देहरादून। कॉर्बेट नेशनल पार्क का ढिकाला जोन के अलावा राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क के चीला और रानीपुर गेट आज मंगलवार से पर्यटकों के लिए खुल गए। अब आगामी 15 जून तक पर्यटक यहां जंगल सफारी कर सकेंगे। मंगलवार सुबह राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क की डिप्टी डायरेक्टर कहकशा नसरीन ने हरी झंडी दिखाकर जिप्सियों को रवाना किया।
पर्यटक अब कार्बेट और राजाजी पार्क के जोन में डे विजिट के अलावा रात्रि विश्राम भी कर सकेंगे। बरसात के दौरान 15 जून को हर वर्ष ढिकाला जोन बंद कर दिया जाता है और 15 नवंबर को इसे खोला जाता है। पार्क निदेशक डॉ. धीरज पांडे ने बताया कि आज पहले दिन कैंटर एवं जिप्सी वाहनों में पर्यटक इस जोन के भ्रमण के लिए रवाना हुए।
पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखने के साथ ही वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर भी कर्मचारियों को निर्देश दिए गए हैं। पार्क के नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कॉर्बेट नेशनल पार्क में हर वर्ष भारी संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक भ्रमण के लिए आते है। पहले दिन भ्रमण पर रवाना हुए पर्यटक काफी उत्साहित दिखे। भ्रमण के दौरान पर्यटक यहां बाघ व तेंदुओं समेत अन्य वन्यजीवों का दीदार कर सकेंगे।
बद्रीनाथ धाम की कपाट बंदी के लिए पंच पूजाओं का सिलसिला शुरू : श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद करने के लिए कपाट बंदी से पूर्व में संपन्न की जाने वाली पंच पूजाओं का सिलसिला शुरू हो गया है। इसी 19 नवंबर को श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए विधि-विधान से बंद कर दिए जाएंगे। इन दिनों बर्फबारी से बद्रीनाथ की चमक में कई गुना इजाफा हो गया है।
मंगलवार से धाम में कपाट बंद होने की प्रक्रिया बर्फबारी के बीच जारी है। मंगलवार को भगवान गणेश के मंदिर के कपाट बंद हो गए। बुधवार, 16 नवंबर को आदिकेदारेश्वर मंदिर और 17 नवंबर को खड़क पुस्तकों को गर्भगृह में रख वेद ऋचाओं का वादन कर बंद किया जाएगा। इसके बाद 18 नवंबर को महालक्ष्मी गर्भगृह में विराजमान होगी। इसके बाद 19 नवंबर को पंचांग गणना और धार्मिक मान्यताओं के साथ बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
इस साल कपाट खुलने की तिथि 8 मई से 14 नवंबर तक 17 लाख 38 हजार 872 तीर्थयात्री बद्रीनाथ के दर्शन कर चुके हैं। 19 नवंबर को बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ में नारायण की पूजा 6 माह देवताओं की ओर से उनके प्रतिनिधि के तौर पर नारदजी करेंगे। मानव इस दौरान नारायण की पूजा पांडुकेश्वर व ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर में कर सकेंगे।
बद्रीनाथ धाम को अंतिम मोक्षधाम भी माना गया है। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान नारायण की स्वयंभू मूर्ति है। भगवान योग मुद्रा में विराजमान हैं। बद्रीनाथ की पूजा को लेकर दक्षिण भारत के केरल के पुजारी ही पूजा करते हैं जिन्हें 'रावल' कहते हैं। मूर्ति को छूने का अधिकार भी सिर्फ मुख्य पुजारी को ही है।
उत्तराखंड के चमोली जनपद में समुद्रतल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बद्रीनाथ धाम को विष्णु पुराण, महाभारत और स्कंद पुराण में देश के चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। मंदिर का निर्माण 7वीं से 9वीं सदी के मध्य हुआ है। मंदिर शंकूधारी शैली में बना है। 15 मीटर ऊंचे इस मंदिर के शिखर पर गुंबद है। बद्रीनाथ मंदिर के गर्भगृह में श्री विष्णु के साथ नर-नारायण की ध्यानावस्था में मूर्ति है। शालिग्राम पत्थर से बनी श्री विष्णु की मूर्ति 1 मीटर ऊंची है।
मान्यता है कि इस मूर्ति को आदिशंकराचार्य ने 8वीं सदी के आसपास नारद कुंड से निकालकर मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया। 8 स्वयंभू प्रतिमाओं में से 1 यह मूर्ति यह मूर्ति श्री विष्णु की 8 स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक है। यह मंदिर श्री विष्णु के 108 दिव्य मंदिरों में से एक है।
Edited by: Ravindra Gupta