पटना। पटना उच्च न्यायालय के मंगलवार के फैसले के बाद बिहार निर्वाचन आयोग ने नगर निकाय चुनाव को तत्काल स्थगित कर दिया है। उच्च न्यायालय ने स्थानीय नगर निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अति पिछड़ा वर्ग के लिए सीटों के आरक्षण को अवैध करार दिया है और कहा है कि ऐसी सीटें सामान्य श्रेणी के तौर पर माने जाने के बाद ही चुनाव कराए जाएं।
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस. कुमार की खंडपीठ ने कोटा प्रणाली को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया कि ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटें मानते हुए फिर से अधिसूचना जारी कर चुनाव आयोजित किया जाए। अदालत का यह आदेश उस समय आया, जब 10 अक्टूबर को पहले चरण के मतदान में एक हफ्ते से भी कम समय रह गया था।
अदालत के इस आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने सभी संबंधित जिलाधिकारियों को एक परिपत्र जारी कर कहा कि इस आदेश के आलोक में नगरपालिका आम निर्वाचन, 2022 की प्रक्रिया- तैयारी में आवश्यक संशोधन की आवश्यकता है, उसके फलस्वरूप प्रथम चरण के 10 अक्टूबर एवं द्वितीय चरण के 20 अक्टूबर के मतदान को तत्काल स्थगित किया जाता है। उसने कहा कि मतदान की अगली तिथि के बारे में बाद में सूचना जारी की जाएगी।
अदालत के इस आदेश के बाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और हाल में सत्ता से बाहर हुई भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया। जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर कहा कि बिहार में चल रहे नगर निकायों के चुनाव में अतिपिछड़ा आरक्षण को रद्द करने एवं तत्काल चुनाव रोकने का उच्च न्यायालय का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा निर्णय केंद्र सरकार और भाजपा की गहरी साजिश का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि अगर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने समय पर जातीय जनगणना करवाकर आवश्यक संवैधानिक औपचारिकताएं पूरी कर ली होती तो आज ऐसी स्थिति नहीं आती। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया, नीतीश कुमार की जिद का परिणाम है कि पटना उच्च न्यायालय को नगर निकाय चुनावों में आरक्षण रोकने का आदेश देना पड़ा। उच्चतम न्यायालय के ट्रिपल टेस्ट के निर्देश को नीतीश कुमार ने नकार दिया। तत्काल चुनाव रोका जाए।
उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना का नगर निकाय चुनाव से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि अदालत का कहना था कि एक समर्पित आयोग बना कर उसकी अनुशंसा पर आरक्षण दें, पर नीतीश कुमार अपनी जिद पर अड़े थे तथा उन्होंने महाधिवक्ता और राज्य चुनाव आयोग की राय भी नहीं मानी।
छुट्टी के दिन पारित किए गए 86 पन्नों के इस आदेश में राज्य निर्वाचन आयोग से एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में अपने कामकाज की समीक्षा करने के लिए कहा गया है, जो बिहार सरकार के निर्देशों से बाध्य नहीं है। ये चुनाव 2 चरणों में 10 और 20 अक्टूबर को होने थे जिसके परिणाम क्रमश: 12 और 22 अक्टूबर को घोषित किए जाने थे।
अदालत ने राज्य सरकार को यह भी सलाह दी कि उसे स्थानीय निकायों- शहरी या ग्रामीण चुनाव में आरक्षण से संबंधित एक व्यापक कानून बनाने पर विचार करना चाहिए ताकि राज्य को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुरूप लाया जा सके। आदेश में यह कहा गया है कि पिछड़ा वर्ग अधिनियम और अत्यंत पिछड़ा वर्ग आयोग के तहत राज्य में गठित आयोग राजनीतिक पिछड़ेपन का पता लगाने से स्वतंत्र और अलग उद्देश्यों के लिए था।
अदालत ने कहा कि बिहार राज्य ने कोई ऐसा अभ्यास नहीं किया है जिसके द्वारा सामाजिक-आर्थिक/शैक्षिक सेवाओं के तहत आरक्षण प्रदान करने के लिए अपनाए गए मानदंड को अत्यधिक पिछड़े वर्गों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के चुनावी प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अपनाया गया है। अदालत ने हालांकि नगर अधिनियम की धारा 29 के 2 अप्रैल, 2022 के एक संशोधन को बरकरार रखा जिसके तहत उपमहापौर और उपमुख्य पार्षदों के पद सृजित किए गए थे।
Edited by: Ravindra Gupta(भाषा)