न्यूयॉर्क। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का मानना है कि नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ने के बावजूद भारत एवं पाकिस्तान युद्ध के कगार पर नहीं हैं और दोनों देश युद्ध की आशंका को लेकर उससे कहीं अधिक सावधान हैं जितना कि कुछ समाचार चैनल उन्हें देखना चाहेंगे।
अब्दुल्ला ने शनिवार को यहां 'भारत एवं पाकिस्तान : एक उपमहाद्वीपीय मामला' विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि मैं उन लोगों में से नहीं हूं जिनका मानना है कि उपमहाद्वीप में जल्द युद्ध होने का खतरा मंडरा रहा है। मैं यह मानता हूं कि नई दिल्ली एवं इस्लामाबाद दोनों सरकारें युद्ध की आशंका के बारे में उससे कहीं अधिक सावधान हैं जितना कि हमारे कुछ टीवी चैनल शायद उन्हें देखना चाहते हैं।
इस सम्मेलन का आयोजन न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के छात्रों ने किया। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भी इस सम्मेलन में भाषण देने वाले थे लेकिन उन्होंने सुरक्षा संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया।
अब्दुल्ला ने करीब 1 घंटे की चर्चा के दौरान कश्मीर, भारत के लक्षित हमलों, हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी, पाकिस्तान के साथ तनाव, कश्मीरी पंडितों की स्थिति एवं अनुच्छेद 370 समेत कई विषयों पर बात करते कहा कि नियंत्रण रेखा पर तनाव है और पिछले साल इसी समय की तुलना में संघर्षविराम को लेकर कहीं अधिक दबाव है लेकिन भारत एवं पाकिस्तान युद्ध के कगार पर नहीं हैं।
अब्दुल्ला ने कहा कि भारत सरकार ने बहुत सावधानी से इस बारे में बताया है कि उसने उड़ी आतंकवादी हमले के बाद क्या किया? उन्होंने दुनिया को बताया कि यह (लक्षित हमला) नियंत्रण रेखा के पास किया गया आतंकवाद विरोधी अभियान था।
उन्होंने कहा कि सरकार ने इस बात की विस्तृत जानकारी नहीं दी कि वे नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कहां तक गए और हमलों में कितने लोग मारे गए? उन्होंने कहा कि यदि भारत सरकार ने यह जानकारी दी होती तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर जवाबी कार्रवाई करने का अत्यधिक दबाव होता।
अब्दुल्ला ने कहा कि भारत एवं पाकिस्तान के बीच बढ़े हुए तनाव से घाटी में निराशा का माहौल बढ़ता है, क्योंकि भारत एवं पाकिस्तान के बीच संबंधों में तनाव बढ़ने से कोई भी राज्य जम्मू-कश्मीर से अधिक प्रभावित नहीं होता। कश्मीर घाटी में वानी के मारे जाने के मद्देनजर पिछले 100 से अधिक दिनों से अशांति है और दुर्भाग्यवश मौजूदा समस्या का अंत नजर नहीं आ रहा।
उन्होंने कहा कि कश्मीर में मौजूदा स्थिति एक राजनीतिक समस्या है जिसका राजनीतिक समाधान खोजे जाने की आवश्यकता है। नौकरी न होना, कट्टरपंथी इस्लाम के तत्व भी हैं लेकिन ये छोटे तत्व हैं तथा यह बड़े स्तर पर जम्मू-कश्मीर की राजनीति का परिणाम है तथा यह एक राजनीतिक समस्या है जिसके लिए राजनीतिक समाधान चाहिए और इसके लिए वार्ता जरूरी है।
कश्मीर समस्या के अल्पकालीन समाधान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह समाधान समस्या को पहचानना और यह स्वीकार करना है कि हमारे सामने एक समस्या है। अभी केवल यह स्वीकार करना है कि वार्ता जरूरी है और जो भी हितधारक आपके साथ वार्ता करना चाहते हैं, उनके साथ बातचीत आवश्यक है। (भाषा)