बिहार विधानसभा में सोमवार को मद्य निषेध और उत्पाद (संशोधन) विधेयक-2018 पेश किया गया, जिसे बहुमत से पारित कर दिया गया। नए कानून में शराबबंदी के कई प्रावधानों को नरम बनाया गया है। कानून में संशोधन को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सदन को बताया कि निर्दोषों को बचाने के उद्देश्य से संशोधन विधेयक लाया गया है। उन्होंने कहा कि इस कानून के दुरुपयोग को रोकने पर सरकार का जोर है।
बिल पेश करने के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि राज्य में शराबबंदी लागू होने से काफी फायदा हुआ है। पिछले दो साल में कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है, जिनमें 62 फीसदी शराब पीने वाले तो वहीं 32 फीसदी शराब की तस्करी करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि 12 जुलाई 2018 तक करीब 6932 लोग शराब से जुड़े मामले में जेल में हैं।
नीतीश ने कहा कि संशोधन का मतलब यह नहीं कि पीने वाले बख्शे जाएंगे, शराब पीकर उपद्रव करने पर कड़ी कार्रवाई होगी। सरकार का पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कानून को तार्किक बनाते हुए और लोगों की परेशानी को देखते हुए संशोधन का निर्णय लिया गया है। इसके लिए आम लोगों से भी राय ली गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जनहित को देखते हुए शराबबंदी का फैसला लिया गया, जिसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त हुआ है। शराबबंदी का सबसे ज्यादा लाभ दलितों, गरीबों, अनुसूचित जाति-जनजाति और हाशिए पर चले गए लोगों को हुआ है।
नीतीश ऐलान किया कि अगर अब बिहार में कोई भी शराब पीता हुआ पकड़ा गया तो उसपर पचास हजार रुपए का जुर्माना लगेगा या फिर 3 महीने की जेल होगी। वहीं अगर वही व्यक्ति दोबारा ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो जुर्माने की रकम 1 लाख होगी और 5 साल की जेल होगी। नीतीश ने कहा कि अब जिस जगह घर में शराब बरामद होगी वह घर सीज़ नहीं होगा, क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि किसी निर्दोष को तकलीफ हो या फिर वह जेल जाए।
नीतीश की इस नरमी से एक तरफ जहां विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिला है, वहीं इन आरोपों पर भी मुहर लगती दिख रही है कि कानून को दुरुपयोग हो रहा था।