंवादियों के भारत की ओर बढ़ते कदम रुक जाएंगे। हुआ भी यही था। घुसपैठ की कोशिश करने वाले सैकड़ों आतंकवादियों को उसने तारबंदी के उस पार ही रोक कर ढेर कर डाला था।
 
मगर इस बार कुदरत ने भारतीय सेना का साथ छोड़ दिया। या दूसरे शब्दों में कहें तो अब किस्मत पाकिस्तानी सेना और उन आतंकवादियों का साथ देने लगी है जिन्हें सीमा पार स्थापित किए गए आतंकवाद के प्रशिक्षण केंद्रों में तैयार किया गया है। तभी तो जिस तारबंदी पर भारतीय सेना को नाज था उसी को पार कर आतंकवादी इस ओर चले आ रहे हैं और भारतीय सेना पिछले कई दिनों से कई सेक्टरों में उनसे जूझ रही है।
 
ऐसा भी नहीं है कि आतंकवादी तारबंदी को काटने में कामयाब हो रहे हों बल्कि इस बार सर्दियों में कश्मीर के पहाड़ों पर होने वाली भारी और भयानक बर्फबारी भारतीय सेना के लिए मुसीबत बन गई है। अभी तक यही होता था कि भारी बर्फबारी भारतीय सेना के लिए फायदेमंद इसलिए साबित होती थी क्योंकि इसके कारण वे सभी पारंपारिक घुसपैठ के मार्ग बंद हो जाते थे जहां से पाक सेना द्वारा आतंकवादियों को इस ओर धकेला जाता था।
 
मगर इस बार बर्फबारी सेना के लिए मुसीबत बन गई है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आतंकवादी। बर्फबारी ने 814 किमी लम्बी एलओसी पर 25 प्रतिशत अर्थात करीब 200 किमी तारबंदी को क्षतिग्रस्त कर दिया है। यह क्षति अखनूर से लेकर करगिल तक के दुर्गम क्षेत्रों में फैली हुई है।
 
नतीजतन वे आतंकवादी जो अभी तक बर्फबारी के कारण घुसपैठ नहीं करते थे अब ऐसा जोखिम उठा रहे हैं। उनके इस जोखिम में तारबंदी के वे हिस्से सहायक साबित हो रहे हैं जो टूट चुके हैं और उन्हें रास्ता दे रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि सेना इसे अभी भी गुप्त रखे हुए है कि तारबंदी किन क्षेत्रों में क्षतिग्रात हुई है लेकिन आतंकवादी इसके प्रति पूरी जानकारी रखते हैं।
 
स्थिति यह है कि क्षतिग्रस्त तारबंदी की मुरम्मत करने में सैनिक जुटे तो हुए हैं पर इन क्षेत्रों में आतंकवादियों की घुसपैठ उन्हें अपनी कवायद में कायमाब नहीं होने दे रही है। सेनाधिकारियों ने माना है कि आतंकवादियों ने घुसपैठ के साथ ही उन क्षेत्रों में सैनिकों पर हमले बोले हैं जो तारबंदी के मुरम्मत के कार्य में जुटे हुए थे। यही नहीं, अब तो सेना को यह चिंता भी सताने लगी है कि पाक सेना उसे तारबंदी का कार्य पूरा करने से रोकने की खातिर गोलाबारी पुल आरंभ कर सकती है। ऐसी आशंका इसलिए व्यक्त की जा रही है क्योंकि तारबंदी के कारण पाक सेना आतंकवादियों को इस ओर धकेलने में कठिनाई महसूस कर रही है।


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