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आफत की बारिश से डूबा चेन्नई, बाढ़ से बने हालातों ने खोली सरकार के दावों की पोल, मौसम विभाग ने दी चेतावनी

हमें फॉलो करें आफत की बारिश से डूबा चेन्नई, बाढ़ से बने हालातों ने खोली सरकार के दावों की पोल, मौसम विभाग ने दी चेतावनी
, बुधवार, 24 नवंबर 2021 (21:03 IST)
- बालाकृष्णनन सुब्रमण्यम

इस साल नवंबर में दक्षिणी तमिलनाडु में हुई असामान्य बारिश ने आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। बारिश से हुए हादसों में कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, साथ ही पशुओं और फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा। इस साल चेन्नई ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में बारिश ने कहर बरपाया।

क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (RMC) के अनुसार 6 नवंबर को चेन्नई में 210 मिमी बारिश हुई। आरएमसी के उप निदेशक, एन. पुवियारासन के मुताबिक 2015 के बाद से चेन्नई में 1 दिन में दर्ज की गई सबसे अधिक बारिश है (1 दिसंबर को 494 मिमी बारिश हुई थी)। चेन्नई और चेंगलपेट, कांचीपुरम और तिरुवल्लूर जिलों के कई उपनगरों में रुक-रुककर बारिश हुई। लगातार 6 रातों तक पानी बरसता रहा, जो 7 नवंबर तक जारी। इस बारिश ने हालात को भयावह कर दिया।

बढ़ते पानी की भयावहता को देखते हुए तीन जलाशयों चेंबरमबक्कम, पुझल और पूंडी के स्लुइस गेट भी खोले गए। दो दिनों में हुई बारिश से टी नगर, व्यासपडी, अड्यार, वेलाचेरी, रोयापेट्टा, पश्चिम माम्बलम, केके नगर, मडिपक्कम, पल्लिक्करानी और मायलापुर सहित कई शहर के इलाकों में बाढ़ आ गई। घरों में पानी घुसा। सड़कों पर नदियां बह निकलीं। कई पेड़ उखड़कर सड़क पर गिर गए जिससे यातायात प्रभावित हुआ।
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बारिश से हुए व्यवधान के कारण कई मार्गों को परिवर्तित किया। बारिश का असर बिजली की आपूर्ति पर भी पड़ा। सुरक्षा को देखते हुए बिजली आपूर्ति बंद की गई, जिससे चेन्नई के लोगों को कई रातें अंधेरे में और जरूरी चीजों के बिना गुजारनी पड़ीं। बारिश के बाद बने भयावह हालात अव्यवस्थाओं की पोल खोलते हुए यह दिखाते हैं कि अधिकारी पूर्वानुमान लगाने में पूरी तरह विफल रहे हैं।

जल निकासी की खराब गुणवत्ता और दोषपूर्ण बनावट बाढ़ के पानी को सहन नहीं कर पाईं। सेवानिवृत्त मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारी केवी बालासुब्रमण्यम का कहना है कि उत्तर-पूर्व मानसून 25 अक्टूबर 2021 को तमिलनाडु में शुरू हुआ।

इससे पहले 20 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में तमिलनाडु और पुडुचेरी में सामान्य वर्षा से 25% अधिक बारिश हुई। 3 नवंबर 2021 को समाप्त होने वाले अगले सप्ताह में यह बढ़कर 44 प्रतिशत हो गया और अगले सप्ताह में 51% हो गया और 17 नवंबर को समाप्त होने वाले अगले सप्ताह में यह सामान्य से 54% अधिक था। 23 नवंबर को यह 64% अधिक है।
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चेन्नई की कहानी भी इससे अलग नहीं है। बंगाल की खाड़ी के ऊपर बने दबाव के कारण राज्य में 11 नवंबर को भारी बारिश हुई। 19 नवंबर को कम दवाब के एक और क्षेत्र के कारण विल्लुपुरम जिले में भारी बारिश हुई। हालांकि आने वाले दिनों में इसमें राहत की कोई संभावना नहीं है। मौसम विभाग 26 और 27 नवंबर को तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में भारी बारिश की चेतावनी जारी की है।

बाला सुब्रमण्यम कहते हैं- पिछले 10 वर्षों में चेन्नई में नवंबर के महीने में एक दिन में सबसे ज्यादा बारिश 16 नवंबर 2015 को 246.5 मिमी है। चेन्नई में सबसे ज्यादा बारिश का रिकॉर्ड 25 नवंबर 1976 को 452.4 मिमी है। चेन्नई में सबसे ज्यादा बारिश 1918 में 1088 मिमी हुई थी। 2015 में चेन्नई में नवंबर महीने के दौरान 1049.3 मिमी वर्षा हुई थी।
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इस बारिश से चेन्नई और राज्य के अन्य हिस्सों में हालात भयावह हो गए थे। अगर आने वाले दिनों में भी बारिश जारी रही तो लोगों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। पानी मानव जीवन के लिए आवश्यक है। लेकिन सामान्य से अधिक बारिश भी लोगों के जीवन को दुखदाई बना देती है। ज्यादा बारिश से अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है।

मांग और आपूर्ति में अंतर आने से चीजों के दाम भी आसमान पर जाने लगते हैं। चेन्नई में ही देखे तों सब्जियों के भाव 70 रुपए प्रतिकिलो हो गए हैं। टमाटर 140 से 200 रुपए किलो बिक रहा है। टमाटर के बढ़ते दामों को लेकर लोग सोशल मीडिया पर मीम्स बना रहे हैं। शहर में जलजमाव के कई कारण हैं।
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प्लास्टिक के बढ़ते कचरे से ड्रेनेज और अन्य चेनल्स जाम हो गईं जो पानी को कूम और अड्यार नदियों में ले जाती है। नालियों की सही समय पर सफाई नहीं की गई। उनकी बेतरतीब बनावट भी पानी के बहाव का एक बड़ा कारण है। जल निकायों का सीमेंटीकरण और अंधाधुंध गति से बढ़ती मकानों की संख्या भी बाढ़ का कारण है।

सीमेंट की रोड बनाने से पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता है। सड़कों पर पानी से भरे गडढे वाहन चलाने वालों के लिए किसी भयानक सपने से कम नहीं हैं। बाढ़ ने कूम और अडियार नदियों के कचरे को तो बहा दिया, लेनि समुद्री की लहरों से कचरे के ये ढेर वापस किनारों पर आ गए। राज्य के मु्ख्यमंत्री एमके स्टालिन का विधानसभा क्षेत्र कोलाथुर बाढ़ से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ। स्टालिन इस विधानसभा क्षेत्र से तीसरी बार चुने गए।वे चेन्नई कॉर्पोरेशन के मेयर और डिप्टी सीएम भी रहे।
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अन्नाद्रमुक के एक नेता कहते हैं- उनके पिता और द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन बाढ़ ने उनके कार्यों की पोल खोलकर रख दी। द्रमुक नेताओं ने बाढ़ राहत राशि में गबन के भी आरोप लगाए। लोग सीएमडीए के अधूरे कार्यों को भयावह हालातों के लिए जिम्मेदार मानते हैं। अतिक्रमण की अनियमित जांच, नहरों, झीलों, तालाबों में पर्याप्त जल निकासी की व्यवस्था भयावह बाढ़ के कारण हैं।

कन्याकुमारी और अन्य जिलों की स्थिति भी बहुत खराब है। 49 साल बाद थेनपेनियार, कावेरी और अन्य नदियां उफान पर आ गईं। रामनाद में औसत से अधिक बारिश हुई है लेकिन केवल एक प्रतिशत टैंक ही भरे हुए हैं। दोनों द्रविड़ पार्टियां दूसरे कार्यों पर पैसा खर्च कर आम आदमी को बेवकूफ बना रही हैं। बाढ़ राहत राशि के नाम पर केंद्र सरकार से करोड़ो रुपए मांगते हैं। प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर फोटोशूट करवाते हैं। मुफ्त की चीज और फोटोशूट यात्राएं लोगों के दर्द का कोई स्थायी समाधान नहीं है।
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किसानों की कई हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई। लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। निजी और सरकार परिवहन पर भी इसका प्रभाव पड़ा। इमारतों में पानी भरने से उद्योग बंद हो गए। आने वाले दिनों में चीजों के कीमतें आसमान छू सकती हैं। आवश्यक वस्तुओं की कमी भी हो सकता है। बारिश इमरातों, सड़कों, चेक डेम पुलों को भी नुकसान पहुंचाती हैं। सरकारी खजाने पर इसकी दोहरी मार पड़ेगी।

राज्य सरकार को बारिश के बाद बाढ़ का पानी कम होने में कई दिन लग जाते हैं। बाढ़ से पीड़ित लोग कहते हैं कि उनके पास न खाना है, न बिजली और न पीने का शुद्ध पानी। न ही किसी मदद उन्हें मिल रही है। ऐसे हालात राज्य में कई जगह दिखाई दे रहे हैं। बारिश कम होने के बाद लोगों को कीचड़ साफ करने खर्चा करना पड़ रहा है। दिहाड़ी मजदूरों की आजीविका सबसे बुरी तरह प्रभावित हुई है।
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बाढ़ के बाद, निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को कीचड़, सड़ती हुई बदबू और सांपों और मेंढकों के बीच रहना पड़ रहा है। पानी के दूषित होने और मलेरिया, डेंगू और कई बीमारियां फैलने का खतरा मंडरा रहा है। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर राज्य सरकार को 2015 की प्रकृति की बाढ़ से सबक सीखते हुए घटनाओं को रोकने के पहले से ही कदम उठाने चाहिए। सरकार की नाकामी का असर निकाय चुनाव पर पड़ेगा।

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