कोच्चि। केरल में आर्द्र क्षेत्र के वनों (मैंग्रोव फॉरेस्ट) में 98 प्रतिशत की कमी आई है और अब यह घटकर मात्र 17 वर्ग किलोमीटर रह गए हैं। यह जानकारी केरल वन अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों में सामने आई है। आंकड़ों के अनुसार केरल में 1975 में 700 वर्ग किलोमीटर आर्द्र क्षेत्र के वन लगभग 98 प्रतिशत घटकर अब मात्र 17 वर्ग किलोमीटर रह गए हैं।
हालांकि देशभर में मैंग्रोव वन 2017 से 2019 के बीच प्रतिवर्ष 0.5 प्रतिशत की दर से थोड़ा बढ़ा है, जिसका श्रेय सरकार द्वारा केरल और उसके बाहर रखरखाव परियोजनाओं और ठोस प्रयासों को दिया जाता है।
भारत के मैंग्रोव वनों का अध्ययन करने वाले और संरक्षण पर सलाह देने के लिए सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय मैंग्रोव समिति के पूर्व सदस्य काथिरशन कंडासामी ने कहा, मुझे मैंग्रोव वन क्षेत्र की रक्षा के वास्ते योजनाएं बनाने के लिए सरकार के साथ एक तरह से लड़ना पड़ा था।
भारत सरकार ने 2022 में कंडासामी और समिति की सलाह के बाद, केरल में 2 सहित देश में 44 महत्वपूर्ण मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्रों की पहचान की। इसने क्षेत्रों की सुरक्षा और रखरखाव के लिए एक प्रबंधन कार्ययोजना शुरू की। राज्य सरकारों ने भी संरक्षण परियोजनाओं के लिए धन स्वीकृत करना शुरू कर दिया है।
केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज में शोधार्थी रानी वर्गीज ने कहा, मुझे पता चला कि शहर की जलमल निकासी इस मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के बीच से हो रही है। उन्होंने कहा कि इससे मिट्टी प्रदूषण फैल रहा है।
लगभग 60 वर्षों से, 70 वर्षीय राजन केरल के मंगलावनम वन क्षेत्र में हरियाली के बीच आराम से रह रहे थे, लेकिन पिछले 2 दशकों में कोच्चि के इर्दगिर्द शहर इस तरह से विकसित हुए हैं कि इसने राजन के पूर्व आवास सहित संरक्षित वन क्षेत्र को भी निगल लिया है।
लगभग 15 साल पहले निर्माण के लिए उन्हें अपने घर और जमीन को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह एक संरक्षित पक्षी अभयारण्य के किनारे स्थित एक अस्थाई आवास में चले गए हैं। राजन ने कहा, अब चारों ओर इमारतें हैं और सरकारी भवनों, निजी कार्यालयों तथा घरों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
कोच्चि निगम के महापौर ए. अनिल कुमार ने कहा, हालांकि वे गंदे पानी के बहाव के बारे में कुछ नहीं कर सकते, लेकिन क्षेत्र का अध्ययन जारी रहेगा। के. कृष्णनकुट्टी हर दिन सुबह की सैर पर जाते हैं, जहां मैंग्रोव की लताएं सड़क के दोनों ओर झूलती रहती हैं।
उन्होंने कहा कि वह हरियाली और पक्षियों से प्यार करते हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि हाल के वर्षों में हरेभरे स्थान में काफी कमी आ गई है। विशेषज्ञों को ऐसी आशंका है कि आने वाले वर्षों में केरल का मैंग्रोव क्षेत्र और कम हो सकता है। केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता वर्गीस ने कहा कि अभी भी मैंग्रोव क्षेत्र के नुकसान को रोका जा सकता है और निकट भविष्य में वन पारिस्थितिकी तंत्र को सामान्य बनाया जा सकता है।
वर्गीस ने कहा, यदि हम अभयारण्य में प्रतिकूल मानव हस्तक्षेप और मंगलावनम से जलमल निकासी को रोकते हैं, तो अगले 10 वर्षों में हम मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के सभी संभावित लाभों को फिर से हासिल कर सकते हैं।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)